कुंडली के षष्टम (छठे) भाव को शत्रु भाव कहते हैं, और जब गुरु ग्रह यानी बृहस्पति षष्टम भाव में स्थित हो तब, जातक को अपने शत्रु पर विजय पाने में सफलता मिलती है। ऐसे जातक शत्रु पर अपनी बुद्धिमता और चतुराई के बल पर विजय हासिल कर लेते हैं। इसके विपरीत, यदि गुरु छठे भाव में वक्री या कमजोर अवस्था में हो तब, जातक के शत्रु पक्ष से उसे, परेशानी हो सकती है। जातक को अपमान का सामना भी करना पड़ सकता है।
ज्योतिष में, हम सभी की जन्म कुंडली में, 12 भाव (घर) होते हैं। हमारे जीवन के, लगभग सभी पहलुओं का चित्रण इन 12 भावों में निहित होता हैं। इनमें से प्रत्येक भाव की अपनी अलग भूमिका होती है। लेकिन अगर हम सबकी जन्म कुंडली, जब एक समान है; तो हम सबका स्वभाव अलग क्यों हैं?
इसका कारण है हमारी कुंडली के इन भावों में नव ग्रहों की शुभ व अशुभ स्थिति। जब ग्रह इन भावों में स्थित होते हैं, तो हमें शुभ व अशुभ दोनों तरह से प्रभावित करते हैं। इसलिए, इस लेख के माध्यम से हमने आपकी कुंडली के, षष्टम (छठे)भाव में गुरु अर्थात बृहस्पति ग्रह के कुछ अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताने का प्रयास किया है-
षष्टम भाव में गुरु ग्रह का महत्व (Jupiter in 6th house)
‘मंगल भवन’ के अनुभवी ‘ज्योतिषाचार्य देविका’ जी इस बारे में बताती है कि- कुंडली में समस्त ग्रहों में से बृहस्पति को ‘गुरु’ का स्थान कहा जाता है। गुरु आध्यात्मिकता, शिक्षक या गुरु की भूमिका निभाते है। यह एक लाभकारी ग्रह है जो उच्च ज्ञान, सीखने, आध्यात्मिक, बौद्धिक जैसे क्षेत्रों से संबंध रखते है। प्रत्येक मनुष्य की जन्म कुंडली में 12 भाव का भी अपना अलग महत्व होता है। षष्टम भाव में गुरु की बहुत ही अहम भूमिका होती है। जिसकी हम इस लेख में विस्तार से चर्चा करते हैं-
जन्म कुंडली का षष्टम भाव, ‘शत्रु भाव’ कहलाता है। जातक की कुंडली के अन्य भावों के समान ही यह भाव भी महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय है। आमतौर पर इस भाव का संबंध जातक के स्वास्थ्य और कल्याण से होता है। इसी कारण से इस भाव को ‘रोग स्थान’ भी कहा जाता है। साथ ही स्वस्थ मन एवं स्वस्थ शरीर के अलावा इस भाव का संबंध जातक की दैनिक क्रियाकलापों व दिनचर्या से होता है।
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षष्टम भाव में गुरु स्थित होने से जातक शत्रु पर विजय होता है। गुरु के प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं पर प्रभुत्व रखने वाला होता है। ज्योतिष में, इस भाव में गुरु अशुभ प्रभाव में जातक को लिवर का रोग, वजन बढ़ना तथा खाने पीने की अनियमितता से अन्य रोग होने की संभावना होती है। इसके अलावा पाचन शक्ति कमजोर होना, गुर्दे कमजोर होना या डायबिटीज (मधुमेह) इन सब का कारक ग्रह गुरु है। इसलिए गुरु के षष्टम भाव में अशुभ अवस्था में होने से, जातक को यह बीमारियां होने की संभावना होती है।
षष्टम भाव में गुरु ग्रह : शुभ व अशुभ प्रभाव
- कुंडली का षष्टम भाव से ननिहाल के बारे में जाना जाता है। अतः इस भाव में गुरु के स्थित होने से प्रभावित जातक की रूचि सत्कार्यो व धार्मिक कार्यों में होती है। ऐसे जातक शुभ कार्यों पर अपना धन खर्च करता है।
- गुरु के प्रभाव से ऐसे जातक पर किसी प्रकार का ऋण नहीं होता।
- चूँकि षष्टम भाव रोग का भाव होता है। इसलिए गुरु के इस भाव में अशुभ अवस्था में होने से जातक के स्वास्थ्य व मानसिकता पर भी बुरा असर होने संभावना होती है।
- वहीं यदि हरु शुभ ग्रहों के साथ है तो, आपकी शारीरिक प्रकृति को अच्छा करता है अर्थात आपको निरोगी बनाता है।
- इसके साथ ही आप, मधुरभाषी और सदाचारी व्यक्ति हो सकते हैं। उदार होने के साथ-साथ आप पराक्रम व विवेकशील भी हैं।
- गुरु के प्रभाव से आप अच्छे कर्म करने वाले, जन कल्याणकारी और प्रतापी व्यक्ति होंगे। जिससे आप ज्योतिष में भी अपनी रुचि रख सकते हैं। साथ ही आप संसारी विषयों व बाहरी दिखावे से विरक्त होंगे।
- ज्योतिष की गणना में आप शत्रुहंता और अजातशत्रु होंगे। लेकिन उम्र के चालीसवें साल में आपको शत्रु भय हो सकता है।
- राज- कार्य और वाद-विवाद में भी आप सदैव विजयी होंगे। केवल, गुरु कि अशुभ दशा की अवधि ही आपके मामा और भाइयों के पक्ष हेतु ठीक नहीं है। या फिर आप भाई-बहनों और मामा के सुख से वंचित हो सकते है।
- आपको अपने जीवन में, पौत्र और पुत्रों को देखने का सुख भी प्राप्त होगा। इसके साथ ही संगीत में भी आपकी अच्छी रुचि होनी चाहिए।
- आपको स्त्री सुख तो मिलेगा ही। और साथ ही आपको अच्छे नौकर-चाकर भी मिलेंगे।
- ज्योतिष के अनुसार, यदि आप चिकित्सा के से क्षेत्र से जुड़े कोई काम करते हैं, तो आपको बहुत यश व लाभ प्राप्त होगा।
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निष्कर्ष
षष्टम भाव में बृहस्पति से प्रभावित जातक श्रेष्ठ कार्यकर्ता व व्याख्याता होते हैं। वे पूरी तरह एक अच्छे पेशेवर हो सकते हैं। और यदि ऐसे लोग आलोचना में नहीं होते हैं तो, संभवत अधिक स्वस्थ और रचनात्मक होंगे।
ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति ग्रह में हमारी कुंडली स्थित सभी 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है। इन प्रभावों का असर हमें अपने जीवन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है। यह एक शुभ ग्रह है, अतः जातकों को इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं बृहस्पति ग्रह के विभिन्न भावों पर प्रभाव –
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कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ
Q- कुंडली में षष्टम भाव के स्वामी ग्रह कौन से हैं?
An- छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है और कारक ग्रह केतु है।
Q- कुंडली में गुरु शतं भाव में होता है तो क्या होता है?
An- जब गुरु यानी बृहस्पति षष्टम भाव में स्थित हो तब, जातक को अपने शत्रु पर विजय पाने में सफलता मिलती है। ऐसे जातक शत्रु पर अपनी बुद्धिमता और चतुराई के बल पर विजय हासिल कर लेते हैं।
Q- क्या, गुरु षष्टम भाव में शुभ फल देते हैं?
An- हां, गुरु ग्रह एक शुभ ग्रह है, अतः समस्याओं के चलते भी विजय प्राप्त हो जाती है।
Q- कुंडली में षष्टम भाव किसका कारक होता है?
An- कुंडली में षष्टम भाव ‘शत्रु’ व ‘रोग’ का कारक होता है।