वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली के तीसरा भाव में गुरु ग्रह हो तो ऐसे जातक, ज्ञानी और पराक्रमी होते हैं और सहोदर भाइयों का सुख भी प्राप्त होता है। इस भाव का बृहस्पति अर्थात गुरु, जातक को विद्वान और धनवान बनाता है।
ऐसे जातक को अपने पूरे जीवनकाल, सरकार से निरंतर आय प्राप्त होती है। गुरु कुंडली के तृतीय भाव में होने से जातक की सकारात्मकता में वृद्धि होती है। इसलिए तृतीय भाव में गुरु, जातक के जिज्ञासा रोमांस, मानसिक क्षमता, फोकस और परिवर्तन की इच्छा जैसे क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकता है।
ज्योतिष में, हम सभी की जन्म कुंडली में, 12 भाव (घर) होते हैं। हमारे जीवन के, लगभग सभी पहलुओं का चित्रण इन 12 भावों में निहित होता हैं। इनमें से प्रत्येक भाव की अपनी अलग भूमिका होती है। लेकिन अगर हम सबकी जन्म कुंडली, जब एक समान है; तो हम सबका स्वभाव अलग क्यों हैं? इसका कारण है हमारी कुंडली के इन भावों में नव ग्रहों की स्थिति। जब ग्रह इन भावों में स्थित होते हैं, तो हमें शुभ व अशुभ दोनों तरह से प्रभावित करते हैं।
इसलिए, इस लेख के माध्यम से हमने आपकी कुंडली के, तीसरे भाव में गुरु अर्थात बृहस्पति ग्रह के कुछ अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताने का प्रयास किया है-
गुरु ग्रह तृतीय भाव में ( jupiter in 3rd house ): महत्व
‘मंगल भवन’ के अनुभवी ‘ज्योतिषाचार्य देविका’ जी इस बारे में बताती है कि- कुंडली में समस्त ग्रहों में से बृहस्पति को ‘गुरु’ का स्थान कहा जाता है। गुरु आध्यात्मिकता, शिक्षक या गुरु की भूमिका निभाते है। यह एक लाभकारी ग्रह है जो उच्च ज्ञान, सीखने, आध्यात्मिक, बौद्धिक जैसे क्षेत्रों से संबंध रखते है। प्रत्येक मनुष्य की जन्म कुंडली में 12 भाव का भी अपना अलग महत्व होता है। तृतीय यानी तीसरे भाव में गुरु की बहुत ही अहम भूमिका होती है। जिसकी हम इस लेख में विस्तार से चर्चा करते हैं-
जन्म कुंडली में तृतीय भाव ‘पराक्रम’ का भाव होता है। इस भाव से जातक के वीरता, पराक्रम, संवाद शैली, और अपने छोटे भाई-बहनों के साथ संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वहीं बात करें गुरु ग्रह की। जातक के लिए यह एक अत्यंत शुभ ग्रह माना गया है। यह जातक के करियर एवं धन से जुड़ी जानकारी प्रदान करते है।
कुंडली में गुरु ग्रह के अनुकूल स्थान से जातक अपने जीवन में धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतान से सम्बंधित सुख प्राप्त करता है। इसके विपरीत गुरु के अशुभ प्रभाव से जातक को संतान प्राप्ति में समस्या एवं पेट संबंधी विकार उत्पन्न होते हैं। वैदिक ज्योतिष में गुरु आकाश तत्व का कारक कहलाता है। जिससे जातक में विशालता एवं व्यक्तित्व विकास का विस्तार होता है।
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गुरु ग्रह तृतीय भाव में: प्रभाव
- तृतीय भाव में बृहस्पति के होने से आप साहसी और बलवान होंगे। ज्योतिष के अनुसार आपको शास्त्रों का अच्छा ज्ञान होगा और साथ ही आप धार्मिक कार्यों को संपादित करने वाले व्यक्ति भी होते हैं।
- आप ज्ञानी, जितेन्द्रिय, तेजस्वी और ईश्वर पर आस्था रखने वाले व्यक्ति होंगे। आप अपने कार्य को करने में बहुत चतुर होते हैं। ऐसे जातक जिस भी काम का संकल्प कर लेते हैं; उसे हर हाल में पूरा करके ही दम लेते हैं। और आपको आपके काम में सफलता भी मिलती है।
- आपको पर्यटन और तीर्थ यात्राएं करने में अधिक रुचि होगी। आपको अपने सगे भाइयों-बहनों और कुटुंब परिवार का सुख प्राप्त होगा।
- आप अपने भाइयों का कल्याण करने वाले और उन्हें उत्तम सुख देने में सक्षम सिद्ध होंगे। आपके भाई भी प्रतिष्ठित व सम्मानीय पद पर होंगे।
- आप अपने प्रिय मित्रों और प्रियजनों माध्यम से सुखी और सम्पन्न जीवन व्यतीत करेंगे। आपके आत्मीय जनों से आपको लाभ भी प्राप्त होगा।
- आपका वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहेगा।
- आखिर में भी, बहुत सारे लोग आपके अधीनस्थ और आपके हित में होंगे।
- आप अपने श्रेष्ठ, बुद्धि विवेक के माध्यम से लेखन में लाभ अर्जित करेंगे।
तृतीय भाव में गुरु ग्रह: सुझाव
- ज्योतिष के अनुसार, जब बृहस्पति कुंडली के तीसरे भाव में प्रतिगामी होते है, तो ऐसे जातक को सदैव अप्रत्याशित यात्रा के योग बनते रहते हैं। ऐसे में उन्हें यात्रा करते समय सदैव किसी दुसरे को अपने साथ रखना चाहिए। इससे आपको लाभ अवश्य होगा।
- इसके अलावा, आपको एक समय में एक से अधिक विषयों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
- जब तीसरे भाव में गुरु दुर्बल या कमजोर अवस्था में होते है, तो वे जातकों को बहुत से नए लोगों और नए अनुभवों से अवगत करा सकते है। इसलिए ऐसे जातकों को एक स्थिति से तब तक अग्रसर नहीं होना चाहिए, जब तक कि वे आखरी तक सब कुछ प्राप्त न कर लें।
- कुंडली के तृतीय भाव में गुरु से प्रभावित जातक को, महसूस होता है कि उन्हें एक ही समय में कई अलग-अलग दिशाओं में खींचा जा रहा है। ऐसे जातकों के जीवन में तनाव की स्थिति बनी रहती है।
- आपको अपने भाइयों के साथ हमेशा अच्छे संबंध बनाए रखना चाहिए। इसके साथ ही धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में लगे रहें।
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निष्कर्ष
अब हम कह सकते है कि, जब बृहस्पति(गुरु) कुंडली के तृतीय भाव में होते है, तब वह अपने स्वभाव के अनुसार जातक को आध्यात्मिक बनाने का प्रयास करते हैं। ऐसे जातक अपने जीवन के प्रति गतिशील, बलवान और अग्रगामी होते है।
हालांकि उन्हें अपने कार्यों में ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है। ऐसे जातकों को अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता होती है। इस भाव में बृहस्पति के कारण आपको थोड़े कंजूसी प्रव्रत्ति के होंगे। आपको भूख न लगने के कारण शरीर दुर्बल हो सकता है।
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कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ
Q- कुंडली के तीसरे भाव के स्वामी कारक ग्रह कौन होते हैं?
An- कुंडली के तीसरे भाव के स्वामी कारक ग्रह मंगल और राहु हैं।
Q- क्या, तीसरे भाव में गुरु शुभ फल देते हैं?
An- हां, तीसरे भाव में गुरु ग्रह शुभ फल देते हैं, यदि किसी अशुभ ग्रह के साथ न हो तो।
Q- तृतीय भाव में गुरु, के होने से जातक का स्वभाव कैसा होता है?
An- इस भाव का बृहस्पति अर्थात गुरु, जातक को ज्ञानी और धनवान बनाता है।
Q- कुंडली में तीसरा भाव क्या दर्शाता है?
An- जन्म कुंडली में तीसरा भाव ‘पराक्रम’ का भाव होता है। इस भाव से जातक के वीरता, पराक्रम, संवाद शैली, और अपने छोटे भाई-बहनों के साथ संबंधों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।