कुंडली के बारह भावों में शनि व  सूर्य की युति में तीव्रता

शनि व सूर्य की युति

कुंडली के बारह भावों में शनि व सूर्य की युति का प्रभाव- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में शनि और सूर्य की युति का अर्थ है, पिता-पुत्र का साथ। पिता-पुत्र होने के कारण ये दोनों ग्रह साथ में होते हैं तो, परस्पर शत्रुता रखते हैं। इस विषय पर यदि गहन अध्ययन किया जाए तो, जब ज्ञान और अंधकार का संयोग होता है तो यह शुभ प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। किसी जातक की कुंडली में शनि-सूर्य की युति जीवन को पूर्णतः संघर्ष से भर देती है। विशेष रूप से यह युति जब कुंडली के प्रथम, पांचवें, नौवें, या दसवें भाव में हो तो यह उस भाव के गुणों में देरी लाता है। बहुत मेहनत के बाद जातकों को सफलता मिलती है। साथ ही यह युति पिता-पुत्र के मध्य कुछ मामलों को लेकर मतभेद की स्थिति को लाती हैं और दोनों के एक-दूसरे से दूर रहने की संभावना होती हैं।

Table of Contents

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि और सूर्य को एक दूसरे का शत्रु कहा जाता है। वैसे तो पौराणिक कथाओं में दोनों के बीच पिता और पुत्र का संबंध है लेकिन, दोनों के बीच शत्रुता अधिक है। शनि और सूर्य देव मिलकर समसप्तक योग का निर्माण करते हैं। इसके अलावा ग्रह समय- समय पर पर अपनी चाल में बदलाव करते रहते हैं, जिससे शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के योगों का निर्माण होता है।

‘मंगल भवन’ के इस लेख में, आज हम कुंडली के बारह भावों में शनि व सूर्य की युति से होने वाले प्रभावों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के पहले भाव में, शनि व सूर्य की युति कुछ विशेष शुभ नहीं मानी जाती है। सूर्य ग्रह जातकों को आत्मबल देता है जबकि शनि उसी आत्मशक्ति को नुकसान पहुंचाता है। सूर्य और शनि की युति से प्रभावित जातक को सकारात्मक ऊर्जा तो मिलती है, लेकिन इस युति के अशुभ प्रभाव के कारण सकारात्मक फल नहीं मिल पाते हैं। इसके साथ ही यदि किसी जातक का सूर्य मजबूत हो तो वह गंभीर बीमारियों से छुटकारा पा सकता है।  

जन्म कुंडली के दूसरे भाव में शनि के साथ सूर्य की युति, जातक के संबंधों को बिगाड़ने वाली मानी जाती है। इसके साथ जातक के भौतिक सुख-सुविधाओं  में लाभ हो सकता है। लेकिन इस युति के अशुभ प्रभाव से जातक का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। ऐसे में जातक को गले से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं। इसके अलावा इन जातकों की वाणी दूसरों के साथ विनम्रता भरी नहीं होती है। ज्योतिष के अनुसार, दूसरे भाव में शनि व सूर्य की युति जातक को धन संपत्ति प्रदान करने वाली होती है।  

कुंडली के तीसरे भाव में सूर्य और शनि की युति को शुभ फल देने वाली माना जाता है। शनि व सूर्य की युति के शुभ प्रभाव में जातक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करता है। जिससे वह अपने जीवन में सफलता पूर्वक अग्रसर रहता है। इस युति के शुभ प्रभाव में जातक को राजनीति पक्ष में अच्छा पद मिल सकता है। इसके अलावा परिवार में भाई-बहन के साथ संबंधों में दरार आ सकती है। 

कुंडली के चौथे भाव में शनि व सूर्य की युति, जातक के लिए अशुभ प्रभाव देने वाली होती है। इस युति के प्रभाव में जातक को परिवार से दूर जाना पड़ता है। घर में माता-पिता से किसी न किसी बात को लेकर बहस भी हो सकती है, जिससे आपको अकेलापन व मायूस महसूस करेंगे। वैवाहिक जीवन में जीवनसाथी का अच्छा सहयोग मिलेगा; लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शनि व सूर्य के अशुभ प्रभाव में जातक अपने जीवन में होने वाली परेशानियों व नकारात्मक घटनाओं से चिंतित रहता है। 

वैदिक ज्योतिष की गणना के अनुसार, कुंडली के पांचवें भाव को ‘ज्ञान’ का भाव भी कहा जाता है। इस भाव में शनि व सूर्य की युति जातक के उच्च स्तर की क्षमता को दर्शाती है। इस युति के शुभ प्रभाव से ऐसे जातक का किसी भी कार्य के प्रति मेहनत व लगन करने की शक्ति बहुत दृढ़ होती है। इस युति के चलते जातक को शिक्षा और धन के मामले में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही इन जातकों की रुचि शेयर बाजार में होती है जिसके चलते उन्हें धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं।  

जन्म कुंडली के छठे भाव में शनि व सूर्य की युति, जातक के लिए अच्छे परिणाम देने वाली होती है। ऐसे जातक को अच्छी नौकरी मिलती है। ज्योतिष के अनुसार, युति के शुभ संयोग से जातक के जीवन के कष्ट दूर होते हैं। कोई भी पुराना कर्ज चुका देता है। प्रेम जीवन अच्छा होता है और विवाह के अच्छे योग बनते हैं। 

कुंडली के सातवें भाव में शनि व सूर्य की युति जातक को अच्छे परिणाम नहीं देती है। इस युति के चलते यदि शनि देव शुभ नक्षत्र में हो तो वह सूर्य के अशुभ प्रभाव को कम कर देते हैं। इसके साथ ही जातक के वैवाहिक जीवन में कुछ समस्याएं आ सकती है। अशुभ प्रभाव के चलते जातक को व्यापार में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पारिवारिक जीवन में भी अशांति रहती है। 

जन्म कुंडली के आठवें भाव में शनि व सूर्य की युति जातक के लिए शुभ परिणाम वाली नहीं होती है। इस युति के अशुभ प्रभाव में जातक को अचानक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा आकस्मिक दुर्घटनाएं हो सकती हैं।  ज्योतिष के अनुसार, आठवें भाव में शनि और सूर्य की युति जातक के विवाह योग में परेशानी का संकेत होती है। इसके साथ कोई जातक, पूर्वजों की संपत्ति के उत्तराधिकारी भी बन सकते हैं। 

कुंडली के नौवें भाव में शनि व सूर्य की युति अपार सफलता या असफलता देने वाली हो सकती है। यह संयोजन सिद्धांत के अनुसार, ज्योतिष की गणना से ज्ञात किया जाता है। ऐसे संयोग के शुभ प्रभाव से जातक को विदेश जाने के अवसर, प्राप्त होंगे। इसके साथ ही इन जातकों की कार्य करने की क्षमता का विकास होता है। ऐसे जातक कोई भी सामजिक कार्य बड़े सोच-समझकर करते हैं; क्योंकि यही जातक के सफल और असफल होने की संभावना को बढ़ाते या घटाते है।  

कुंडली के दसवें भाव में शनि व सूर्य की युति जातक के लिए मिला-जुला परिणाम देने वाली होती है। इस युति के दौरान जातक को कभी-कभी अच्छे फल की भी प्राप्ति हो सकती है। युति के शुभ परिणाम में, जातक का करियर अच्छा रहता है। इसके अलावा जातक के मन में अपने करियर को लेकर कई सवाल व असमंजस की स्थिति रहती है, लेकिन समय के साथ उसका हल हो जाता है। कुंडली के दसवें भाव में शनि व सूर्य की युति जातक को अच्छे परिणाम देती है लेकिन ऐसे जातक करियर में कई उलझनों से जूझते हैं। जिसके चलते कुछ जातक करियर में सफल हो जाते हैं तो कुछ असफलता का सामना करते हैं।  

कुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि व सूर्य की युति जातक के लिए शुभ मानी जाती है। जिससे जातक को जीवन में अच्छे परिणाम मिलते हैं। शनि व सूर्य के प्रभाव से जातक को प्रसिद्धि मिलती है। इन जातकों को सामाजिकता में अधिक रूचि नहीं होती है। इस युति का शुभ प्रभाव जातक को अपनी आयु के मध्य भाग में मिलता है; जिससे जातक जीवन में लाभ प्राप्त करते हैं। ऐसे जातक सामाजिक कार्यों से दूर रहना पसंद करते है। इसके अलावा माता पक्ष के स्वास्थ्य को लेकर कुछ चिंता हो सकती है।  

शनि व सूर्य की युति

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के बारहवें भाव में सूर्य और शनि की युति जातक के आध्यात्मिकता के लिए शुभ नहीं मानी जाती है। ऐसे जातकों का मन ध्यान या आध्यात्मिक कार्यों में नहीं लगता और वो अक्सर भ्रमित रहते हैं। इस युति के अशुभ प्रभाव में जातक को जीवन में निराशा मिलती है। इसके साथ ही ये जातक मानसिक रूप से अशांत महसूस करते हैं। और लगातार जातक के जीवन में एक के बाद एक परेशानियां आती रहती हैं। ऐसे जातक अपने करियर के मामलों में सफल होते हैं। 

वैदिक ज्योतिष की गणना को ध्यान में रखते हुए, हम यह कह सकते हैं कि कुंडली के विभिन्न भावों में शनि के साथ सूर्य का युति में होना शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी। जिसके परिणाम भी जातक को मिले-जुले रूप में प्राप्त होंगे।


Q. शनि व सूर्य की युति से कौन सा योग बनता है?

An. ज्योतिष के अनुसार, शनि और सूर्य देव मिलकर समसप्तक योग का निर्माण करते हैं। इसके अलावा ग्रह समय- समय पर पर अपनी चाल में बदलाव करते रहते हैं, जिससे शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के योगों का निर्माण होता है।

Q. सूर्य और शनि के एक ही भाव में होने से क्या होता है?

An. जब शनि और सूर्य कुंडली में एक साथ हों तो सबसे पहले वें जातक के पिता-पुत्र के रिश्ते को प्रभावित करते है। साथ ही, उनका एक-दूसरे के प्रति सम्मान खत्म हो जाता है। पिता के स्वास्थ्य को हानि होती है।

Q.सूर्य और शनि का क्या संबंध है?

An. शनिदेव को न्याय के देवता की संज्ञा प्राप्त है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव और सूर्य देव के बीच पिता-पुत्र का संबंध है।

Q. शनि के साथ शत्रु ग्रह कौन है?

An. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बुध और शुक्र शनि के मित्र हैं, जबकि सूर्य, चंद्रमा और मंगल शनि के शत्रु ग्रह हैं।

Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *