Shankhachur Kaalsarp | शंखचूड़ कालसर्प योग | जानिए परिभाषा तथा कुछ आसान से उपाय

शंखचूड़ कालसर्प योग

Shankhachur Kaalsarp Yoga

शंखचूड़ कालसर्प योग: जब केतु तृतीय भाव में व राहु नवम भाव में हो तो “शंखचूड़ कालसर्प योग” बनता है। इस योग से पीड़ित जातकों का भाग्योदय अनेक प्रकार की बाधा से भरा हुआ रहता है। व्यापार में प्रगति, नौकरी में पदोन्नति तथा विद्या अर्चन में  सफलता हेतु कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक पिता के सुख से वंचित रहता है। 

शंखचूड़ कालसर्प योग: प्रभाव 

इस दोष में जातक स्वयं के हित साधने के लिए ये जातक दूसरों का हिस्सा भी  छीनने  हेतु आतुर होते हैं; तथा अपने जीवन में धर्म से खिलवाड़ करते हैं। अपने अत्यधिक आत्मविश्वास या घमंड के वशीभूत होकर इन्हें सारी समस्या झेलनी पड़ती है। शारीरिक व्याधियां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती। जिसके कारण सरकारी मुकदमेबाजी में भी अनावश्यक धन खर्च होता रहता है। इन जातकों को पिता के सुख से तो वंचित रहना ही पड़ता है, इसके साथ ही ननिहाल व बहनोइ पक्ष भी छल पूर्ण व्यवहार प्राप्त करते हैं। मित्र से भी धोखा मिलता है। इनका वैवाहिक जीवन आपसी वैमनस्यता का शिकार हो जाता है। हर छोटी-बड़ी  गतिविधयों हेतु कठिन संघर्ष करना पड़ता है। उसे समाज में यथेष्ट मान-सम्मान भी नहीं मिलता। यदि ये जातक अपनत्व की भावना रखे, अपनो से प्रेम का भाव रखें, धर्म की राह पर चलें तथा एवं मुंह में राम बगल में छुरी की भावना को त्याग दें तो, अपने जीवन में कठिनाइयों को कम कर सकते हैं। 

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यदि कोई जातक इस योग से अधिक समस्या का अनुभव करते हैं। उन्हें ज्योतिष द्वारा बताए गए निम्न उपाय कर लाभ प्राप्त करना चाहिए। यदि यथार्थ में कालसर्प योग हानिकारक हो तो उसकी शांति जातक को बचपन में ही करवा लेनी चाहिए।  जिससे जातक का भविष्य उज्जवल तथा सुखमय व्यतीत हो।  इस बात का सदैव ध्यान रखें कि किसी भी ग्रह की शान्ति से उसका पूर्ण दोष समाप्त नहीं होता; बल्कि कुछ आसान से उपायों व पूजा विधि से यह प्रभाव कुछ हद तक कम हो जाता है।  अतः थोड़ा संघर्ष तो करना पड़ता है किन्तु सफलता मिल जाती है। आंशिक कालसर्प दोष हेतु पहले छोटे-छोटे उपाय अवश्य कर लेना चाहिए। बहुत से आंशिक काल सर्प दोष को छोटी पूजा या छोटे-छोटे उपाय से भी इसके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।

शंखचूड़ कालसर्प योग
शंखचूड़ कालसर्प योग

शंखचूड़ कालसर्प योग: महत्वपूर्ण उपाय 

  • इस काल सर्प योग की परेशानियों से बचने के लिए संबंधित जातक को किसी महीने के पहले शनिवार से शनिवार का व्रत, इस योग की शांति का संकल्प लेकर प्रारंभ करना चाहिए, उसे निरंतर 86 शनिवारों का व्रत रखना चाहिए। व्रत के दौरान जातक काले वस्त्र धारण करें एवं श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें, राहु बीज मंत्र की तीन माला जाप करें। जाप के बाद एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में अर्पित करें। 
  • भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, तिल रेवड़ी, तिलकुट आदि मीठे पदार्थों का सेवन करें। इन्हीं वस्तुओं का दान भी करें। रात के समय में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
  • महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने में प्रति सोमवार का व्रत कर शिवजी का रुद्राभिषेक करें।
  • चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहूर्त में घर के मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग स्थापित कर दें।
Must Read: अन्य काल सर्प योग व उनके प्रकार-
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कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ



Q- कैसे निर्मित होता है, शंखचूड़ कालसर्प योग?

An- जब केतु तृतीय भाव में व राहु नवम भाव में हो तो “शंखचूड़ कालसर्प योग” बनता है।

Q- शंखचूड़ कालसर्प योग के क्या लक्षण होते हैं?

An- व्यापार में प्रगति, नौकरी में पदोन्नति तथा विद्या अर्चन में  सफलता हेतु कई कष्टों का सामना करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से जातक पिता के सुख से वंचित रहता है।

Q- क्या शंखचूड़ कालसर्प योग के प्रभाव को कम करने हेतु जातक शनि देव की उपासना करनी चाहिए?

 An- हां, शनि देव की उपासना से जातक इस दोष के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं।

Q- क्या शंखचूड़ कालसर्प दोष की शांति करने से बुरा प्रभाव ख़त्म किया जा सकता है?

An- इस दोष की शांति करने से जातक इसका प्रभाव पूर्ण रूप से ख़त्म तो नही किया सकता पर इसके बुरे प्रभाव को कम अवश्य कर सकते हैं।

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