ज्योतिष विद्या में, किसी जातक की कुंडली के दूसरे भाव में यदि गुरु ग्रह यानी बृहस्पति ग्रह का स्थान है तो, इससे जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। गुरु के शुभ प्रभाव से जातक धन कमाने के कई स्रोतों को खोज लेता है। और गुरु को ज्ञान का कारक ग्रह माना जाता है, तो ऐसा जातक अपने ज्ञान के बल पर, धन संग्रह में वृद्धि करता है। इस भाव में विराजमान गुरु के प्रभाव से जातक यदि ब्राह्मण हो तो कर्मकांड व अन्य धार्मिक कार्यों से धन कमाता है।
ज्योतिष में, हम सभी की जन्म कुंडली में, 12 भाव (घर) होते हैं। हमारे जीवन के, लगभग सभी पहलुओं का चित्रण इन 12 भावों में निहित होता हैं। इनमें से प्रत्येक भाव की अपनी अलग भूमिका होती है। लेकिन अगर हम सबकी जन्म कुंडली, जब एक समान है; तो हम सबका स्वभाव अलग क्यों हैं? इसका कारण है कुंडली के इन भावों में नव ग्रहों की स्थिति।
जब ग्रह इन भावों में स्थित होते हैं, तो हमें शुभ व अशुभ दोनों तरह से प्रभावित करते हैं। इसलिए, इस लेख के माध्यम से हमने आपकी कुंडली के, द्वितीय (दूसरे) भाव में गुरु अर्थात बृहस्पति ग्रह के कुछ अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताने का प्रयास किया है-
गुरु ग्रह दूसरे भाव में (Jupiter in 2nd house)
‘मंगल भवन’ के अनुभवी ‘ज्योतिषाचार्य देविका’ जी का कहना है कि- कुंडली में समस्त ग्रहों में से बृहस्पति को ‘गुरु’ का स्थान कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य की जन्म कुंडली में 12 भाव का भी अपना अलग महत्व होता है। दूसरे भाव में गुरु ग्रह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिसकी हम इस लेख में विस्तार से चर्चा करते हैं-
वैदिक ज्योतिष में द्वितीय भाव को धन संपदा और भौतिक संपत्ति का कारक बताया है। यह भाव जातक के सांसारिक और बढ़ती अवस्था का बोध कराता है। ज्योतिषियों ने जातक की जन्म कुंडली में इस द्वितीय भाव को ‘धन’ भाव की संज्ञा दी है। अर्थात इस भाव से जातक के भौतिक सुखों और सांसारिक अवस्थाओं के विभिन्न चरणों की गणना की जाती है।
इसी प्रकार गुरु ग्रह जिसे हम इंग्लिश में jupiter भी कहते हैं। यह ‘ गुरु’ का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु जातक के लिए अत्यंत शुभ ग्रह माना गया है। यह जातक के करियर एवं धन से जुड़ी जानकारी का सूचक होता है। कुंडली में गुरु के अनुकूल स्थान से जातक अपने जीवन में धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतान से सम्बंधित सुख प्राप्त करता है।
गुरु ग्रह द्वितीय भाव में : शुभ और अशुभ प्रभाव
- ज्योतिष के अनुसार इस भाव में बृहस्पति की उपस्थिति के कारण, आपकी आकर्षक व मुखाकृति में सुंदर होंगे। इसके साथ ही आप रूपवान, सुंदर शरीर वाले और दीर्घायु भी होंगे।
- आप स्वभाव से विनम्र और सत्संगी व्यक्ति होंगे। आपका साहस और सदाचार करने की भावना सदैव सराहनीय होगी। और आप उत्साही, मधुरभाषी व दूसरों से हमेशा सम्मान प्राप्त करेंगे।
- बुध के प्रभाव से आपकी वाणी बहुत प्रभावशाली होगी। आप हमेशा मधुर और सत्यता का ही अनुसरण करते हैं। आपके द्वारा सभा में दिया गया भाषण लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाला होगा।
- आप धन-वैभव, और सभी भौतिक सुखों को व अधिकारों को प्राप्त करने वाले होंगे। इसके साथ ही आप संततिवान व सम्पत्तिवान व्यक्ति होंगे।
- आप धन संग्रह की कला में निपुण होंगे। ज्योतिष के अनुसार सोना चांदी, सरकारी नौकरी, कानूनी काम, बैंक, शिक्षा संस्थान, देवालय, धर्म संस्था आदि माध्यमों से आपको धन और यश की प्राप्ति हो सकती है।
- इसके अलावा आपको रसायन शास्त्र, कई भाषाओं का ज्ञान, काव्यशास्त्र, व दंडाधिकारी भी आपको मिल सकता है अर्थात आप मजिस्ट्रेट, कलेक्टर या न्यायाधीश भी हो सकते हैं।
- आप हमेशा शत्रु पर विजय और मित्र-बंधुओं से सुखी होंगे।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार वैसे तो ‘गुरु’ मंगलकारी ग्रह माना गया है। जो जन्म कुंडली के दूसरे भाव में विराजित हो तो कई मायनों में सकारात्मक और लाभ ही देते हैं। लेकिन कभी-कभी कुंडली में ग्रहों के कारण कुछ ऐसी परिस्थितियां भी निर्मित हो जाती हैं, जिससे गुरु के सकारात्मक प्रभाव में कुछ विकार उत्पन्न हो जाते हैं-जैसे
- कुंडली के इस भाव में गुरु से प्रभावित जातक सुख और आराम को अधिक महत्व देते हैं।
- ऐसे जातक भौतिक सुख और विलासिता का आनंद लेने के लिए लंबी यात्राएं भी पसंद कर सकते हैं।
- सौरमंडल में ‘गुरु’ ब्राह्मण वर्ण के सत्वगुणी ग्रह माने जाते हैं। और उनका रस मिष्ठ एवं मधुर होता है। इसी कारण वश प्रभावित जातक के सुख-सुविधा और भोग विलास में जाने की भी अधिक संभावना होती है।
निष्कर्ष
निष्कर्ष के तौर पर हम, कह सकते है कि- कुंडली के दूसरे भाव में गुरु के होने से जातक के आर्थिक, वित्तीय, किस्मत, आर्थिक लाभ-हानि और रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। इस भाव में गुरु के प्रभाव से जातक संपन्न और समृद्धि प्राप्त करता है। इसी के साथ उन्हें सुख, सुविधा, धन-वैभव और भोग विलासिता का भी आनंद प्राप्त होता है। हालांकि ऐसे जातकों को विलासिता और सुख-सुविधा के भौतिक साधनों में विलीन भी पाया गया है।
लेकिन सही, समझ के साथ ऐसी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ज्योतिष के अनुसार ऐसे जातकों को अपने शरीर व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की सलाह दी जाती है। और उन्हें अस्वास्थ्यकर भोजन से बचाव करना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में, गुरु ग्रह को गुरु व शिक्षा से संबंधित माना गया है । हमारी जन्म कुंडली में स्थित 12 भावों में बृहस्पति ग्रह, अलग-अलग रूप से शुभ व अशुभ फल प्रदान करते हैं। उन प्रभावों को के बारे में आप इस लेख में विस्तृत रूप से जान सकते हैं।
Must Read: कुंडली के अन्य भाव में गुरु ग्रह बृहस्पति के प्रभाव
कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ
Q- कुंडली के द्वितीय भाव में गुरु क्या फल देते हैं?
An- ज्योतिष विद्या में, किसी जातक की कुंडली के द्वितीय भाव में यदि गुरु यानी बृहस्पति का स्थान है तो, इससे जातक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। गुरु के शुभ प्रभाव से जातक धन कमाने के कई स्रोतों को खोज लेता है।
Q- क्या, दूसरे भाव में गुरु का स्थान शुभ होता है?
An- हां, द्वितीय भाव में गुरु का प्रभाव अधिकतम शुभ फल ही प्रदान करते हैं।
Q- कुंडली में द्वितीय भाव के स्वामी कारक ग्रह कौन होते हैं?
An- कुंडली में द्वितीय भाव के स्वामी कारक ग्रह गुरु और शुक्र ग्रह होते हैं।
Q- कुंडली में गुरु ग्रह किसका कारक होते हैं?
An- गुरु ग्रह यह जातक के करियर एवं धन से जुड़ी जानकारी का सूचक होता है। कुंडली में गुरु के अनुकूल स्थान से जातक अपने जीवन में धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतान से सम्बंधित सुख प्राप्त करता है।