Kaalsarp Dosh | इस युति से बनेगा कुंडली में कालसर्प योग, क्या  होगा अशुभ या शुभ

कालसर्प योग

Kaalsarp Yoga

कालसर्प योग ज्योतिष के अनुसार, जब किसी जातक की जन्म कुंडली में  राहु और केतु हमेशा ही वक्री गति (विपरीत)  अवस्था में हो एवं शेष सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच में हो। तब ऐसे जातक को कालसर्प दोष से पीड़ित माना जाता है। प्रत्येक राशि की जन्म कुंडली में यह “कालसर्प दोष” भिन्न-भिन्न रूप से परिणाम प्रदान करता है।

समुद्र शास्त्र के अनुसार “कालसर्प योग” ऐसा योग होता है जो, जातक द्वारा पूर्व जन्म में किए गए दुष्कर्म का परिणाम स्वरूप शाप के रूप में जन्म कुंडली में स्थित होता है। कालसर्प योग से प्रभावित व्यक्ति,  आर्थिक, शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है। जातक को संतान पक्ष से भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है; या तो उसे संतान नहीं होती, या होती है तो अत्यधिक दुर्बल एवं बीमार होती है। ऐसे जातक अपना रोजमर्रा का साधन भी बड़ी मुश्किल से जूता पाते हैं। उच्च व धनवान कुल में जन्म के पश्चात् भी इन जातक को अप्रत्याशित रूप से आर्थिक हानि होती रहती है। शारीरिक रूप से भी ये रोग ग्रस्त जीवन यापन करते हैं ।

कालसर्प योग: जन्म कुंडली में 

मंगल भवन’ के ज्योतिष आचार्यों के अनुसार जब जन्म कुंडली में मौजूद समस्त ग्रह राहु एवं केतु के मध्य में आ जाते हैं, ज्योतिष विद्या में यह आसानी से ज्ञात हो जाता है कि जातक पर आ रहीं सभी प्रकार की समस्याएं ‘कालसर्प योग’ की वजह से हो रही हैं। लेकिन सर्वथा ही यह सत्य नहीं होता कि कालसर्प योग से प्रभावित सभी जातकों पर इस योग का प्रभाव भी समान रूप से हो। जातक के किस भाव में कौन सी राशि स्थित है, कौन-कौन ग्रह कहां विराजमान हैं और इनका सकारात्मक प्रभाव  कितना है- ये सभी बातें भी जातक के जीवन पर बेहद असरदार साबित होती हैं। अतः सिर्फ कालसर्प योग सुनकर भयभीत होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है बल्कि उसका आप हमारे मंगल भवन के ज्योतिष आचार्यों या अपने किसी ज्योतिष विशेषज्ञ से विश्लेषण करवाकर, उसके प्रभावों एवं किए जाने वाले उपायों के बारे में की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर अपने जीवन में आने वाली समस्याओं हेतु सचेत हो सकते हैं। जब आप पूर्ण रूप से निश्चित हो जाए कि कालसर्प योग की स्थिति है तो ज्योतिष की सलाह से तुरंत समाधान भी करें। इस विषय पर विस्तृत चर्चा करते हुए आइए जानते हैं कालसर्प दोष के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को जो कुछ इस प्रकार है- 

कालसर्प योग:  मूलभूत अवस्थाएं  

वैदिक ज्योतिष में कुछ ऐसी स्थितियां या चरण होते हैं जिनके माध्यम से आप ज्ञात कर सकते है कि जातक कालसर्प दोष से पीड़ित है-

  • जातक की जन्म कुंडली में जब राहु ग्रह के साथ चंद्र ग्रह लग्न भाव में स्थित हो एवं जातक भ्रमित प्रवृत्ति  का शिकार हो, जिसमें उसे हमेशा यह भ्रम रहता है कोई उसे नुकसान पहुंचा सकता है। तब ऐसा व्यक्ति मानसिक पीड़ित रहता है।
  • जब लग्न भाव में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो, उसके साथ बृहस्पति एवं मंगल ग्रह विराजित हो, राहु पंचम भाव में हो स्थित हो और वह मंगल या बुध ग्रह से युक्ति में हो। तब जातक की संतान पक्ष पर  कोई आपत्ति आ सकती है अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।  
  •  कालसर्प योग में राहु ग्रह का शुक्र के साथ युति में होना जातक हेतु संतान संबंधी ग्रह बाधा उत्पन्न करती है।
  • जब जातक की कुंडली में लग्न भाव पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
  • जन्म कुंडली में चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह उपस्थित न हो। तो इस केंद्रूम योग  (चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो) तब जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।
  • कुंडली में राहु के साथ बृहस्पति की युति, जातक को अनेक प्रकार के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है।
  • राहु की मंगल ग्रह से युति(अंगारक योग) हो तो इस युति से जातक पर भारी कष्ट आ सकते हैं।
  • राहु ग्रह के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति के प्रभाव से भी जातक के इसके प्रतिकूल परिणाम में  शारीरिक व आर्थिक परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं।
  • राहु के साथ शनि की युति(नंद योग) हो तब जातक के स्वास्थ्य एवं संतान पक्ष पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही व्यवसाय संबंधी समस्या आती है।
  • राहु की बुध से युति (जड़त्व योग) हो तब जातक की आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • कुंडली के अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य ग्रह की दृष्टि हो, तो जातक का विवाह विघ्न पूर्ण, अथवा अधिक समय में होता है।
  • जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में एवं राहु द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक धूर्त व कपटी  स्वभाव का होता है। जिसके कारण वह किसी बड़ी विपत्ति में भी फंस सकता है।
  • लग्न भाव में राहु एवं चंद्र, पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि की स्थिति हो, तो ऐसे जातक की दिमागी रूप से स्वस्थ नहीं होते।अक्सर ये भुत-पिशाच जैसी समस्याओं से भी परेशान हो सकते हैं।
  • जन्म कुंडली के दशम भाव का नवांश, मंगल/राहु या शनि से युति में हो, तो जातक को सदैव  अग्नि भय रहता है और ऐसे में जातक को अग्नि से सावधान रहने की सलाह दी जाती है।
  • दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तो ऐसे जातक को मरणांतक (जीवन के अंत तक) कष्ट भोगने की आशंका बनी रहती है।
  • राहु तथा मंगल के मध्य षडाष्टक संबंध हो, तो ऐसे जातक को अत्यधिक कष्ट सहना पड़ सकता है। राहु मंगल से दृष्ट हो तब वह कष्ट और भी अधिक प्रबल हो जाते हैं।
  • कुंडली में लग्न भाव में मेष, वृष या कर्क है तथा राहु की स्थिति प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्टम, सप्तम, अष्टम, एकादश भाव में हो। तब जातक को स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त होता है।
  • राहु छठे भाव में स्थित है तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन सुख पूर्वक खुशहाल व्यतीत होता है।
  • जब राहु एवं चंद्र ग्रह की युति केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव ) या त्रिकोण में हो, तो ऐसे जातक को जीवन में सुख-समृद्धि के समस्त साधन प्राप्त होते हैं।
  • शुक्र ग्रह का द्वितीय या द्वादश भाव में स्थित होने से संबंधित जातक को शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  • जब कुंडली में बुधादित्य योग हो एवं बुध अस्त न हो तब ऐसी स्थिति में जातक को अनुकूल फल की प्राप्ति होती हैं।
  • जब जातक की जन्म कुंडली में लग्न भाव में सूर्य व चंद्र ग्रह बलवान हो, इसके साथ ही वे  किसी शुभ भाव में स्थित हों और शुभ ग्रहों की दृष्टि में हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
  • जब जातक के दशम भाव में मंगल बलवान हो और किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक हेतु शुभ होता है।
  • शुक्र ग्रह जब मालव्य योग(शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में स्थित हो) और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तो कालसर्प दोष के असर को काफी कम किया जा सकता है।
  • शनि अपनी उच्च राशि में केंद्र में स्थित है, तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प दोष के विपरीत प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तो कालसर्प योग से होने वाली समस्त समस्याएं कम हो जाती हैं।
  • जब राहु जन्म कुंडली के अदृश्य भावों में स्थित है तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों,तब जातक का कालसर्प योग उसके लिए समृद्धि एवं मंगलकारी होता है।
  • कुंडली में जब राहु षष्टम भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में स्थित हो, तब जातक को संपूर्ण जीवन में धन-धान्य, वैभव-संपदा की कोई कमी नहीं होती।
कालसर्प योग
कालसर्प योग

कालसर्प योग: अच्छा भी 

हमने उपरोक्त सभी अवस्थाओं को इस उद्देश्य से बताया है कि पाठकों हेतु ‘कालसर्प योग’ के  अच्छे व बुरे प्रभावों को समझने में आसानी हो। 

ज्योतिष में, ऐसा मानना है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा या नकारात्मक नही होता है। अपितु; अलग-अलग लग्नों व राशियों में  ग्रहों की स्थिति जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कालसर्प योग से होने वाले परिणामों का अंतिम निर्णय किया जा सकता है। संसार में कालसर्प योग वाले ऐसे अनेक व्यक्ति हैं, जो कई प्रकार की कठिनाइयों को सहते हुए भी उच्च पद पर आसीन है। इस श्रेणी में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व॰ पं॰ जवाहर लाल नेहरू का नाम लिया जा सकता है। स्व॰ मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प योग से ग्रसित थे; परंतु वे सभी भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो चुके थे। अत: कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए। अपने सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए सदैव धैर्य पूर्वक सफलता के पथ पर प्रयासरत रहना चाहिए। 

यदि कालसर्प योग का परिणाम किसी जातक हेतु अनिष्टकारी या अशुभ है तो, उसे दूर करने के लिए ज्योतिषियों के द्वारा अनेक समाधान बताए गए हैं। इसके अलावा हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उपायों का उल्लेख किया गया है, जिसके द्वारा सभी प्रकार की ग्रह संबंधी बाधाएं एवं पूर्व के अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है।

कालसर्प योग:  प्रकार 

वैदिक ज्योतिष में ‘कालसर्प योग’ के कुछ विशेष भेद (प्रकार) बताए गए हैं,जिनमें मुख्य रूप से ‘कालसर्प योग’ बारह प्रकार के माने गये हैं। “मंगल भवन” द्वारा इस लेख में हमने इन सभी प्रकारों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया है-

अनंत कुलिक 
वासुकी शंखपाल 
पद्ममहापद्म 
तक्षक कर्कोटक 
शंखचूड़ घातक 
विषधार शेषनाग 

कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ



Q- कालसर्प दोष के क्या लक्षण होते हैं?  

An- कालसर्प से प्रभावित जातक के मन में हमेशा नकारात्मक विचार रहते हैं, असफल समझना, आत्महत्या करने का विचार आना, दांपत्य जीवन में कलह और तनाव का रहना, संतान उत्पत्ति में बाधा इसके अलावा प्रेम संबंधों में बाधा का सामना करना होता है।

Q- कुंडली में कालसर्प दोष हो तो क्या करना चाहिए?

An- जातक को घर में मोर पंख धारण किए भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा घर में स्थापित करनी चाहिए। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से 108 बार जाप करना चाहिए।

Q- कुंडली में कालसर्प दोष कितने समय तक रहता है?

An- कुंडली में कालसर्प योग 42 वर्षों तक रहता है ऐसा जातक अपने जीवन में 42 वर्षों तक संघर्ष करता है।

Q- काल सर्प दोष की पूजा विधि कब करना उत्तम माना जाता है?

An- कालसर्प दोष निवारण के लिए ‘नागपंचमी’ का दिन को सर्वोत्तम माना गया है।

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