शनि व चंद्र की युति | कुंडली के बारह भावों में शनि व चंद्रमा, क्या होगा अशुभ योग

शनि व चंद्र की युति

कुंडली के बारह भावों में शनि व चंद्र की युति – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के जिस भाव में शनि व चंद्र की युति होती है वह उस भाव के गुणों और सुख को नष्ट कर देते हैं। इसके साथ ही इस युति से बहुत ही अशुभ योग बनता है।

इस योग से जीवन में अपार अपमान व कष्ट भी मिलते है। इस युति से बनने वाले अशुभ योग से प्रभावित जातक को बार-बार विश्वासघात का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि शनि और चंद्रमा में 12 डिग्री का अंतर हो, तो यह योग नहीं बनता है।

Table of Contents

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, चंद्र ग्रह किसी भी ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानते हैं उनकी दृष्टि में सभी समान है परंतु शनि ग्रह चंद्र को अपना शत्रु मानते हैं क्योंकि चंद्र सुख का कारक और शनि दुःख के कारक ग्रह होते है। सुख-दुःख परस्पर विपरीत है और इसी वजह से जन्म कुंडली में शनि-चंद्र से साथ होने से बनने वाले योग का होना अशुभ माना जाता है। 

इसके अलावा चंद्र व शनि के नक्षत्र में , शनि के अशुभ होने पर या एक-दूसरे के राशि में स्थित होने पर भी जातक, विवाह में देरी, बाधा तथा मानसिक अशांति को प्राप्त करता है। 

ज्योतिष के अनुसार, शनि व चंद्र की युति से जो अशुभ योग बनता है इस योग से प्रभावित जातक को सदैव बहुत सी अतिरिक्त चिंताओं से दूर व शांत रहकर अपना जीवन बिताना चाहिए। इन जातकों को यह मानकर चलना चाहिए कि चिंता करने से समाधान नहीं मिलता अधिक चिंता करने से जातक की मानसिक स्थिति खराब हो जाती है। शनि-चंद्र की युति से बनने वाले इस (विष योग) में इन सभी आसान से उपायों द्वारा इस योग के अशुभ फल को कम किया जा सकता है। इसके साथ भी यह बात पूर्ण रूप से सत्य है कि शनि-चंद्र की युति से बनने वाले योग से जातक को मानसिक तनाव बहुत अधिक मात्रा में मिलता है। 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, शनि और चंद्रमा की युति, ‘जिसे शनि-चंद्र विष योग’ के रूप में भी जाना जाता है, इसे बहुत ही अशुभ संयोग माना जाता है। नौ ग्रहों के परस्पर युति करने के असंख्य योगों में से शनि-चंद्र के योग को सबसे शक्तिशाली एक योग माना जाता है। ‘मंगल भवन’ के इस लेख में आज हम शनि व चन्द्र की युति के अशुभ प्रभावों के बारे में विस्तार  से चर्चा करेंगे- 

जन्म कुंडली के किसी भी एक भाव में जब शनि और चंद्रमा साथ में होते हैं तब शनि-चंद्र की युति बनती है और इस युति के कारण ‘विष योग’ बनता है जो कि बहुत ही अशुभ योग माना जाता है। चंद्र ग्रह सभी ग्रहों में सबसे तेज गति से चलने वाला ग्रह है और इसका प्रभाव जातक के मन, भावनाओं और मानसिक स्थिति पर पड़ता है। दूसरी ओर, शनि ग्रह सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है जो कि कड़ी मेहनत, अनुशासन, सीमाओं और बाधाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के पहले भाव यानी लग्न भाव में शनि व चंद्रमा की युति हो तो ऐसे जातक अक्सर मौसमी बीमारियों से परेशान रहते है। साथ ही ऐसे जातक स्वभाव के शर्मीले अपनी बात खुलकर किसी के सामने करने में असमर्थ रहते हैं। इस योग के अशुभ प्रभाव से ये जातक बचपन से ही माता-पिता के प्रेम से वंचित रहते हैं जिससे इनका पालन-पोषण किसी अन्य स्त्री (मौसी) द्वारा किया जाता है। साथ ही इन जातकों के सिर या नसों में दर्द रहता है। शारीरिक रूप से रोगी व चेहरा निस्तेज रहता है। इसके अलावा इन जातकों में तेज व उत्साह की भी कमी होती है। आर्थिक रूप से भी समृद्धि नहीं मिलती है।  नौकरी में प्रमोशन, विवाह में देरी, वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता। कुल-मिलाकर ऐसे जातक का कठिनाइयों से भरा रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के दूसरे भाव में शनि और चंद्रमा की युति से प्रभावित जातक पिता की संपत्ति से वंचित रहते हैं। इसके साथ ही इन जातकों को अपने किसी भी कार्य सफलता नहीं मिलती है। नौकरी करना ही इन जातकों के लिए अच्छा रहता है। घर के मुखिया मृत्यु हो जाने से बचपन आर्थिक तंगी में गुजरता है। पैतृक संपत्ति मिलने में भी समस्या आती है। इन जातकों की वाणी कटुक होती है। ऐसे जातक कंजूस होते हैं। शनि और चंद्रमा की युति के अशुभ प्रभाव से जातक को धन कमाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। इसके अलावा दांत, गले और कान संबंधी रोग होने की आशंका हो सकती है।

कुंडली के तीसरे भाव में शनि और चंद्रमा की युति हो और साथ में विष योग हो तो ऐसे जातक का अपने भाइयों से सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते है। ऐसे जातक बहुत भावुक प्रवृत्ति के होते है और अक्सर धोखे का शिकार हो जाते हैं। ऐसे जातक अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाते। नौकरी करके अपना जीवन यापन करते हैं। यात्रा में बाधाएं आती हैं। श्वांस संबंधी रोग होने की सम्भावना रहती है।

कुंडली के चौथे भाव में शनि-चंद्र की युति के कारण प्रभावित जातक के माता पक्ष को कष्ट रहता है। परिवार में अशांति रहती है। हृदय रोग हो सकते हैं। माता के सुख में कमी रहती है या माता से विवाद की स्थिति रहती है। किसी कारणवश जन्म स्थान से दूर रहना पड़ सकता है। जीवन की मध्य आयु में आय के साधनों में वृद्धि हो सकती; लेकिन अंतिम समय में फिर धन की कमी परेशान करेगी। ऐसे जातकों की आयु लंबी होती है। उनकी मृत्यु के बाद ही उनकी संतान का भाग्य निर्धारित होता है। स्वास्थ्य संबंध में पुरुषों में हृदय रोग और महिलाओं में स्तन संबंधी रोग होने की संभावना हो सकती है। 

ज्योतिष शास्त्र में, कुंडली के पांचवे भाव में यदि शनि-चंद्र की युति हो तो ऐसे जातकों की शिक्षा प्राप्ति में बाधा आती है। संतान पक्ष के लिए भी यह बहुत अशुभ रहती है। शेयर या वित्तीय बाजार में धन हानि की आशंका होती है। विष योग होने के अशुभ प्रभाव से विद्या प्राप्ति में बहुत बाधा आती है। वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं रहता है। संतान प्राप्ति में देरी हो सकती है या संतान मंदबुद्धि हो सकती है। 

जन्म कुंडली के छठे भाव में शनि-चंद्र की युति में विष योग का भी निर्माण होता है तो ऐसे जातकों का मामा पक्ष से विवाद होता है। शत्रुओं पक्ष से भी हानि हो सकती है। स्वास्थ्य के सम्बन्ध में लम्बे समय से कोई बीमारी हो सकती है। इसके अलावा जातक को ननिहाल पक्ष से कोई मदद प्राप्त नहीं होती। व्यवसाय में बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। 

जन्म कुंडली के सातवें भाव में शनि-चंद्र की युति हो तो यह जातक के जीवन साथी के स्वास्थ्य को हानि देता है। ससुराल पक्ष से विवाद की स्थिति बनी रहती है और मित्र पक्ष से भी विशेष लाभ नहीं मिलता। यदि किसी स्त्री की कुंडली में इस युति से विष योग बन रहा हो तो यह उसके दूसरे विवाह का कारण बनता है। किसी पुरुष की कुंडली में यह योग बन रहा हो तो यह विवाह में अधिक देरी का कारण बनता है। इसके साथ ही संतान प्राप्ति में भी समस्या आती है। वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता है। साझेदारी के व्यवसाय में धन हानि होती है। 

कुंडली के आठवें भाव में शनि-चंद्र की युति से प्रभावित जातक व्यसन योग बनने से अचानक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर रहता है। इसके साथ ही शनि के अशुभ प्रभाव से इन जातकों की रूचि गुप्त विद्याओं में भी अधिक रहती है। ऐसे जातकों को कोई लंबी बीमारी व गुप्त रोग हो सकते हैं। जीवन में ऐसे जातक कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। इन जातकों का अंत समय कष्टों से भरा रहता है। 

कुंडली के नौवें भाव में शनि और चंद्रमा की युति, के कारण जातक को भाग्य का साथ नहीं मिलता है। पिता पक्ष से मतभेद रहते हैं। ऐसे जातक को यात्रा में कष्ट का सामना करना पड़ता है। कार्य में बहुत विलंब से सफलता मिलती है। यात्रा में हानि भी उठानी पड़ सकती है। ऐसे जातक प्रायः ईश्वर में कम विश्वास रखने वाले होते हैं। स्वास्थ्य सम्बन्ध में कमर और पैरों में दर्द रहता है। जीवन में कोई कार्य स्थिर नहीं रहता है। भाई-बहनों से संबंधों में अनबन रहती है। 

कुंडली के दसवें भाव में शनि-चंद्र की युति से विष योग बनने से ऐसे जातकों के कार्यस्थल पर कई शत्रु बन जाते हैं। इस योग के कारण जातक को सफलता में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पिता पक्ष से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी में समस्या व व्यवसाय में हानि उठानी पड़ती है। पैतृक संपत्ति मिलने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती व वैवाहिक जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। 

शनि व चंद्र की युति

कुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि और चंद्रमा की युति के कारण जातक को उसके मित्र पक्ष से धोखा मिलता हैं और ऐसे जातक को अपने प्रेम की तलाश रहती है। शनि के अशुभ प्रभाव से ऐसे जातक की संगत बुरे दोस्तों के साथ होती है। किसी भी कार्य में लाभ नहीं होता।  संतान सुख में भी समस्या आती  है। जातक का अंतिम समय बहुत बुरी तरह व्यतीत होता है। यदि इस भाव में शनि की स्थिति बलवान हो तो यह शुभ परिणाम देता है।  

कुंडली के बारहवें भाव में शनि और चंद्रमा की युति, में यह विष योग जातक को निराशा व कष्ट देता है। ऐसे जातक अकेलेपन शिकार रहता है। यदि इस युति में राहु का प्रभाव हो तो जातक नशे व बुरी आदतों वाला होगा। यदि किसी प्रकार की कोई बीमारी है तो ठीक होने में काफी समय लग जाता है।  अशुभ प्रभाव के कारण जातक नशे की लत में पड़कर धन-संपत्ति का नाश करता है। अपने कष्टों के कारण इन जातकों को कई आत्महत्या करने के विचार भी आते हैं। 

कुल-मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि शनि और चंद्रमा की युति किसी भी भाव के लिए शुभ नहीं मानी जाती है। चंद्रमा मन का कारक होता है, और शनि मन की शक्ति को नियंत्रित कर अनुशासन का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, इस युति के शक्तिशाली प्रभाव से जातक के जीवन में अनुशासन आ जाता  है। 


Q. क्या चंद्रमा और शनि मित्र ग्रह हैं?

An.चंद्रमा किसी भी ग्रह को शत्रु नहीं मानते हैं, लेकिन शनि स्वभाव से चंद्रमा, मंगल और सूर्य के साथ शत्रुतापूर्ण होते है।

Q.कुंडली में विष दोष क्या है?

An. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, विष दोष तब बनता है जब चंद्रमा और शनि किसी भी तरह से एक साथ हों।

Q.चन्द्रमा और शनि ग्रह के एक साथ होने पर क्या होता है?

An.चंद्रमा मन का कारक होता है व शनि शरीर में अलग भागों में दर्द का कारक होता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा व शनि की युति से बनने वाले योग को विष योग कहते हैं। यदि गणना करने पर उनके बीच दृष्टि संबंध भी हो तो यह योग होता है।

Q.चन्द्रमा व शनि की युति का क्या अर्थ है?

An. किसी भी जातक की कुंडली में चंद्रमा-शनि की युति के साथ, जातक को जीवन की वास्तविकता को उसकी कठिनाइयों और सीमाओं का ज्ञान मिलता है।

Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *