Marriage Astrology | विवाह ज्योतिष, जानिए विवाह से संबंधित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में व मंगल दोष के प्रभाव और उपाय

विवाह ज्योतिष

विवाह ज्योतिष : अक्सर, हम सभी के मन में यह सवाल आता है कि मेरी शादी कब होगी? जीवनसाथी कैसा होगा, विवाह में कोई अड़चन तो नहीं और अगर है तो क्या उपाय करना चाहिए? और हम उचित जानकारी के अभाव में इन सभी सवालों के सटीक जवाब प्राप्त नहीं कर पाते। हिन्दू सभ्यता में हमारी संस्कृति के अनुसार में 16 संस्कारों में से एक विवाह संस्कार शामिल है, जो कि जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। 

इसके साथ ही कई बार या तो जातकों का विवाह नहीं होता या फिर विवाह के बाद संबंध टूट जाते हैं या अलगाव की स्थिति बन जाती है। हमारे ज्योतिष विद्या में निपूर्ण ज्योतिष आचार्यों के मतानुसार, यह सब कुछ जन्म कुंडली में ग्रहों की चाल के कारण होता है। इसी के साथ जन्म कुंडली का सातवां भाव हमें यह जानकारी देता है कि हमारा विवाह कब व किस उम्र में होगा। कुल मिलाकर जब कुंडली में एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें भाव में हो तो यह विवाह में विलंब कराता है।

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विवाह ज्योतिष : कुंडली के अनुसार जीवनसाथी के बारे में भविष्यवाणी

आपकी जानकारी के लिए हम यह बताना चाहते हैं कि जन्म कुंडली एक ज्योतिषीय अनुमान व गणना से तैयार की गई एक पत्रिका या चार्ट होती है, जो जातक के जन्म के समय के आधार पर बनाई जाती है। इस जन्म कुंडली में सभी नौ ग्रहों की स्थिति व उनका शुभ-अशुभ प्रभाव निहित होते हैं, जो जातक के जीवन को भी प्रभावित करते हैं। 

इसके अलावा जब बात जीवन साथी की हो तो, कुंडली में कुछ विशेष योग ऐसे भी होते हैं जिनके आधार पर जातक के जीवन साथी के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। इन योगों के आधार पर ही ज्योतिष कुंडली विशेषज्ञ, जातक के जीवनसाथी व उनकी विशेषताएं, स्वभाव और जीवन संगी के साथ उनकी संगत के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। यदि आप भी अपने जीवनसाथी के बारे में पहले से ही जानना चाहते हैं, तो आप अपनी कुंडली के आधार पर किसी अनुभवी ज्योतिष से भी बात कर सकते हैं।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में उसके विवाह के लिए विशेष योग होते हैं, तो ऐसे जातक को एक उत्तम जीवनसाथी मिलने की अधिक संभावना होती है। इसके अलावा, अनुभवी ज्योतिषियों का भी मानना है कि यदि कुंडली में ‘संगम योग’ है तो ऐसे में दो लोगों की संगतता भी बहुत मजबूत होती है और यह योग जातक के जीवनसाथी से संबंधित होता है। ज्योतिष आचार्यों  का यह भी मत है कि, अगर कुंडली में कुछ दोष या मंगल दोष है तो, ऐसे जातक को एक उत्तम जीवनसाथी मिलने में विलंब का सामना करना पड़ता है या उसे उचित व योग्य साथी खोजने में थोड़ी मेहनत भी करनी पड़ सकती है।

ज्योतिष में : प्रेम विवाह 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जन्म कुंडली के आधार पर किसी भी जातक के प्रेम विवाह के योग का पता लगाया जा सकता है। कुछ ग्रहों की गणना के अनुसार, जन्म कुंडली में कभी-कभी ऐसे योग भी बनते हैं जो प्रेम विवाह के योग माने जाते हैं। इसके अलावा कई जातक प्रेम विवाह करना चाहते हैं; परंतु उनके उचित योग नहीं बन पाते जिससे कि प्रेम विवाह में समस्याएं उत्पन्न होती हैं। क्योंकि जातक की कुंडली में प्रेम विवाह के कारक योग नहीं बनते हैं इसलिए उनके प्रेम विवाह में कई अड़चन आती हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,  जन्म कुंडली में ‘प्रेम विवाह’ का योग तब निर्मित होता है, जब मंगल ग्रह, राहु ग्रह से या शनि ग्रह से एक साथ मिल रहा हो। इसके अलावा जब किसी जातक की कुंडली में सप्तमेश पर राहु, शुक्र या शनि की दृष्टि विराजमान हो तब प्रेम विवाह का योग निर्मित होता है। ऐसे जातक के प्रेम विवाह करने की अधिक संभावना होती है।

विवाह ज्योतिष में : विवाह में बाधक परिस्थितियां

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी जातक की दशा या अंतर्दशा विवाह के लिए उपयुक्त हैं तो ग्रहों के गोचर की जानकारी होना भी अति आवश्यक होती है। सबसे पहले कुंडली में गुरु ग्रह और शनि ग्रह की सहमति होना जरूरी होनी चाहिए। जब कुंडली में गुरु और शनि ग्रह गोचर के समय लग्न भाव से सातवें स्थान से संबंध बनाते हैं, चाहे दृष्टि द्वारा या अपनी स्थिति द्वारा, तब कुंडली में विवाह योग का निर्माण होता है। कुंडली के जिन भावों में ग्रह गोचर करते हैं, उन भावों से संबंधित अष्टक वर्ग के नंबर अवश्य होने चाहिए, अन्यथा ग्रहों की मंजूरी के उपरांत भी विवाह के योग में समस्या आती है। इसी प्रकार मंगल ग्रह और चंद्र ग्रह का संबंध, पांचवें और नौवें भाव से होना चाहिए। इसी के साथ शुभ और सुखी विवाहित जीवन के लिए कुंडली के बारहवें और ग्यारहवें भाव का शुभ होना भी आवश्यक है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली का छठा और दसवां भाव विवाह में रुकावट उत्पन्न करता है।

विवाह ज्योतिष

इसके अलावा कभी-कभी कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्रों की खराब स्थिति का प्रभाव भी वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। जिसके परिणाम  स्वरूप कुछ जातकों को विवाह में बहुत विलंब का सामना करना पड़ता है तो कुछ जातकों के विवाह में बहुत सी बाधाएं आती हैं। इसके अलावा कुछ लोगों को कुंडली में दोष के कारण भी वैवाहिक जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, कुछ जातकों की कुंडली में ऐसे योग भी होते हैं जिनके कारण उनके विवाह में रुकावट आती है। कुछ कारण इस प्रकार है-

  1.  ज्योतिष के अनुसार, अगर कुंडली में मांगलिक दोष हो तो जातक के विवाह में बार-बार बाधा आती है।
  2.  इसके साथ ही जातक के सातवें भाव का स्वामी यदि अपनी नीच राशि में विराजमान हो तो वह बलहीन हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप विवाह में देरी होती है।
  3. यदि कुंडली में बृहस्पति यानी गुरु ग्रह, दुष्ट या अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो,तो भी यह विवाह में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न करता है।
  4. यदि कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ भाव या अशुभ ग्रहों के सम्बंध से कमजोर स्थिति में हो तो भी जातक को विवाह और कैरियर में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।।
  5. इसके साथ ही जन्म कुंडली के नौवें अंश को नवमांश कहा जाता हैं और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवमांश कुंडली में दोष होने पर भी जातक के विवाह में देरी होती है।

ज्योतिष में: कुंडली में मंगल दोष क्या होता है?

ज्योतिष शास्त्र में सभी नौ ग्रहों में मंगल ग्रह को सेनापति की उपाधि दी गई है। इसे उग्र ग्रह की संज्ञा दी गई है। कुंडली में मंगल ग्रह की दशा यदि खराब हो तो इससे ‘मंगल दोष’ निर्मित होता है, और जातक को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि, जातक को यदि ‘मंगल दोष’ है तो उसके विवाह होने में बहुत सी कठिनाइयां होती है या देरी होती है। और यदि विवाह हो भी जाए तो विवाह के बाद भी जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता व कष्टों से भरा होता है और कई तरह की समस्याएं जीवन में लगी रहती है।

अतः विवाह से पूर्व ही इस बात की जानकारी लेना बिल्कुल भी न भूलें कि; क्या कुंडली में ‘मंगल दोष’ है या नहीं और यदि मंगल दोष है तो ज्योतिष उपायों की सहायता से  इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

ज्योतिष में : मंगल दोष के कारण 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल ग्रह का कुछ निश्चित भाव में उपस्थित होने से ‘मंगल दोष’ बनता है। साथ ही मंगल ग्रह जब किसी जातक की कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में विराजमान हो तो, इससे मांगलिक या मंगल दोष निर्मित होता है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह की ऐसी स्थिति वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं मानी जाती है। इसके अलावा कुछ ज्योतिषी तो मंगल दोष को तीन लग्न (चंद्र, सूर्य और शुक्र) की दृष्टि से भी देखते है। अतः विवाह और वैवाहिक जीवन से संबंधित परेशानियों से बचने के लिए लड़का या लड़की को मंगल दोष के सभी उपायों को जरूर करना  चाहिए।

विवाह ज्योतिष के अनुसार : मंगल दोष के कुछ आसान उपाय

हमारे ज्योतिषाचार्यों ने मंगल दोष के अशुभ प्रभाव को कम करने के कुछ आसान से उपायों को बताया है, जो इस प्रकार है- 

  • ज्योतिष के परामर्श के अनुसार, मंगल दोष के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु मंगल ग्रह की शांति व पूजा करें।
  • प्रति मंगलवार के दिन व्रत रखें और हनुमान मंदिर जाकर बूंदी का प्रसाद वितरित करें।
  • संभवत मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें।
  • मंगलवार के दिन लाल रंग के वस्त्र धारण कर हनुमान जी की विधिवत पूजा करें और हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।
  • यदि मंगल ग्रह की शांति चाहते है तो ज्योतिष की सलाह से तीन मुखी रुद्राक्ष या फिर मूंगा रत्न धारण करें मंगल की शांति हेतु यह शुभ होता है।
  • साथ ही घर आए मेहमानों को मिठाई का सेवन कराने से कुंडली में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है।
  • यदि कुंडली में मंगल दोष है तो विवाह से पूर्व नीम का पेड़ लगाएं और 43 दिनों तक पेड़ की देखरेख करें। इससे भी मंगल ग्रह के दोष को दूर किया जा सकता है।

विवाह ज्योतिष:  विवाह के पूर्व कुंडली मिलान

हमारे धार्मिक ग्रंथों, वैदिक शास्त्र व पुराने समय से ही विवाह हेतु कुंडली मिलान करना एक महत्वपूर्ण पहलू माना गया है। वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए कुंडली मिलान के समकक्ष है। हिंदू समाज में, विशेष रूप से भारत में, जहां व्यवस्थित विवाह किया जाता है, विवाह प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ने हेतु कुंडली का मिलान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही भावी वर-वधु की कुंडलियां मिलाने से उन्हें यह भी ज्ञात हो जाता है कि सभी सितारे उनके विवाह को कैसे प्रभावित कर सकते हैं और शाश्वत वैवाहिक आनंद को सुनिश्चित करने हेतु क्या उपाय करने की आवश्यकता है। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि कुंडली मिलान का मुख्य कारण लड़का व लड़की के परस्पर गुणों की जानकारी व मिलान की जानकारी भी प्रदान करता है।

विवाह के पूर्व परामर्श क्यों आवश्यक है? 

विवाह पूर्व परामर्श एक चिकित्सा पद्धति है जो जोड़ों को उनके विवाह के लिए मानसिक रूप से तैयार होने में मदद करती है। इसे अक्सर उन संघर्षों और समस्याओं को दूर करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है जिनका सामना एक जोड़े को स्वस्थ, खुश और मजबूत रिश्ते को बनाए रखने में करना पड़ता है। कुछ लोग इसे युगल परामर्श भी कहते हैं, लेकिन अंततः मुद्दा युगल की अपने रिश्ते के बारे में चिंताओं को दूर करना और उनके संचार में सुधार करते हुए सीमाएँ स्थापित करना है। शादी के बंधन में बंधने से पहले विवाह पूर्व परामर्श में भाग लेने के कई फायदे हैं। संचार को बेहतर बनाने, पिछले मुद्दों पर चर्चा करने, समस्याओं को प्रभावी ढंग से हल करना सीखने और एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जानने के लिए युगल चिकित्सा आवश्यक है। यही कारण है कि हम इसके महत्व पर जोर देते हैं।

विवाह ज्योतिष

हिन्दू धर्म में , विवाह से पूर्व वर-वधू की कुंडली के मिलान को महत्व दिया जाता है। यदि दोनों की कुंडली ठीक से मेल नहीं खाती है, तो यह वैवाहिक जीवन में कई प्रकार से समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन में दो लोगों की अनुकूलता भी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यदि अगर दो लोगों के बीच परस्पर गुणों की अनुकूलता न होने पर संबंध टूट भी जाते हैं।

ज्योतिष में : तलाक और अलगाव के कारक 

सप्तमेश छठे घर में बैठा हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो अचानक अलगाव हो सकता है। अलगाव और तलाक योग के लिए एक और ग्रहीय संयोजन तब होता है जब 7वां स्वामी छठे घर में बैठता है और उस पर शनि की दृष्टि होती है, जिसके कारण लंबे समय तक अदालती मामला चलेगा, फिर तलाक होगा।

यदि उपर्युक्त ग्रहों में से कम से कम दो या अधिक ग्रह सातवें घर और उसके स्वामी को प्रभावित करते हैं, तो व्यक्ति अपनी पत्नी या पति से अलग हो जाता है। यदि वे चौथे घर और उसके स्वामी को प्रभावित करते हैं, तो व्यक्ति को अपना घर या जन्म का देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसलिए हम अलगाव या तलाक के लिए कुछ योग प्रदान करते हैं-

क्या आप शांतिपूर्ण तथा सामंजस्य पूर्ण जीवन की तलाश में हैं? तो अभी परामर्श हेतु ‘मंगल भवन’ के ज्योतिष आचार्यों से सलाह ले सकते है।

  1. यदि तीन ग्रहों की दृष्टि सातवें भाव पर हो या सातवाँ भाव अशुभ या अशुभ ग्रह के बीच हो।
  2. यदि सप्तमेश छठवें,  आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से युत हो।
  3. यदि सप्तम भाव का स्वामी नीच राशि का हो या सप्तमेश सूर्य या अन्य ग्रहों के साथ घनिष्ठ संबंध में हो।
  4. जब, सातवें भाव का स्वामी और कारक सभी पाप ग्रहों से पीड़ित, युक्त, युक्त या दृष्ट हो, तो वैवाहिक जीवन में संघर्ष और दुख का संकेत मिलता है।
  5. दूसरा भाव परिवार का भाव होता है इसलिए यह भाव भी महत्वपूर्ण होता है। यदि दूसरा भाव और उसका स्वामी अशुभ ग्रहों से प्रभावित हो या अशुभ ग्रहों के बीच घिरा हो तो बुरा परिणाम संभव है।
  6. विवाह और वैवाहिक जीवन सुख के लिए शुक्र सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। शुक्र, जीवन के किसी चरण में हमें परिवार में खुशियों की कमी का एहसास होगा। यदि नीच राशि हो, अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो, या 7/8 और कुंडली के चौथे भाव में वक्री शुक्र हो तो तलाक की संभावना अधिक होती है। जब शुक्र कृतिका, मूल, अरिद्रा या ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो बहुत बुरा और अशुभ फल देता है।
  7.  छठा भाव कानूनी विवादों को दर्शाता है, इसलिए यदि छठे भाव का स्वामी व  सातवें भाव के स्वामी या कारक के साथ संबंध बनाता है, तो कानूनी कार्रवाई और अलगाव हो सकता है।

ज्योतिष व विवाह से सम्बंधित- सामान्यप्रश्न- FAQ


Q. क्या मंगल दोष विवाह को प्रभावित करता है?

An. ज्योतिषियों के अनुसार, दूसरे घर में स्थित मंगल को मंगल दोष के लिए माना जाता है। प्रथम भाव जीवनसाथी के भाव का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार यह आम तौर पर वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है जिससे अनावश्यक झगड़े होते हैं।

Q. मंगल दोष कितने साल तक रहता है?

An.ज्योतिष के अनुसार कुछ लोगों की कुंडली में केवल 28 वर्ष तक ही मंगल दोष रहता है, वहीं मेष, कर्क, वृश्चिक राशि वाले लोगों में भी मंगल दोष जीवनभर के लिए नहीं रहता है। यदि कुंडली में पूर्ण या आंशिक मंगल दोष है तो विवाह से पहले कुछ ज्योतिष उपायों को जरूर कर लेना चाहिए।

Q. कुंडली में तलाक के योग कब बनते हैं?

An. छठे या आठवें भाव के स्वामी का सप्तम भाव के स्वामी के साथ होने से भी वैवाहिक समस्याएं पैदा करता है। वहीं, अगर किसी की कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में किसी अन्य अशुभ ग्रह से जुड़ा हो व लग्न कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो तलाक के योग बनते हैं।

Q. विवाह हेतु कितने गुण मिलने चाहिए?

An. विवाह के लिए वर और वधु के कम से कम 18 गुणों का मिलना ठीक माना जाता है। कुल 36 गुणों में से 18 से 21 गुण मिलने पर मिलान मध्यम माना जाता है।  इससे अधिक गुण मिलने पर उसे शुभ विवाह मिलान कहते हैं।  किसी भी वर और वधु का 36 गुण मिलना अत्यंत ही दुर्लभ माना जाता है।

Q. विवाह के लिए 36 में से 36 गुण मिलना अच्छा है या बुरा?

An.विवाह के लिए सबसे पहले कुंडली मिलान में गुण मिलान किया जाता है जिसमे 36 गुणों का पूर्णांक होता है 18गुण से अधिक गुण मिलान उत्तम होता है यदि किसी के 36 में से 36 गुण मिल जाएं तो लौकिक दृष्टि शुभ तो है पर आध्यात्मिक दृष्टि से ऐसे वैवाहिक जीवन विशेष संघर्ष के साथ व्यतीत होते है। क्यों 36 गुण भगवान राम और माता सीता के मिले थे तो विवाह के उनका पूरा जीवन संघर्ष में बीता।

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