महापद्म कालसर्प योग : जब राहु षष्टम भाव में, केतु द्वादश भाव में तथा उनके बीच सभी ग्रह स्थित हों तो “महापद्म कालसर्प योग” बनता है। इस योग से प्रभावित जातक को अत्यंत समय तक शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है। साथ ही ऐसे लोग प्रेम के मामले में दुर्भाग्यशाली होते हैं। प्रेम में उन्हें धोखा मिलने की संभावना अधिक रहती है।
महापद्म कालसर्प योग : प्रभाव
इस योग के प्रभाव में जातक शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं, विदेशों में व्यापार से उन्हें लाभ प्राप्त होता है। व्यावसायिक गतिविधियों के चलते, बाहर ज्यादा रहने के कारण उनके घर-परिवार में अशांति की स्थिति बनी रहती है। इस योग के प्रभाव से जातक कोई एक ही वस्तु प्राप्त कर सकता है,धन या सुख। इस योग के प्रभाव के कारण जातक को यात्रा सर्वाधिक रूप से करनी पड़ती है; जिससे इन्हें सफलता भी मिलती है। प्रायः कई बार अपनो से इन्हें धोखा भी मिलता है, जिसके कारण ये कभी-कभी हताशा का सामना भी करते हैं। इस योग के प्रभाव से जातक का चरित्र भी बहुत संदेह जनक हो जाता है; जो उनके धर्म को हानि पहुंचाता है। प्रायः इन्हें बुरे सपने भी आते रहते हैं। वृद्धावस्था के दौरान उन्हें कष्ट प्राप्त होते हैं। ज्योतिष के अनुसार इन सब के बावजूद जातक के जीवन में एक अच्छा समय आता है। इस समय में वह एक अच्छा व सफल वकील या राजनीति के क्षेत्र में एक सफल नेता के पद को प्राप्त करता है।
यदि कोई जातक इस योग से अधिक समस्या का अनुभव करते हैं। उन्हें ज्योतिष द्वारा बताए गए निम्न उपाय कर लाभ प्राप्त करना चाहिए। यदि यथार्थ में कालसर्प योग हानिकारक हो तो उसकी शांति जातक को बचपन में ही करवा लेनी चाहिए। जिससे जातक का भविष्य उज्जवल तथा सुखमय व्यतीत हो। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि किसी भी ग्रह की शान्ति से उसका पूर्ण दोष समाप्त नहीं होता; बल्कि कुछ आसान से उपायों व पूजा विधि से यह प्रभाव कुछ हद तक कम हो जाता है। अतः थोड़ा संघर्ष तो करना पड़ता है किन्तु सफलता मिल जाती है। आंशिक कालसर्प दोष हेतु पहले छोटे-छोटे उपाय अवश्य कर लेना चाहिए। बहुत से आंशिक काल सर्प दोष को छोटी पूजा या छोटे-छोटे उपाय से भी इसके नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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महापद्म कालसर्प योग : महत्वपूर्ण उपाय –
- पवित्र श्रावण महीने में प्रतिदिन महादेव का जल से अभिषेक करें।
- शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत करना आरंभ करें एवं यह व्रत 18 शनिवार तक करें। इसके बाद काले वस्त्र धारण कर 18 या 3 राहु के बीज मंत्र का जाप करें। इस विधि के बाद एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में अर्पित करें।
- भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें, यथासंभव यही दान भी करें।
- रात के समय घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें।
- इलाहाबाद (प्रयाग) में संगम पर नाग-नागिन की विधिपूर्वक पूजा कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें।
- तीर्थराज प्रयाग के संगम स्थान में अपने पितरों का तर्पण श्राद्ध भी एक बार अवश्य करें।
- मंगलवार एवं शनिवार को श्रद्धा से रामचरितमानस के सुंदरकांड का 108 बार पाठ करें।
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कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ
Q- महापद्म कालसर्प योग कैसे निर्मित होता है?
An- जब राहु षष्टम भाव में, केतु द्वादश भाव में तथा उनके बीच सभी ग्रह स्थित हों तो “महापद्म कालसर्प योग” बनता है।
Q- क्या महापद्म कालसर्प योग में जातक पर नकारात्मक प्रभाव ही होता है?
An- हां, वैसे तो इस योग में जातक पर नकारात्मक प्रभाव ही होता है पर एक समय अंतराल के बाद अच्छा समय भी आता है।
Q- क्या महापद्म कालसर्प योग की पूजा विधि अलग होती है?
An- हां, महापद्म कालसर्प योग की पूजा विधि अलग होती है।
Q- महापद्म कालसर्प योग कितने वर्ष तक रहता है?
An- महापद्म कालसर्प योग का प्रभाव 42 वर्षों तक रहता है।