Rahu in 1st house | कुंडली के प्रथम भाव में जाने, राहु ग्रह की महत्ता और कुछ उपाय

राहु ग्रह

Rahu in 1st house

ज्योतिष के अनुसार, जिन जातकों की जन्म कुंडली के प्रथम यानी पहले भाव में राहु ग्रह उपस्थित होते है; तो ऐसे जातक का स्वभाव गुस्‍सैल (क्रोधित) और स्वार्थी होता है। हालांकि ऐसे जातक प्रभावशाली व्यक्तित्व के भी होते है और दूसरों से अपना काम निकालने में बहुत चतुर व तीव्र होते हैं।

ज्योतिष में, हम सभी की जन्म कुंडली में,  12 भाव (घर) होते हैं। हमारे जीवन के, लगभग सभी पहलुओं का चित्रण इन 12 भावों में निहित होता हैं। इनमें से प्रत्येक भाव की अपनी अलग भूमिका होती है। लेकिन अगर हम सबकी जन्म कुंडली, जब एक समान है; तो हम सबका स्वभाव अलग क्यों हैं? इसका कारण है हमारी कुंडली के इन भावों में नव ग्रहों की स्थिति।

जब नौ ग्रहों में से कोई भी ग्रह इन भावों में विराजमान होते हैं,  तो हमें और हमारे जीवन को प्रत्यक्ष रूप से शुभ व अशुभ दोनों तरह से प्रभावित करते हैं। इसलिए,  इस लेख के माध्यम से हमने आपकी कुंडली के, पहले भाव में राहु ग्रह की उपस्थिति से होने वाले परिणामों को बताया है- 

प्रथम भाव में राहु ग्रह( Rahu in 1st house) महत्व 

‘मंगल भवन’ के प्रसिद्ध ‘ज्योतिषाचार्य श्री आनंद’ जी के अनुसार, समस्त ग्रहों में से राहु ग्रह भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।  वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को एक अत्यंत क्रूर एवं मायावी ग्रह की संज्ञा दी गई  है। जातक की कुंडली में राहु के अशुभ स्थान पर होने से उसे मानसिक तनाव तथा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही राहु और केतु को छाया ग्रह माना गया है। 

प्रत्येक मनुष्य की जन्म कुंडली में 12 भाव का भी अपना अलग महत्व होता है।  प्रथम भाव को वैदिक ज्योतिष में स्व-भाव अर्थात स्वयं के रूप, में वर्णित किया गया है। जो जातक की  शारीरिक स्थिति, सामान्य व्यक्तित्व लक्षण, स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा, बचपन, और जीवन के प्रारंभिक शैशवकाल पर भी शासन करता है। आगे लेख में हम राहु ग्रह के पहले भाव में होने से जातक पर होने वाले प्रभावों के बारे में विस्तार से पढेंगे-

Acharya Anand

प्रथम भाव में राहु ग्रह का उपाय  

ज्योतिष के अनुसार राहु के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए आप निम्न बातों का ध्यान रखें, जिससे कि राहु ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है-

1. हमेशा अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और व्यर्थ के बोलने से भी बचें।

2. सोच-समझकर अपनी पूर्ण परिपक्वता व बुद्धि से काम लें और अति कल्पना से बचें।

3. बिना कारण व्यर्थ के तंत्र, मंत्र या यंत्र आदि के चक्कर में न पढ़ें।

4. पिता, गुरु और अपने से बड़ों का सम्मान करें।

5. ससुराल पक्ष से संबंध अच्छे रखें। ऐसे लोगो को ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपड़े नहीं लेने चाहिए।

राहु ग्रह का प्रथम भाव में शुभ व अशुभ प्रभाव  

  • प्रथम भाव में राहु की स्थिति, जातकों में अति सफलता हेतु लालच पैदा करती है। वे दृढ़ता से सामाजिक सीढ़ी पर चढ़ने की इच्छा रखते हैं, और उस स्थिति से अधिक प्रभावशाली और धनवान बनना चाहते हैं। 
  • ऐसे जातक प्रतिस्पर्धी होते हैं, और अपने इस स्वभाव से वें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित होते है।
  • प्रथम भाव में राहु ग्रह के होने से इन जातकों में सबसे अच्छा गुण ये होता है कि वे समाज या कार्यस्थल पर किसी नयी अवधारणा या नए विचार को प्रयोग में लाने का पर्याप्त साहस रखते हैं।
  • ऐसे लोग सफलता प्राप्त करने के लिए नए और अलग-अलग तरीके अपना सकते हैं। 
  • कुंडली के पहले भाव में राहु ग्रह से प्रभावित जातक तब तक साधनों की परवाह  नहीं करते, जब  तक की वे उन साधनों का उपयोग करते हुए अपने लक्ष्य तक न पहुँच जाये।
  • इसके अलावा, पहले भाव में राहु ग्रह वाले जातक समाज के पारंपरिक मानदंडों के प्रति सवाल उठाते हैं, और पुराने तौर-तरीकों को ख़त्म करने में सक्षम होते हैं। 
  • इसके अलावा कुंडली के प्रथम भाव में राहु ग्रह से प्रभावित जातक की स्थिति जातक को अनैतिक अवैध कार्यों और व्यसन पदार्थों की ओर ले जा सकती है। ऐसे जातक, शराब और नशे के आदि हो सकते हैं। 
  • ऐसे जातक किसी व्याधि, विक़ार या पीड़ा से पीड़ित भी हो सकते हैं। हालाँकि इसे रोका जा सकता है, यदि जातक की कुंडली में कोई शुभ ग्रह किसी ऐसे भाव में स्थित हो, जो लाभ और दैवीय प्रभाव उत्पन्न करता हो, और नकारात्मक प्रभावों को ख़त्म करता हो। 
  • इसके अलावा राहु ग्रह को जातक की उन अधूरी इच्छाओं और कामनाओं का प्रतिक माना जाता है; जिन्हें जातक अपने बीते हुए समय में प्राप्त करना चाहता था लेकिन प्राप्त नहीं कर पाया। इसलिए उनके मस्तिष्क में वे अधूरी इच्छाएं जागृत रह जाती हैं, और उन अधूरी इच्छाओं की पूर्ति करना जातकों के लिए जुनून के समान रहता है। 
  • इस प्रकार राहु जुनून, इच्छाओं, भ्रम, निराशा जैसी समस्याओं को भी पैदा करता है।
  • प्रथम भाव में राहु की स्थिति जातक को भौतिक लक्ष्यों,  नाम, ख्याति, हैसियत आदि के पीछे भागने के लिए प्रेरित करती है। जिन्हें जातक कम से कम समय में प्राप्त करना चाहते हैं। इस प्रकार, प्रथम भाव में राहु, जातक को बुराई और अनुचित चीजों की ओर आकर्षित करता है।
राहु ग्रह
प्रथम भाव में राहु ग्रह

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निष्कर्ष 

अंत में हम कह सकते हैं कि, राहु ग्रह विशेषकर ब्रह्मांड में नकारात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यह जातक को भ्रम और ख़राब स्थिति में आने के लिए प्रेरित करता है, और हमें बुरे कर्म करने के लिए बाध्य कर सकता है। राहु हमें मुख्य रूप से भौतिकवादी, अच्छाई और खुशी के रास्ते से दूर करता है। हमें इस ग्रह के प्रति सचेत और बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है।

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राहु ग्रह प्रथम भाव से संबंधित कुछ सवाल तथा उनके जवाब – FAQ


Q- कुंडली में प्रथम भाव किसका स्थान होता है?

An- प्रथम भाव को वैदिक ज्योतिष में स्व-भाव अर्थात स्वयं के रूप, में वर्णित किया गया है। जो जातक की  शारीरिक स्थिति, सामान्य व्यक्तित्व लक्षण, स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा, बचपन, और जीवन के प्रारंभिक शैशवकाल पर भी शासन करता है।

Q- क्या, राहु ग्रह प्रथम भाव में शुभ होते हैं?

An- नहीं, राहु ग्रह सामान्य तौर पर प्रथम भाव में शुभ फल नहीं देते हैं।

Q- प्रथम भाव के स्वामी कारक ग्रह कौन से होते हैं?

An- प्रथम भाव के स्वामी ग्रह मंगल है।

Q- प्रथम भाव में राहु ग्रह क्या फल देते हैं?

An- प्रथम भाव में, राहु जातक को भ्रम और ख़राब स्थिति में आने के लिए प्रेरित करता है, और हमें बुरे कर्म करने के लिए बाध्य कर सकता है। राहु हमें मुख्य रूप से भौतिकवादी, अच्छाई और खुशी के रास्ते से दूर करता है।

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