Moon in 5th House | कुंडली के पांचवें भाव में चंद्र ग्रह बढ़ाएंगे प्रेम में आकर्षण व संतान के सुख को

चंद्र

जन्म कुंडली के पांचवे (पंचम) भाव में स्थित चंद्र ग्रह के शुभ प्रभाव से जातक, न केवल खुश मिजाज बनेगा बल्कि, उनका प्रेम के प्रति प्रेमाकर्षण भी पर्याप्त मात्रा में मिलेगा। ज्योतिष के अनुसार ऐसे जातक अपनी मनोरंजन और सुख सुविधाओं का अधिक ध्यान रखते हैं और इन्हें पाने का उचित प्रयास भी करते हैं। इसके साथ ही पंचम भाव के प्रभाव, व चंद्र ग्रह के अच्छे प्रभाव के कारण इन जातकों को अपनी संतान पक्ष से बहुत अधिक संतुष्टि और प्रसन्नता भी मिलती है। ऐसे जातक बुद्धिमान तो होते ही हैं, साथ-साथ वें निडर व साहसी भी होते हैं।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में पंचम यानी पांचवा भाव, इमेजिनेशन, रोमांस और संतान पक्ष से संबंधित होता है। इस भाव को जातक की खुशियों का भाव (घर) माना जाता है। वास्तव में, इस भाव से मिलने वाली खुशी में अक्सर, जातक को उसके द्वारा किए गए रचनात्मक प्रयासों का प्रतिफल होता है। शास्त्रों में पांचवें भाव को ‘भाग्य’ का भाव भी कहा जाता है। इस भाव में विराजमान ग्रह यह प्रदर्शित करते हैं, कि जातक को लॉटरी या ऐसे अन्य गतिविधियों जैसी चीजों से कितना धन मिलेगा। 

इसके अलावा जातक के दिल (प्रेम) से संबंधित मामले भी उसी भाव में निहित होता है। ज्योतिष की विशेष गणना और पांचवें भाव में ग्रहों की स्थिति और राशियों से हम यह ज्ञात कर सकते हैं, कि जातक दिल और रोमांस से जुड़े मामलों को कैसे सुलझाते हैं। एक बच्चे को संसार में लाने के लिए जिस रचनात्मकता की जरूरत होती है, कुंडली का पांचवां घर उसी रचनात्मकता व पहली गर्भावस्था का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसका संबंध आर्टिस्ट एबिलिटी, सनकीपन, टेस्ट और पत्नी के भाग्य से मिलने वाली विरासत और व्यवसाय में सफलता का निर्धारण भी इस भाव के अंतर्गत आता है। 

मुख्य रूप से हम यह कह सकते हैं कि, कुंडली का पांचवा भाव मूल त्रिकोण का हिस्सा होता है, जो संतान, संतान के जन्म, संतान से सुख, मंत्र-तंत्र, विद्या, ज्ञान, गूढ़ ज्ञान, उपासना, शर्त, साहस, कौशल, प्रेम संबंध, रोग का उपचार और गर्भावस्था जैसे महत्वपूर्ण पक्षों से संबंध रखता है। वैदिक ज्योतिष में पांचवें भाव को विद्या और संतान भाव के नाम से जाना जाता है। अब हुम बात करते हैं पांचवें भाव के कारक की तो, इस भाव में विद्या और संतान पक्ष के कारक ग्रह गुरु कहलाते हैं, अतः पांचवें भाव के कारक भी गुरु ग्रह ही हैं। 

फलस्वरूप, कुंडली के पांचवे भाव में यदि कोई ग्रह अशुभ या दूषित अवस्था में मौजूद हो तो वह जातक हेतु निराशाजनक फल देने का कार्य कर सकता है, लेकिन यदि कोई ग्रह अनुकूल स्थान में विराजमान हो तो यह पांचवें भाव से मिलने वाले सकारात्मक व अनुकूल प्रभावों को भी बढ़ाएगा। ज्योतिष की सलाह में, कुंडली में सकारात्मक प्रभावों को बढ़ाने तथा किसी ग्रह से प्राप्त होने वाले नकारात्मक या प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए, अनुकूल रत्न भी धारण कर सकते हैं।

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ज्योतिष में चंद्र ग्रह की महत्ता (Moon in 5th house)

यदि किसी की जन्म कुंडली के पांचवे भाव में चंद्र ग्रह की उपस्थिति हो तो ऐसे जातक के जीवन में बहुत से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभावों को देखा जा सकता है। ज्योतिष में चंद्र ग्रह के भी कुछ अपने गुण व स्वभाव बताए गए हैं, जैसे- सभी नौ ग्रहों में सबसे तेज गति से चलने वाले ग्रह के रूप में माना जाता है चंद्रमा।

चंद्र ग्रह को सोम, मृगांक, शशि, एवं शीत रश्मि जैसे नामों से भी परिभाषित किया गया हैं। इसके साथ ही मानव के मन के कारक भी चंद्र ग्रह को माना गया है। इतना ही नहीं चंद्र देव, मनुष्य की मानसिक स्थिति एवं स्वास्थ्य से भी संबंध रखते हैं। पंच तत्वों में चंद्र देव का जल तत्व के साथ विशेष संबंध होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि, मनुष्य के शरीर का तीन चौथाई हिस्सा, जल तत्व से ही संबंध भी रखता है तथा प्रभावित होता है , अतः मानव शरीर के इस तत्व पर चंद्र ग्रह का स्वामित्व होता है। 

ज्योतिष में, चंद्र ग्रह को वैश्य वर्ण का सत्वगुणी ग्रह कहा जाता है, तथा उनकी दृष्टि सभी ग्रहों पर समान रूप से रहती है। इसके अलावा राशि चक्र के अनुसार चंद्र ग्रह, एक राशि का संपूर्ण चक्र पूरा करने में सवा दो दिन का समय लेते है, इसी के साथ उन्हें कर्क राशि का भी प्रभुत्व प्राप्त हैं। यदि किसी कुंडली में चंद्रमा का प्रभाव हो तो, चंद्रमा उत्तर दिशा व कुंडली के चौथे स्थान में बलि होते हैं। साथ ही ज्योतिष की गणना में कुंडली के पांचवे भाव में चंद्र ग्रह का प्रभाव अनुकूल या सकारात्मक ही रहता है, परन्तु यदि कोई विरोधी ग्रह भी युति में हो तो यह प्रभाव जातक को प्रतिकूल फल भी दे सकता है।  

कुंडली के पांचवे भाव में चंद्र ग्रह की भूमिका 

वैदिक ज्योतिष में बताया गया है कि, यदि कुंडली के पांचवे भाव में चंद्र ग्रह विराजमान हों तो वे प्रेम, रिश्ते, करियर, व्यापार\व्यवसाय, पारिवारिक जीवन और जातक का दूसरों के साथ व्यवहार आदि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही, ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुंडली के पांचवे भाव में चंद्रमा की मौजूदगी से, जातक के प्रेम संबंधों और रिश्तों में सकारात्मक परिवर्तनों को देखा जा सकता है। इस भाव में उपस्थित, चंद्र ग्रह जातक को प्रतिभाशाली, संपन्न और आकर्षक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि किसी जातक की कुंडली के पांचवे भाव में चंद्रमा हो तो ऐसे जातक अपने लिए सही दिशा का चुनाव करने में सक्षम होते हैं, तथा वें अपनी मेहनत व प्रतिभा के बल से सफलता हासिल कर लेते हैं।  यदि इस भाव में चंद्र ग्रह के प्रभावों का सही आकलन किया जाए तो ऐसे जातक, अपने जीवन में ठोस निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। ज्योतिष में, कुंडली का पांचवा भाव, संतान सुख को संदर्भित करता है, जिन लोगों की कुंडली के पांचवे भाव में चंद्रमा होता है। ऐसे लोगों को कई संतानों के सुख के साथ-साथ उनका अपनी संतान के साथ गहरा और भावनात्मक सम्बन्ध व लगाव भी होता है। 

पांचवे भाव में चंद्र ग्रह का सकारात्मक दृष्टिकोण 

चंद्र ग्रह का कुंडली के पांचवे भाव में स्थित होने से, यह जातकों को अपने बच्चों की परवरिश तथा पालन -पोषण के लिए प्रति गंभीर रहते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वैदिक ज्योतिष में चंद्र ग्रह को पोषण के दाता की संज्ञा दी जाती है। ऐसे जातकों को कुछ रचनात्मक, कलात्मक और अनुमान पर आधारित व्यवसायों में प्रयास करना चाहिए। साथ ही इन जातकों के लिए फिल्म, नाटक व सिनेमा के क्षेत्र भी लंबे समय तक श्रेष्ठ फलदायी तथा उपयुक्त हो सकते हैं। चंद्र के प्रभाव से, ऐसे जातक मूल रूप से अनदेखी या अनजानी (अज्ञात) चीजों के प्रति बेहद आश्चर्यचकित महसूस करते हैं और उन्हें जानने के उत्सुक हो उठते हैं। 

पंचम भाव में चंद्र से प्रभावित जातकों का अन्य चीजों को देखने का दृष्टिकोण भी बहुत अच्छा व सकारात्मक होता हैं। साथ ही ऐसे जातक, साधारण चीजों से भी कुछ नया व सृजनात्मक निर्माण करने की क्षमता रखते हैं। इनके इस सृजनात्मक व कलात्मक क्रम को पूरा करने में आने वाली समस्याओं को वे आसानी से दूर कर लेते हैं, तथा अपने निर्धारित किए लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उन जातकों की रूचि समाज में अपनी मान-प्रतिष्ठा को अधिक बेहतर बनाने में होती है।  ऐसे जातक अपनी श्रेष्ठता और अपनी क्षमता को लगातार विकसित करने का प्रयास करते रहते हैं। कुंडली के इस भाव में स्थित चंद्रमा, जातकों को सकारात्मक शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ उनका उचित मार्गदर्शन भी करता हैं।

कुंडली के पांचवे भाव में चंद्र ग्रह हेतु सुझाव 

वैसे तो ज्योतिष में, चंद्र ग्रह को सदैव सकारात्मक प्रभावों का विस्तार करने हेतु शुभ ग्रह ,माना जाता है, लेकिन कभी-कभी कुछ परिस्थितियों या क्रूर/विरोधी ग्रहों के साथ युति में आकर वे कुछ प्रतिकूल परिणाम भी दे सकते सकते हैं। यदि कुंडली के पांचवे भाव में विराजित चंद्र ग्रह जातक को अच्छे फल नहीं दे रहे हो तो,  ऐसे जातक को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी जाती है। साथ ही ऐसे जातक, भावनात्मक रूप में बेहद अप्रत्याशित व्यवहार को अपना सकते हैं। ऐसी स्थिति में इस भाव में बैठे चंद्रमा जातक के प्रेम संबंधों पर भी बुरा असर डाल सकता है। जिसके प्रभाव में इन जातकों को अपने प्यार को पाने की तीव्र इच्छा होती है, जो कुछ बातों में उनके व्यवहार पर भी हावी हो सकती है। अतः अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें।

पांचवें भाव में चंद्र ग्रह का नकारात्मक दृष्टिकोण 

ज्योतिष की गणना के अनुसार, कुंडली के इस भाव में चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभाव में जातक कुछ चीजों और परिस्थितियों के प्रति उतावलापन दिखा सकता है। ऐसे जातक अपना निर्णय बिना सोच-विचार या भूलवश कर सकते है, हालांकि उन्हें ऐसे जोखिम भरे कार्य में आनंद आता है। लेकिन कभी-कभी ऐसा करना उनके लिए बड़ी परेशानी भी खड़ी कर सकता है। जिन जातकों की कुंडली के पांचवें भाव में चंद्र ग्रह का स्थान अगर जातक को प्रतिकूल परिणाम दे रहा हो तो, उन्हें, धैर्य के साथ ठीक प्रकार से सोच-समझकर किसी भी फैसले का निर्णय करना चाहिए, क्योंकि उनके गलत फ़ैसलों से दुसरें लोगों का उनके साथ संबंध भी बिगड़ सकता है और उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

पांचवे भाव में चंद्र ग्रह का करियर तथा वैवाहिक जीवन पर प्रभाव 

चन्द्र ग्रह से प्रभावित जातक, बुद्धिमान होने के साथ-साथ मनोरंजन, खेल और कला से सम्बंधित क्षेत्रों में अच्छी रूचि रखते रखते है। ऐसे जातक अपने जीवन काल में बहुत सफलता प्राप्त करते हैं। इन जातकों को अपने जीवन साथी के माध्यम से भी लाभ प्राप्त होने की संभावना होती है। वें जातक किसी भी रहस्य को अधिक समय तक गुप्त नहीं रख पाते हैं।पंचम भाव में यहां स्थित चंद्र ग्रह विशेष रूप से तरल चीजों के लिए हानिकारक प्रभाव देने वाला माना गया है। ज्योतिष की सलाह में ऐसे जातकों को स्वयं को चिडचिडा होने से दूर रखने की सलाह दी जाती है जो कि उनके भाग्योन्नति में सहायक सिद्ध होगा।

चंद्र
  • पंचम भाव में चंद्र ग्रह की सप्तम दृष्टि से प्रभाव 

चंद्र ग्रह यदि कुंडली के, पांचवे भाव में स्थित है तो, चंद्रमा की सप्तम पूर्ण दृष्टि ग्यारहवें (लाभ) के भाव पर पड़ती है। जिसके फलस्वरूप, ऐसे जातक जातक, ईमानदारी से धन कमाते हैं। साथ ही ऐसे जातकों का मित्र मंडल श्रेष्ठ होता है और उन्हें सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं।

  • पंचम भाव में मित्र राशि में चंद्र ग्रह का प्रभाव 

चंद्र ग्रह का कुंडली के पंचम भाव में, अपनी मित्र राशि में होने से जातक, विद्या के क्षेत्र में अच्छी प्रगति व स्थान प्राप्त करता हैं। साथ ही इन जातकों को संतान से कष्ट होने की संभावना है।

  • पंचम भाव में, शत्रु राशि में चंद्र ग्रह का प्रभाव

चंद्र ग्रह का कुंडली के पांचवे भाव में, अपनी शत्रु राशि में होने से जातक, को विद्या के क्षेत्र और संतान पक्ष में कुछ समस्या उठानी पड़ सकती है। ये जातक चिंताओं से ग्रस्त रहता है।

  • पंचम भाव में चन्द्र का स्वराशि, उच्च राशि व नीच राशि में प्रभाव
  • चंद्र ग्रह का इस भाव में अपनी स्वराशि, जो कि कर्क राशि है, में होने से जातक की संतान मेधावी व होनहार होती है। साथ ऐसे जातक की शिक्षा भी बिना बाधा के पूर्ण होती है।
  • चंद्र ग्रह का पांचवें भाव में अपनी उच्च राशि, वृषभ में होने से जातक को उच्च शिक्षा प्राप्त होने के साथ-साथ संतान से भी सुख मिलता है। ऐसे जातक अपनी बुद्धि के बल से धन कमाता है।
  • चंद्र ग्रह का पांचवें भाव में अपनी नीच राशि, वृश्चिक में होने से जातक, को अपनी संतान के कारण दुःख मिलता रहता है। साथ ही उसकी शिक्षा पूर्ण होने में बहुत सी कठिनाइयां या बाधाएं आती है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर अंत में यह निष्कर्ष मिलता है, कि कुंडली के पांचवे भाव में मौजूद चंद्र ग्रह,  जातक को प्रतिभावान, गुणी, सफल, और संतान की देखरेख करने वाला बनाते हैं। ऐसे जातक, नई चीजों को जानने और सृजनात्मक करने के लिए प्रेरित रहते हैं। ज्योतिष में चंद्रमा मन को प्रसन्न करने वाला तथा सकारात्मक फल देने वाला एक चंचल ग्रह माना जाता है। कुंडली के पांचवे भाव में भी चंद्र ग्रह जातक को शुभ परिणाम ही देते हैं। लेकिन कुछ परिस्थितियों में विरोधी ग्रहों के प्रभाव में जातक को नकारात्मकता का भी सामना करना पड़ सकता। अतः ऐसे जातक को धैर्यता और सावधानी से निर्णय लेने की सलाह दी जाती है।

पांचवे भाव में चंद्र ग्रह से सम्बंधित- सामान्यप्रश्न- FAQ


Q- कुंडली में पंचम भाव का स्वामी कौन है?

An- सूर्य पंचम भाव का स्वामी है, और जातक सिंह लग्न का होता है। प्रत्येक लग्न के लिए स्वामी अलग-अलग होते हैं, जो उनके जन्म के समय ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है।

Q- मैं अपने पांचवें भाव को कैसे सक्रिय (एक्टिव) करूं?

An- कुंडली में पांचवें भाव को सकिय करने के लिए गुरुवार का व्रत रखें। वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को पंचम भाव का कारक ग्रह माना गया है। व्रत रखने से बृहस्पति मजबूत होगा और बिना किसी संदेह के कुंडली का पंचम भाव मजबूत और सक्रिय रहेगा।

Q- पंचम भाव में कौन सा ग्रह अच्छा है?

An- बृहस्पति इस भाव का नैसर्गिक कारक है। यह बृहस्पति, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध के लिए सर्वोत्तम है लेकिन शनि के लिए कमजोर भाव माना गया है।

Q- कुंडली में पांचवां भाव किसका होता है?

An- कुंडली का पंचम भाव, प्रेम, यानी लव लाइफ और प्रेम सम्बन्ध के बारे में बताता है। इसके साथ ही, इस भाव को संतान और शिक्षा का भी कारक माना गया है।

Q- मैं अपने पांचवें भाव को कैसे ठीक करूं?

An- इस भाव में, यहां शनि और केतु जैसे पाप ग्रह हो तो, जीवन का आनंद खत्म हो जाता है । अपने जुनून को खोजें और अपने लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध हों। बृहस्पति विस्तार करना और आनंदित होना पसंद करता है। मंत्र ध्यान में कुछ आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त करें और बच्चों के साथ खेलें अता समय व्यतीत करें।

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