Kumbh Sankranti | कुंभ संक्रांति 2023, सूर्य देव का कुंभ राशि में प्रवेश, शुभ तिथि, महत्व व पूजन

कुंभ संक्रांति

Kumbh Sankranti 2023

कुंभ संक्रांति 2023 हिंदी पंचांग में 13 फरवरी 2023 के दिन सोमवार को सूर्य देव मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। अतः इसे कुंभ संक्रांति के नाम से जाना जाएगा. इस संक्रांति के दिन पूजा, जप, तप दान-पुण्य को विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव का पूजन किया जाता है प्रातः समय जल्दी स्नान के पश्चात भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि है कि इस दिन गंगा में स्नान कर पूजा, तथा जप करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु उपरांत  मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मुख्यतः सूर्य के एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में गोचर या प्रवेश करने की प्रक्रिया को  संक्रांति कहा जाता है। सौरमंडल में घटित होने एक सौर घटना है। पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्ति होती हैं तथा प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। धार्मिक शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।

क्या होती है? संक्रांति 

‘मंगल भवन’ के वरिष्ट आचार्य तथा ज्योतिष विशेषज्ञ श्री भास्कर जी के कथन अनुसार सूर्य देव हर महीने अपना स्थान परिवर्तन करते हैं। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू संस्कृति में संक्रांति का समय अत्यंत शुभ व पुण्यदायी माना गया है। इस पवित्र दिन पितरों का तर्पण, दान-पुण्य, जाप, तथा  स्नान आदि का बहुत महत्व है। इस उत्सव को भारत के कई देशों में भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों जैसे- आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलांगना, तमिलनाडु, पंजाब तथा महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को नव वर्ष के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। वहीं कुछ राज्य जैसे- बंगाल और असम में संक्रांति के दिन वर्ष की समाप्ति की तरह माना जाता है।

कुंभ संक्रांति: शुभ मुहूर्त 

  • कुंभ संक्रांति 2023 फलम् 

सोमवार, 13 फरवरी 2023 

  • कुंभ संक्रांति पुण्यकाल 

प्रातः 07 बजकर 02 मिनट से 09 बजकर 57 मिनट तक 

  • कुंभ संक्रांति पुण्य काल अवधि 

02 घंटे 55 मिनट

  • कुंभ संक्रांति महा पुण्य काल 

प्रातः 08 बजकर 05 मिनट से 09 बजकर 57 मिनट तक

  • कुंभ संक्रांति महा पुण्य काल अवधि 

01 घंटा 51 मिनट

  • कुंभ संक्रांति क्षण 

सुबह के 09 बजकर 57 मिनट पर 

कुंभ संक्रांति: पूजन विधि व अनुष्ठान 

  • इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान आदि से निवृत होकर पूजा संकल्प लें।
  • इसके बाद शुद्ध व पवित्र होकर भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करें।
  • इस दिन जरूरतमंदों को खाद्य वस्तुओं, वस्त्रों  का दान देने से दोगुना पुण्य मिलता है। इस दिन दान करने से शुभ फलस्वरूप उत्तम धाम की प्राप्ति होती है। जीवन के अनेक दोष भी समाप्त हो जाते हैं।
  • मान्‍यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन सुख-समृद्धि पाने के लिए मां गंगा की उपासना करना चाहिए। अगर कोई कुंभ संक्रांति के अवसर पर गंगा नदी में स्नान नहीं कर पा रहें हैं;  तो आप यमुना, गोदावरी या अन्य किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं।  
  • अगर इस शुभ दिन पर सूर्यदेव के बीज मंत्र का जाप किया जाए तो जातक को अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

 इस समय निम्न मंत्र का उच्चारण जरूर करें-

‘सूर्य मंत्र: ‘एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर’।।

गायत्री मंत्र:  ‘ॐ भूर् भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्’ 

  • भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें-

“शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।

विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम

लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।” 

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कुंभ संक्रांति
कुंभ संक्रांति

कुछ प्रमुख संक्रांतियां 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियां होती हैं: जिन्हें मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला,वृश्चिक, धनु मकर, कुंभ,तथा मीन के नाम से जाना जाता है। जैसा कि लेख में बताया गया है  कि- विभिन्न राशियों में सूर्य देव के प्रवेश को ही संक्रांति खा जाता है। सूर्य भगवान इन सभी 12 राशियों से होकर गुजरते है। वैसे तो सूर्य देव का इन सभी राशियों से होकर गुजरना शुभ होता है; लेकिन हिन्दू धर्म में कुछ राशियों में सूर्य के आने को बहुत शुभ मानते हैं। 

कुंभ संक्रांति का महत्व

सूर्य देव का कुंभ राशि में प्रवेश करने की घटना को कुंभ संक्रांति कहते हैं। 13 फरवरी को सूर्यदेव मकर से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। इस कुंभ संक्रांति में ही विश्व प्रसिद्ध मेला कुंभ के मेले का संगम पर आयोजन किया जाता है। इस पवित्र दिन पर स्नान, दान, पूजन एवं सूर्य पूजा का बहुत महत्व होता है।

कुंभ संक्रांति: पौराणिक कथा 

पौराणिक मान्यता में, प्राचीन काल में जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। उस समय समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुए और अंत में अमृत भरा घड़ा प्रकट हुआ। अमृत को लेकर देवता और असुरों में संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में कलश से चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिर गई थी; प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन व नासिक। इसलिए जब सूर्य देव कुंभ राशि में गोचर करते हैं; तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया है। अतः यहां पर स्नान, दान और पूजा का खास महत्व होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ संक्रांति पूर्णिमा व अमावस्या की तिथि पर सबसे अधिक रहता है।  कहा जाता है, इन तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान व दान-धर्म से विशेष पुण्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुछ सवाल तथा उनके जवाब FAQ


Q- कुंभ संक्रांति क्या है?

An- 13 फरवरी को सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य देव का करीब एक महीने तक कुंभ राशि में गोचर करने से इसे कुंभ संक्रांति कहा जाएगा।

Q- कुंभ पर्व क्यों मनाया जाता है?

An- देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े (पवित्र घड़ा कुंभ) के लिए लड़ाई 12 दिनों तक चलती रही जो मनुष्यों के लिए 12 साल तक का माना जाता है। यही कारण है कि कुंभ मेला 12 साल में एक बार मनाया जाता है। 

Q- कुंभ संक्रांति का अधिक महत्व कब होता है?

An- कुंभ संक्रांति का महत्व पूर्णिमा तथा अमावस्या की तिथि पर सबसे अधिक शुभ माना जाता है।

Q- क्या सूर्य देव का कुंभ राशि में प्रवेश बुरा प्रभाव भी ही प्रदान करेंगे?

An- नहीं, सूर्य देव कुंभ राशि में प्रवेश के दौरान शुभ फल भी प्रदान करते हैं।

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