सूर्य-चन्द्रमा की युति | क्या अशुभ होगा सूर्य और चंद्र के एक साथ होने से

सूर्य-चंद्र की युति

कुंडली के बारह भावों में सूर्य-चंद्र की युति- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चन्द्रमा को स्त्री ग्रह कहा गया है;जो कि मन का कारक है, सूर्य को आत्मा का स्थान दिया गया है। इस प्रकार सूर्य और चंद्र की युति अगर कुंडली के किसी शुभ भाव में हो तो यह बहुत अच्छा परिणाम देती है। ऐसे जातक की कल्पना शक्ति बहुत बलशाली होती है वह उच्च पद पर सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकता है। ऐसे जातक को साहित्य की अच्छी समझ होती है।

ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में इन दोनों ही ग्रहों का शुभ स्थिति में होना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कुंडली में इन दोनों ग्रहों के शुभ प्रभाव से जातक के जीवन से तमाम परेशानियों का अंत होने लगता है। जैसा कि हमने बताया, सूर्य को आत्मा का कारक व चंद्रमा मन का कारक होता है और सफलता के लिए आत्मा और मन का संतुलित होना बेहद ही आवश्यक होता है।

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  1. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चन्द्र ग्रह, सूर्य से जितनी अधिक दूरी पर होता है; उतना बल प्राप्त करता है।
  2. ज्योतिष शास्त्र में इस बात की भी पुष्टि की गई है किसी जातक की कुंडली में चौथे भाव के स्वामी चन्द्र और पांचवें भाव के स्वामी सूर्य की युति केंद्र या त्रिकोण की युति होती है ; जो कि राजयोग का निर्माण करती है।
  3. इसके साथ ही सूर्य दाई आँख तो चन्द्र बाई आँख का प्रतिनिधि है। और सूर्य दायां व चन्द्र बायाँ है। सूर्य पिता व चन्द्र माता है तो इन्हीं शुभ योगों से सृष्टि का संचार होता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, कुंडली में जातक के जीवन का संपूर्ण राज, व ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा होता है।

ज्योतिष में सूर्य व चंद्र के युति से ‘अमावस्या योग’ का निर्माण होता है। दीपावली पर जन्म लेने वाले जातक बहुत भाग्यशाली होते हैं और अन्य अमावस्या पर जन्म लेने वाले जातक दोष युक्त माने जाते हैं। इस प्रकार अमावस्या के योग पर जन्म समय नक्षत्र की गणना कर लेने से जातक के भाग्य के बारे में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अलावा सूर्य व चन्द्र युति के फल कथन में शनि, मंगल, राहु, केतु के परिणाम पर बहुत सारे तथ्यों को बताया गया है।

ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य और चंद्रमा को एक दूसरे से अलग और दूर होने के तथ्य को अधिक श्रेष्ठ बताया है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह दोनों ग्रह जितने एक-दूसरे से दूर होंगे उतने ही शुभ प्रभाव जातक को देंगे। चंद्रमा, सूर्य से जितनी दूरी पर होगा उतना ही बलि अवस्था में होगा। इसके अलावा, जब यह दोनों ग्रह मिलकर साथ में युति करते हैं तो इससे ‘अमावस्या योग’ का निर्माण होता है। अमावस्या योग के प्रभाव को जातकों के लिए शुभ नहीं माना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में अमावस्या योग बनता है तो उसे चंद्रमा के शुभ प्रभावों का फल नहीं मिलता है।

जन्म कुंडली का पहला भाव  जातक के व्यक्तित्व और शारीरिक बनावट का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली के पहले भाव में चंद्रमा न केवल जातक को मानसिक शांति देता है बल्कि उसे सुन्दर, गोरा और आकर्षक भी बनाता है। वहीं लग्न में स्थित सूर्य जातक को पराक्रमी बनाता है। पहले भाव में चंद्रमा और सूर्य जातक को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने का काम करते हैं। ऐसे जातक सफलता प्राप्त करके ही दम लेते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से भावुक और निडर होते हैं। चंद्रमा के अशुभ या नकारात्मक प्रभाव में जातक का मन हर समय क्रोध और संदेह से भरा रहेगा। इसके साथ ही पहले भाव में सूर्य की स्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण भी बनती है।

जन्म कुंडली का दूसरा भाव धन का भाव कहलाता है। यहां उपस्थित चंद्रमा-सूर्य की युति जातक को बहुत धनवान बनाती है। ऐसे जातकों को सरकारी नौकरी मिल जाती है। धन भाव में चंद्रमा और सूर्य की उपस्थिति जातक को धन के साथ-साथ प्रसिद्धि भी दिलाती है। उन्हें परिवार के सदस्यों का सहयोग मिलता है। हालांकि वित्तीय क्षेत्र में कई कठिनाइयां आ सकती हैं। जातक को दांतों और मसूड़ों से संबंधित समस्या रहेगी। 

जन्म कुंडली का तीसरा भाव बुद्धि और पराक्रम का भाव होता है। तीसरे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति जातक को चतुर और शक्तिशाली बनाती है। ऐसे लोगों की बुद्धि बहुत तीव्र होती है और ये अपने बल और बुद्धि के उचित प्रयोग से धन कमाते हैं। इसके साथ ही ये जातक अपनी आवाज से सभी का मन आसानी से आकर्षित कर लेते हैं। यह हर तरह की मेहनत करने में सक्षम होते है। लेकिन इनकी गलत भाषा इनके लिए अपने मित्रों को भी शत्रु बनाने का काम कर सकती है। 

जन्म कुंडली का चौथा भाव धन और संपत्ति का प्रतिनिधित्व करता है। जब सूर्य और चंद्रमा इस भाव में हों तो ऐसे जातक में क्रोध और प्रेम समान मात्रा में होता है। ऐसे जातक को हर कार्य में अपनी मां का सहयोग मिलता है। साथ ही इन जातकों में अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पित होने का भाव होता हैं। ऐसे जातक समृद्धशाली होते हैं और उन्हें अपने माता-पिता के साथ-साथ अपनी मेहनत से भी धन विरासत में प्राप्त होती है। यदि इस भाव में सूर्य किसी अशुभ प्रभाव में हो तो जातक का अपने पिता से सम्बन्ध खराब करता है। ऐसे जातक का पालन-पोषण या तो उसके पिता या उसकी माँ द्वारा किया जाता है। 

जन्म कुंडली का पांचवां भाव संतान, शारीरिक संबंधों और रचनात्मकता को दर्शाता है। इस भाव में सूर्य का प्रभाव अत्यंत शुभ फल देता है। पांचवें भाव में चंद्र-सूर्य की युति जातक को स्वस्थ बनाती है। इसके साथ ही इन लोगों में हमेशा दूसरों की वस्तुओं और संपत्ति को हासिल करने की चाह रहती है। ऐसे जातक इंजीनियरिंग या मेडिकल क्षेत्र से जुड़े होते हैं। ये जातक स्वभाव से बहुत दयालु होते है। लेकिन सूर्य और चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से ये जातक जिद्दी और आक्रामक भी हो सकता है। साथ ही इन जातकों को संतान प्राप्ति में समस्याएं आती हैं। 

जन्म कुंडली का छठा भाव रोग और ऋण का प्रतिनिधित्व करता है। छठे भाव में  सूर्य-चंद्र-की युति जातक को शत्रुओं पर विजय बनाने का कार्य करती है; उसके शत्रु भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते। ऐसे जातक सदैव ऊर्जावान रहते हैं। कपड़े से सम्बंधित व्यवसाय से जुड़े जिससे खूब धन व लाभ मिलता है। इसके अलावा ग्रहों के अशुभ प्रभाव से उन्हें अपने वैवाहिक जीवन में अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जातक को रक्त संबंधी रोग होते हैं। 

जन्म कुंडली का सातवां भाव जीवन साथी, विवाह और साझेदारी का भाव होता है। इस भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति होने से व्यक्ति गौर वर्ण, आकर्षक और सुंदर शरीर वाला होता है। इस भाव में चंद्रमा और सूर्य की उपस्थिति के कारण जातक को सुन्दर व तेजस्वी जीवन साथी मिलता है। इनका जीवनसाथी बहुत समझदार और हर काम में सहयोग करने वाला होता है। इसके साथ ही ऐसे जातक किसी न किसी कला में माहिर होते हैं और अपनी कला से धन कमाते हैं। सूर्य की अत्यधिक ऊर्जा जातकों और उनके जीवनसाथी के बीच मतभेद पैदा करती है। कभी-कभी चंद्रमा की नकारात्मकता के कारण ये अत्यधिक स्वार्थी हो जाते हैं। 

जन्म कुंडली का आठवां भाव उम्र, मृत्यु और अचानक होने वाली घटनाओं को दर्शाता है। इस भाव में सूर्य-चंद्रमा होने से जातक अपने माता-पिता का आज्ञाकारी व उनके लिए ही अपना जीवन व्यतीत करता है। ऐसे जातक अपनी कला से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इसके साथ ही इन जातकों को गुप्त रूप से लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वे चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हैं और एक सफल डॉक्टर भी होते हैं। साथ ही, महिला रिश्तेदारों और मित्रों से संबंध खराब हो सकते हैं। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों झेलनी पड़ती है।

जन्म कुंडली का नौवां भाव भाग्य, तीर्थयात्रा और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। इस भाव में चंद्रमा और सूर्य की युति होने से जातक, आध्यात्मिक और धार्मिक होता है। ऐसा व्यक्ति किसी मंदिर या धार्मिक स्थान का सचिव भी हो सकता है। वे सरकारी क्षेत्र में काम करते हैं। साथ ही वे बहुत शक्तिशाली होते हैं। कभी-कभी ये धर्म के प्रति कट्टर हो जाते हैं। भूमि एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उत्पन्न होंगी। 

जन्म कुंडली का दसवां भाव रोजगार, व्यवसाय, सफलता और प्रतिष्ठा को दर्शाता है। इस भाव में सूर्य और चंद्रमा की उपस्थिति के कारण लोग आईएएस, आईपीएस आदि सरकारी पदों पर नियुक्त होते हैं। ये अपनी मेहनत से इतना धन कमा लेते हैं कि उनकी संतान का भविष्य बहुत अच्छे से व्यतीत होता है। ऐसा जातक समाज के लिए समाज सुधारक भी हो सकता है। वे अपने पिता के बताये रास्ते पर चलते हैं। परिवार के लिए सब कुछ करने के बाद भी सम्मान नहीं मिलता है। और ऊँचे पद पर होने के बाद भी जातक को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सूर्य-चंद्र की युति

जन्म कुंडली का ग्यारहवां भाव लाभ और आय का भाव होता है। यदि इस भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति हो तो जातक को माता और पिता से धन मिलता है। ऐसे लोग अपने मित्र सहभागियों की मदद करने वाले होते हैं। उन्हें महिलाओं से भी विशेष लाभ होता है। इन जातकों को अपने मित्रों का सहयोग नहीं मिलता। संतान प्राप्ति में भी समस्याएं आती हैं।

जन्म कुंडली का बारहवां भाव त्याग और मोक्ष का भाव होता है। बारहवें घर में सूर्य और चंद्रमा की युति न केवल व्यक्ति को भावुक बनाती है, बल्कि ऐसा व्यक्ति अपना जीवन अपने जन्मस्थान से दूर भी व्यतीत करता है। उन्हें जीवन में उपभोग की प्रत्येक वस्तु प्राप्त होती है। ऐसे जातक घर से दूर जाकर धन कमाते हैं। वे अपने स्वार्थ के लिए अनैतिक रास्ते पर भी चल पड़ते हैं। ऐसा जातक या तो गलत संगत में फंस जाता है या कर्ज में डूब जाता है। 

किसी अशुभ प्रभाव या ग्रहों की युति से मिलने वाले अशुभ प्रभाव को पूर्णतः खत्म तो नहीं किया जा सकता परन्तु, एक अनुभवी ज्योतिषाचार्य के बताए गए कुछ आसान से उपायों कर उनके बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है। ये उपाय कुछ इस प्रकार हैं-

  1. सोमवार के दिन भगवान शिव जी की पूजा करें और शिवलिंग पर जल अर्पित करें। 
  2. जरूरतमंद लोगों को चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं (सफेद वस्तुओं) का दान करें। 
  3. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें  व रात को जल्दी सोए। 
  4. संभव हो तो अमावस्या के दिन व्रत रखें।  
  5. किसी भी प्रकार के नशे व मांस मदिरा का सेवन ना करें।


Q. सूर्य चंद्र की युति क्या है?

An.सूर्य और चंद्रमा की युति साथ में अमावस्या योग का निर्माण करती है। चंद्रमा को स्त्री ग्रह कहा गया है; जो कि मन का कारक है, सूर्य को आत्मा का स्थान दिया गया है। इस प्रकार सूर्य और चंद्र की युति अगर कुंडली के किसी शुभ भाव में हो तो यह बहुत अच्छा परिणाम देती है।

Q. सूर्य और चंद्रमा में क्या संबंध है?

An. सूर्य एक ग्रह है जबकि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। सूर्य के प्रकाश से ही चंद्रमा प्रकाशित होता है। अमावस्या के दिन चंद्रमा सूर्य के साथ होता है इसलिये रात में अंधेरा रहता है।

Q. कुंडली के पहले भाव में सूर्य-चंद्र की युति का क्या प्रभाव होता है?

An. कुंडली के पहले भाव में चंद्रमा न केवल जातक को मानसिक शांति देता है बल्कि उसे सुन्दर, गोरा और आकर्षक भी बनाता है।

Q. क्या, सूर्य-चंद्र की युति का प्रभाव अशुभ होता है?

An. नहीं, कुंडली के विभिन्न भावों में सूर्य-चंद्र की युति से शुभ व अशुभ दोनों परिणाम मिलते हैं।

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