Importance of House in Birth chart | जन्म कुंडली में बारह भाव क्या होते हैं, जाने कुंडली के 12 भाव व उनका महत्व

कुंडली में बारह भाव

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ज्योतिष में : कुंडली के, भाव क्या होते हैं?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हम सभी की जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं जिनकी सहायता से किसी भी जातक के संपूर्ण जीवन के पहलुओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जन्म कुंडली में इन भाव को घर भी कहा जाता है। इन भाव में जो राशि विराजमान होती है उस राशि का स्वामी ग्रह उस भाव का मालिक या अधिपति होता है।

ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों में से प्रत्येक ग्रह हमारी जन्म कुंडली के एक भाव (घर) में उपस्थित होते हैं।  उन ग्रहों की स्थिति केवल हमारे व्यक्तित्व के बारे में ही नहीं अपितु हमारे अमूल्य अंतर्दृष्टि के बारे में भी बताती है। इसका यह अर्थ है कि हम सृष्टि से कैसे जुड़े हुए हैं और किस प्रकार अपने आसपास के वातावरण से संपर्क स्थापित करते हैं। इसके अलावा हमारी जन्म कुंडली के ये कुल 12 भाव हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सही दिशा निर्देश के समान होते हैं। ज्योतिषियों का कहना है कि जैसे ही सौरमंडल के ग्रह इन भावों में विचरण करते हैं; वैसे ही इनके प्रभाव से हमारे जीवन में भी विभिन्न घटनाएं घटित होने लगती है।

कुंडली में प्रत्येक भाव का अपना एक अर्थ होता है और यह जीवन के विशेष पहलुओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में भाव काफी जटिल होते हैं, जिन्हें सिर्फ ज्योतिषों के माध्यम से ही समझा जा सकता है। फिर भी इस लेख के माध्यम से हमारा यह प्रयास है कि पाठक के लिए कुंडली के भावों को समझना और भी अधिक आसान हो जाए। 

‘मंगल भवन’ के इस लेख में, आज हम जन्म कुंडली में उपस्थित सभी 12 भावों और उनके महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा  करेंगे- आइए लेख में पढ़ें-  

ज्योतिष में: कुंडली का पहला भाव 

जन्म कुंडली का प्रथम यानी पहले भाव को वैदिक ज्योतिष में स्व-भाव अर्थात स्वयं के रूप, में वर्णित किया गया है। जो जातक की  शारीरिक स्थिति, सामान्य व्यक्तित्व लक्षण, स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा, बचपन, और जीवन के प्रारंभिक शैशवकाल पर भी शासन करता है। वैदिक ज्योतिष में आम तौर पर कुंडली का पहला भाव,‘लग्न’ भाव माना जाता है। जिसका प्रभाव कुंडली के अन्य भावों पर भी देखने को मिलता है। यह सभी भावों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह जीवन के आरंभ का प्रतीक है। यह भाव नई शुरुआत और हमारे जीवन में आने वाले प्रारम्भिक परिवेश को संदर्भित करता है। 

यह तनु भाव जातकं के व्यक्तित्व, शारीरिक विशेषताओं, शक्ति, रूप और यौन आकर्षण का प्रतीक है। यह भाव हमारे प्रारंभिक अवस्था का पथ प्रदर्शन करता है। यह भाव हमारे भविष्य के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। यह संसार में हमारे व्यक्तित्व और प्रस्तुति को नियंत्रित करता है।यह हमें जीवन के प्रति दृष्टिकोण, आवश्यक क्षमताओं और बुनियादी संवेदनाओं के लिए दृष्टिकोण देता है। इनमें से प्रत्येक कारक हम में से प्रत्येक को अद्वितीय व्यक्ति बनाता है; जो बाकी लोगों से अलग हैं। 

कुंडली में पहला भाव : महत्व 

व्यक्तिगत ज्योतिषीय गणना करते हुए प्रथम भाव इस प्रकार महत्वपूर्ण है कि यह आगामी दुर्घटनाओं और दुर्भाग्य के बारे में भी सूचित करता है। इस भाव की कुछ अन्य विशेषताओं में नाम, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, माँ से विरासत में मिली संपत्ति आदि शामिल हैं। यह भाव लंबी यात्राओं के बारे में भी पूर्व संकेत देता है।

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ज्योतिष में: कुंडली का दूसरा भाव 

वैदिक ज्योतिष में द्वितीय या दूसरा भाव को धन संपत्ति और भौतिक संपत्ति का कारक बताया गया है। यह भाव जातक के सांसारिक और आर्थिक स्थिति का बोध कराता है। ज्योतिषियों ने जातक की जन्म कुंडली में इस भाव को ‘धन’ भाव के नाम से जाना जाता है जिससे जातक की जन्म कुंडली में भौतिक सुखों और आर्थिक स्थिति के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। जन्म कुंडली में यह भाव जातक की उपार्जित की हुई संपत्ति और धन का सूचक होता है। 

ज्योतिष शास्त्र में इस भाव को ‘मारकेश’ या मारक का स्थान कहते हैं। विभिन्न आचार्यों के अनुसार जन्म कुंडली के इस भाव से जातक के धन से ही नहीं अपितु उसके जीवन में होने वाली दुर्घटना, बीमारी, या किसी वाहन से संबंधित होने वाले आकस्मिक हादसे का अनुमान लगाया जा सकता है। इस भाव से जातक के जीवन स्तर और आर्थिक रूप से कितना प्रगतिवान होगा यह भी ज्ञात किया जा सकता है। 

चूंकि इस भाव से धन के आवागमन को सुनिश्चित किया जाता है इसलिए ऐसे ‘द्रव्य’ या ‘द्र्व्येश’ का स्थान कहना भी गलत नहीं होगा। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि प्रथम भाव में जातक के भौतिक सुखों एवं क्रियाओं का परिणाम या सामान्य भाषा में हम कह सकते हैं प्रथम भाव की समस्त क्रियाओं का परिणाम जातक को दूसरे भाव में मिल सकता है। 

कुंडली में दूसरा भाव : महत्व

जातक के प्रेम, सुख-सम्रिधि, संचित धन, क्रय-विक्रय, कलात्मक रुचि, एक्सीडेंट(आकस्मिक दुर्घटना), मृत्यु का कारण इत्यादि का भी बोध इस भाव में निहित है। यह भाव जातक के स्वयं के व्यवहार तथा भौतिक संपत्ति का मूल्यांकन का भी निर्णायक होता है।

द्वितीय भाव के नकारात्मक पक्ष की बात करें तो इस भाव में जातक के लालच, वित्तीय कठिनाई या आत्म-मूल्यांकन में कमी को भी दर्शाता है। अपने जीवन का उचित दृष्टिकोण का ज्ञान भी जातक के इस भाव से ज्ञात किया जा सकता है।

ज्योतिष में : कुंडली का तीसरा भाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में तृतीय यानी तीसरे भाव को ‘पराक्रम’ भाव के नाम से जाना है। इस भाव से जातक के वीरता, पराक्रम, संवाद शैली, और अपने छोटे भाई-बहनों के साथ संबंधों के बारे में  जानकारी प्राप्त होती है। जातक अपना कार्य किस प्रकार से पूर्ण करते है इसकी जानकारी हम इस भाव के अंतर्गत प्राप्त कर सकते हैं। यदि जातक की जन्म कुंडली में तृतीय भाव की स्थिति शुभ नहीं हो तो व्यक्ति को सही निर्णय लेने में समस्या आती है। वह सदैव डरा सहमा महसूस करता है; और अपने भाई बहनों के साथ भी मनमुटाव की स्थिति रहती है।

कुंडली का तीसरा भाव: महत्व

कुंडली का तीसरा भाव जातक के प्रारंभिक जीवन जैसे शिशु काल और किशोरावस्था, भाई-बहन, पड़ोसी, प्राथमिक शिक्षा से संबंधित है। इस भाव के जातक अभिव्यक्ति से प्रेरित होते हैं।यह भाव जातक की पारिवारिक एवं भाई-बहनों के परस्पर संबंधों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जन्म कुंडली में नवम भाव उच्च शिक्षा के लिए है और तृतीय भाव प्रारंभिक शिक्षा की ओर है। हम लोगों के साथ कैसे संबंध स्थापित करते हैं, उनसे कैसे विचारों का आदान-प्रदान करता है अतः यह सामाजिक जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष ’लोक व्यवहार’ को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

ज्योतिष में : कुंडली का चौथा भाव

वैदिक ज्योतिष में कुंडली के चौथे भाव को घर, वाहन, माता एवं सुख का भाव माना जाता है। कुंडली में इस भाव की स्थिति से जातक की अचल संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधा, तालाब, बावड़ी व घर के  वातावरण के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जातक की जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव जीवन के कई क्षेत्रों की जानकारी प्रदान करता है; इस कारण इसे ‘केंद्र’ भाव भी कहा जाता है। यदि कुंडली में ये भाव शुभ स्थिति में है तो निश्चित ही जातक को भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ संसार के मूल सुखों की भी प्राप्ति होती है।

कुंडली में चौथा भाव: महत्व  

कुंडली के चौथे भाव को ज्योतिष शास्त्र में ‘गर्भ’ या ‘केंद्र’ भी कहा गया है। जीवन के प्रारंभ से लेकर अंत तक की  संपूर्ण यात्रा हम इस भाव में ज्ञात कर सकते हैं। यह भाव पारिवारिक भावनाओं को संदर्भित करता है। इस भाव में हमारी जीवन रुपी पेड़ की जड़े निहित होती हैं; जहाँ हमे परिवार रुपी पोषण प्राप्त होता है। इतना ही नहीं हमारी वृद्धावस्था से लेकर अंतिम विश्राम स्थल को भी इस भाव के माध्यम से परिभाषित  किया जा सकता है। 

जीवन के संपूर्ण चक्र में चौथा भाव, सुरक्षा (शारीरिक और भावनात्मक दोनों), पालन-पोषण एवं अचल संपत्ति के साधनों को भी दर्शाता है। चतुर्थ भाव में ग्रहों की स्थिति परिवार के साथ संबंधों पर अपना नियंत्रण रखती है; पारिवारिक संबंधों के साथ मूल्यों एवं विरासत को भी यह नियंत्रित करने का काम करती है। यह भाव जन्म कुंडली में पारिवारिक जीवन, घर, धरोहर, भूमि, निवास स्थान, माता-पिता, भाइयों और बहनों, आदि सम्बन्धों के साथ संबंधित है। चतुर्थ भाव के माध्यम से हम अपने परिवार के साथ संबंधों को समझते हैं और इस भाव के प्रभाव के अनुसार पारिवारिक समृद्धि, सुख-शांति, और संतान सुख का अनुमान लगा सकते हैं।

ज्योतिष में : कुंडली का पांचवां भाव

ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली के पांचवें भाव को ’भाग्य’ का भाव कहते हैं जो जातक की इमेजिनेशन, रोमांस और संतान पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। इस भाव को जातक के जीवन में खुशियों का कारक भाव माना जाता है। रचनात्मक गतिविधियों से जातक में जो प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है; उस प्रसन्नता का प्रतिफल ही यह भाव है।वैदिक ज्योतिष में कुंडली में पांचवे भाव को जातक के रचनात्मकता, वैवाहिक सम्बन्ध और संतान से संबंधित बताया गया है। 

इन सभी सांसारिक अनुभूतियों से जातक को अत्यधिक प्रसन्नता मिलती है; और यह मानव के रचनात्मक कार्यों का परिणाम होते हैं। इसे सौभाग्य का भाव भी माना जाता है। पंचम भाव में ग्रहों की स्थिति से जातक के भाग्य का भी अनुमान लगाया जा सकता है; जिसमें जातक के भाग्य को अजमाया जा सकता है; कि जातक विजयी होंगे या अपना सब कुछ खो देंगे।

कुंडली में पांचवें भाव : महत्व   

ज्योतिष शास्त्र में पांचवें भाव का संबंध आर्टिस्ट एबिलिटी, सनकीपन, टेस्ट और पत्नी के भाग्य से मिलने वाली विरासत और बिजनेस में सफलता के बारे में दर्शाता है। यह भाव में मनोरंजन, रिक्रिएशन, रोमांस और ऐसी अन्य रुचियों का भी प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली में पांचवां भाव, पिछले जन्म के कर्मों के बारे में भी बताता है। 

ज्योतिष में : कुंडली का छठा भाव   

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली के छठे भाव को ‘शत्रु भाव’ की संज्ञा दी गई है। जातक की कुंडली के अन्य भावों के समान ही यह भाव भी महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय है। आमतौर पर इस भाव का संबंध जातक के स्वास्थ्य और कल्याण से होता है। इसी कारण से इस भाव को ‘रोग स्थान’ भी कहा जाता है। स्वस्थ मन एवं स्वस्थ शरीर के अलावा इस भाव का संबंध जातक की दैनिक क्रियाकलापों व दिनचर्या से होता है। हालांकि यह भाव कुंडली में इस पक्ष का निर्धारण करता है कि जातक; अपने जीवन में मिलने वाली चुनौतियों का किस प्रकार से समाधान करते हैं। 

कुंडली में छठा भाव: महत्व 

कुंडली में छठा भाव, उच्चतम स्वास्थ्य, कल्याण और दैनिक दिनचर्या को दर्शाता है। एक स्वस्थ जीवन शैली के सभी पहलुओं, जैसे आहार, पोषण, व्यायाम, और आत्म-सुधार की खोज से इस भाव को परिभाषित किया गया है। यहां गौर करने की बात यह है कि यह भाव पालतू पशुओं और छोटे मवेशियों से भी संबंधित है। यह हमारे भाग्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुंडली का छठा भाव जातक को जीवन के सभी क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए कर्मों का शुभ परिणाम प्रदान करने में अत्यधिक सहायक होता है।

ज्योतिष में: कुंडली का सातवाँ भाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में सातवाँ भाव, जातक के वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी तथा साथी के विषय का बोध कराता है। यह भाव जातक के नैतिक व अनैतिक रिश्ते को भी दर्शाता है। शास्त्रों में मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। इनमें से ‘काम’ का संबंध सप्तम भाव से होता है। कुंडली के सातवें भाव के प्रभाव से समझा जा सकता है, कि हम किस प्रकार का व्यवहार दूसरों से करते हैं, और हमारे बातचीत करने का तरीका हमारे जीवन पर क्या असर डाल सकता है।  

कुंडली में सातवें भाव: महत्व 

ज्योतिष के अनुसार वास्तव में यह भाव इस बात का कारण बताता है कि जातक अपने रिश्तों में क्यों और किस प्रकार लीन है। जातक ने  प्रेम मात्र पैसा, व्यावहारिक कारण, सामाजिक दबाव या जीवन में शून्य (रिक्त स्थान) को भरने के किया है; इस सभी मानसिक चेष्टाओं कुंडली के इस सातवें भाव के माध्यम से ज्ञात किया जा सकता है। 

यह जातक की संतान पक्ष की भी जानकारी प्रदान करता है। कुंडली में सातवाँ भाव (वंश का भाव); पहले भाव (लग्न का भाव) के ठीक सामने स्थित होता है। ज्योतिष गणना के मुताबिक यह दोनों भाव एक-दूसरे के पूरक भी होते हैं। सप्तम भाव शुभ हो तो ना सिर्फ़ जातक को रोमांटिक पार्टनर मिलता है बल्कि यह एक समझदार बिजनेस पार्टनर से भी आपकी  भेंट करवा सकता है; जो जातक की सफलता में भी सहायक सिद्ध होगा।

ज्योतिष में : कुंडली का आठवां भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में आठवें भाव को​​ ‘आयु भाव’ की संज्ञा दी गई है। यह भाव कुंडली के सबसे महत्वपूर्ण भावों में से एक है। इस भाव में ऋण, मृत्यु, दीर्घायु और अचानक अप्रत्याशित घटनाओं जैसी चीजों से सम्बंधित जानकारी प्राप्त की जाती है। हालांकि जातक की कुंडली में यह भाव अशुभ परिणाम देता है। वैदिक ज्योतिष में आठवां भाव को ‘स्वास्थ्य भाव’ के रूप में जाना जाता है। हमारे विद्वान ज्योतिष इस भाव को ‘मृत्यु का भाव’ भी कहते हैं। कुंडली में इस भाव से जातक के अंतरंग संबंध का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जिससे हमें यह ज्ञात हो जाता है कि हमारे रिश्ते हमारे लिए क्या लाएंगे; और उस परिस्थिति से हम खुद का बचाव किस प्रकार कर पाएंगे। 

कुंडली में आठवां भाव: महत्व

जीवन के सभी साझा संसाधन जैसे- विरासत, बीमा, कर, वित्तीय भत्ता आदि सभी कुंडली में इस भाव के दायरे में आते हैं। इसके अतिरिक्त  यह भाव वित्तीय सहायता के साथ-साथ, आध्यात्मिक समर्थन, भावनात्मक और शारीरिक समर्थन को भी संदर्भित करता है। अष्टम भाव का सूचक ग्रह शनि है क्योंकि यह नुकसान और गंभीरता के ध्यान को दर्शाता है। जातक के भाग्य या मौद्रिक स्थिति में उतार-चढ़ाव का संकेत इस भाव के माध्यम से ज्ञात किया जा सकता है।  

ज्योतिष में : कुंडली का नौवां भाव 

ज्योतिष शास्त्र में जातक की जन्म कुंडली का नौवां भाव जातक के भाग्य को प्रदर्शित है इसलिए इसे ‘भाग्य’ का भाव कहा जाता है। जिस भी जातक का यह भाव यदि अच्छा होता है वह भाग्यवान होता है। इसके साथ ही नौवें भाव से जातक के धार्मिक दृष्टिकोण का पता चलता है। अतः इसे ‘धर्म’ का भाव भी कहते हैं।  कुंडली में नवम यानी नौवां भाव त्रिकोण स्थान कहलाता है, और यह पांचवें भाव से अधिक बलशाली एवं महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा नौवां भाव ‘गुरु’ स्थान भी कहलाता है। 

कुंडली में नौवां भाव: महत्व 

वैदिक ज्योतिष में जन्म कुंडली का नौवां भाव विश्वास, ज्ञान और धार्मिक दृष्टिकोण का भाव माना जाता है। यह जातक की कुंडली में एक अत्यंत ही शुभ भाव कहलाता है, जो जातक के पूर्व कार्यों के परिणामस्वरूप वर्तमान जीवन में भाग्य को संदर्भित करता है। ज्योतिष में कुंडली के नवम भाव को ‘धर्म’ भाव या ‘पितृ’ भाव भी कहा जाता है। 

यह भाव अच्छे कर्म, नैतिकता, धार्मिक प्रवृत्ति, आध्यात्मिकता की ओर झुकाव, उच्च शिक्षा और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।  जातक की कुंडली में यह भाव ऐसा स्थान है जहाँ मानव अपने जीवन के गहरे अर्थ की खोज करता है। नौवें भाव को पितृ पक्ष से भी संबंधित बताया गया है क्योंकि राशि चक्र की नवम राशि – धनु  पर गुरु यानी बृहस्पति का शासन होता है; जिससे जातक को आध्यात्मिक, शिक्षक और उपदेशक भी बन सकता है। नौवां भाव का स्वामी ग्रह बृहस्पति बुद्धिमत्ता, निर्धारित कानून, कानूनी मध्यस्थता, आध्यात्मिक दीक्षा, शिक्षण और उससे जुड़ी सभी चीजों की निर्धारण करने वाला होता है।

ज्योतिष में: कुंडली का दसवां भाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दसवां भाव जातक की जन्म कुंडली का महत्वपूर्ण भाव माना जाता है। दशम भाव पिता, व्यापार, उच्च नौकरी, राजनीति, राजसुख, प्रतिष्ठा एवं ख्याति का कारक भाव माना जाता है। इस भाव को हम ‘कर्म भाव’ भी कह सकते हैं। जिसके फलस्वरूप जातक अपने कर्म से विख्यात एवं यशस्वी होने की क्षमता रखता है और अपने पिता का नाम उज्जवल करता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में दसवां भाव जातक के करियर एवं उसके व्यवसाय के बारे में भी बताता है।

कुंडली में दसवां भाव: महत्व 

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का दसवां भाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है; क्योंकि यह संपूर्ण जीवन पथ के साथ-साथ करियर से भी जुड़ा है। इस भाव से यह ज्ञात किया जा सकता है कि जातक क्या कमाते हैं और कैसे कमाते हैं। यह भाव जातक के पेशे के बारे में भी बहुत कुछ बताता है। दसवां भाव जातक की सार्वजनिक छवि, करियर की उपलब्धियों, सामाजिक स्थिति, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि को नियंत्रित करता है। इसके अलावा प्राधिकरण की स्थिति या दूसरों की सेवा भी इस भाव के अंतर्गत आते हैं।  

कुंडली में बारह भाव

ज्योतिष में: कुंडली का ग्यारहवां भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली में ग्यारहवां भाव जातक की ‘आमदनी’ और ‘लाभ’ से संबंधित होता है। यह भाव जातक की कामना, आकांक्षा एवं इच्छापूर्ति को दर्शाता है। किसी जातक द्वारा कार्य को पूर्ण किए जाने वाले प्रयासों से जो लाभ प्राप्त होता है; उस लाभ की गणना कुंडली के ग्यारहवें भाव में की जाती है। यह भाव लाभ, आय, प्राप्ति, सिद्धि, वैभव आदि भी संदर्भित करता है। विभिन्न विद्वानों के द्वारा इस भाव को “लाभ, धन और सम्मान के भाव” का नाम भी दिया गया है।

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कुंडली में ग्यारहवां भाव: महत्व 

जन्म कुंडली में ग्यारहवां भाव, जातक के जीवन में लाभ एवं सुख के पहलुओं की अध्यक्षता करता है। इसके अलावा, यह लाभ, समृद्धि, किए गए प्रयासों में प्रगति, आकांक्षाओं के बाद शांति का एहसास, और दोस्ती के स्थायी संबंध को दर्शाता है। एकादश भाव में दोस्ती, टीम वर्क, नेटवर्किंग और यहां तक ​ मानवतावादी नियम भी सम्मिलित हैं। ग्यारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति यह सुनिश्चित करती है, कि जातक सामाजिक और आर्थिक रूप से कैसा प्रदर्शन करेंगे और इन क्षेत्रों में कितनी सफलता प्राप्त करेंगे। क्योंकि यह भाव लाभ को संदर्भित करता है।

ज्योतिष में: कुंडली का बारहवां भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली का बारहवां भाव कुंडली का अंतिम भाव होने से जातक के जीवन का भी अंतिम भाग होता है। पहला भाव (लग्न) से गणना करने पर बारहवां भाव सबसे अंतिम भाव है; अतः ये एक प्रकार से मानव के जीवन चक्र के अंत को संदर्भित करता है। जिस प्रकार प्रारंभ हुआ; समाप्त भी होता है; उसी प्रकार लग्न जीवनारंभ का सूचक है; तो बारहवां भाव जीवन की समाप्ति को प्रदर्शित करता है। लग्न (पहला भाव) जातक की जीवन शैली है; तो उसकी ऊर्जा का पूर्ण समावेश एवं व्यय,  कुंडली के इसी भाव में निहित है।

कुंडली में बारहवां भाव: महत्व 

कुंडली में बारहवां भाव को एक अदृश्य क्षेत्र माना जाता है; जो सपनों, भावनाओं और रहस्यों जैसे भौतिक रूपों से रहित जातक में शामिल होता है। द्वादश भाव जातक के मन और अन्य दुर्भाग्यपूर्ण विवरणों को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही यह जातक के डर, चिंता, गलतफहमी, संदेह, हीन भावना और अन्य तत्वों को प्रदर्शित करता है। एकांत, रहस्य, मौन, कष्ट और स्वयं को पूर्ववत करना इस भाव की प्रमुख विशेषताएं हैं। जातक द्वारा जीवन में प्राप्त धन, यश, प्रसिद्धि आदि की हानि या नाश बारहवें भाव में निहित है, इसलिए इस भाव को हानि या नाश का  स्थान भी कहते हैं।

जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं – सामान्यप्रश्न- FAQ


Q. क्या जन्म कुंडली में भाव महत्वपूर्ण होते हैं?

An. हां, जन्म कुंडली में भावों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

Q. क्या, भाव जातक के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संदर्भित करते हैं?

An.हां, जन्म कुंडली में भावों के माध्यम से जातक के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है।

Q. कौन सा ग्रह किस भाव में शुभ फल देता है?

An. कुंडली में चंद्रमा, बुध और शुक्र जिस स्थान पर बैठते हैं, उसके शुभ फल देते हैं। लेकिन बृहस्पति ग्रह जिस स्थान पर बैठे हैं, उस जातक के भाव के फलों में कमी कर देते हैं।

Q. कुंडली में स्वास्थ्य का घर कौन सा होता है?

An. जन्म कुंडली के तीसरे भाव को सूक्ष्म आयु स्थान कहा जाता है, इसलिए कुण्डली से भी स्वास्थ्य का अनुमान लगाया जाता है। जन्म कुंडली के लग्नेश की स्थिति द्रेष्काण कुण्डली में कैसी है, यह देखा जाता है. यदि लग्नेश कमजोर है तब स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।

Q. मेरे 12वें भाव में क्या है?

An. बारहवें भाव को “अनदेखा क्षेत्र” माना जाता है और यह उन सभी चीजों को नियंत्रित करता है जो भौतिक रूपों के बिना मौजूद हैं, जैसे सपने, रहस्य और भावनाएं। बारहवें घर में ग्रहों के साथ जन्म लेने वाले लोग अक्सर अत्यधिक अंतर्ज्ञानी होते हैं, शायद मानसिक भी।

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