सातवें घर का खास अंश: कर्क लग्न में मंगल और केतु की विशेष दृष्टि

मंगल और केतु

कर्क लग्न में केतु और मंगल की युति: ज्योतिष शास्त्र में, मंगल और केतु का एक साथ होना यानी पिशाच योग का होना। यदि कुंडली के सातवें भाव में यह योग निर्मित हो रहा हो तो; यह सातवें भाव से संबंधित जो की वैवाहिक जीवन को दर्शाता है और प्रभावित करेगा। कुंडली का सातवाँ भाव जीवनसाथी का भाव माना गया है। इस भाव में बैठे कोई ग्रह का सीधा प्रभाव जीवनसाथी के पक्ष को प्रभावित करता हैं। इसके साथ ही सातवें भाव में उपस्थित ग्रह से आप अपने जीवन साथी के बारे में भी जान सकते हैं। मंगल व केतु के प्रभाव से इस पर आपको समस्या मिलेगी। प्रेम संबंधी मामलों में गलती करवायेंगे। मंगल क्रोध का कारक है; और केतु नीच का और इनका द्विस्वभाव राशि मे होना, यानी दशम लग्न और चौथे भाव पर भी दृष्टि है। ज्योतिष की गणना में यह शुभ नहीं माना जाता है।’मंगल भवन’ के इस लेख में हम कर्क लग्न में मंगल और केतु की युति के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे- 

  • मंगल ग्रह 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इसे “लाल ग्रह” भी कहा जाता है। मंगल जातक की इच्छा शक्ति, साहस, कार्य, आक्रामक स्वभाव, क्रोध, लड़ने की क्षमता, भाई, पुरुष मित्र, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है। 

  • केतु ग्रह 

इसके साथ ही, केतु ग्रह को, राहु के समान ही भ्रम का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह माना गया है। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दोनों ही ग्रह जातक के मन में भ्रम फैलाने का कार्य करते हैं। लेकिन केतु भ्रम के साथ-साथ ज्ञान लाने वाला होता है। इसके अलावा केतु अलगाव, धार्मिकता व आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है। 

ज्योतिष में, मंगल और केतु की युति के सम्बन्ध में कई प्रकार से तथ्यों को बताया है। इस संयोजन की कई तरह से व्याख्या की जा सकती है। इसका सकारात्मक प्रभाव हम देखें तो, एक तरफ, यह जातकों को चीजों और रुचियों के मामलों में अनुसंधान और गहराई से खोज करने की कुशल क्षमता प्रदान कर सकता है। इसके साथ ही प्रभावित जातक साहसी बनते हैं; और जीवन में आने वाली बड़ी मुसीबतों का बहुत ही साहस पूर्वक सामना करने में सक्षम होते है। लेकिन दूसरी तरफ इसके नकारात्मक परिणाम में, यह जातकों को दुर्घटना, सर्जरी या रक्तपात जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी डाल सकता है।

वैदिक ज्योतिष में, मंगल व केतु की इस युति का परिणाम, कुछ हद तक चंद्रमा की स्थिति पर भी निर्भर करेगा। यदि कुंडली में चंद्रमा खराब स्थिति में हो, तो यह जातक को हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए बाध्य कर सकता है और स्वयं या दूसरों को नुकसान पहुंचाते समय उनके प्रति उदासीन भी हो सकता है।

इसके साथ ही, मंगल और केतु की युति से यह भी पता चलता है कि जातक कितना ऊर्जावान व साहसी हो सकता है। कभी-कभी प्रभावित जातक व्यवहार में बहुत आक्रामक भी हो सकते है। और इसके कारण जातक गलत कदम भी उठा सकता है। ऐसे जातक क्रोधी स्वभाव के होते हैं। ऐसे जातकों को रक्तचाप संबंधित बीमारी हो सकती है। 

मंगल व केतु से प्रभावित जातक को, अपेक्षाकृत अन्य जातकों की तुलना में गर्मी अधिक आभास होती है। इसके अलावा ये जातक कोई त्वचा संबंधी रोग से भी पीड़ित हो सकते हैं। उसके कई ओपरेशन , कटने, दुर्घटना या किसी सर्जरी का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही ये जातकों में रक्त की कमी (खून की कमी) हो सकती है। 

मंगल व केतु के असाधारण प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातक हमेशा नए लोगों से मिलते-जुलते हैं, वे बड़ी और रोमांचक चीजों को पसंद करते हैं। इसलिए इन जातकों को अपने जीवन में एक निश्चित शक्ति व दिशा देने की आवश्यकता होती है। नहीं तो, ऐसे जातक, कानून के नियम का उल्लंघन करने वाले या कोई बड़े संत बन सकते हैं, इसलिए ग्रहों का लाभकारी स्थिति में होना ज्योतिष की दृष्टि में विशेष रूप से आवश्यक होता है।

मंगल व केतु ग्रह की साथ में युति से प्रभावित जातक, प्रायः पहले अपने प्रियजनों से लड़ते हैं और बाद में किसी समय पछतावा महसूस करते हैं। परिवार में ऐसे जातक अधिक प्रिय नहीं होते हैं। इन व्यक्तियों से अधिक कोई भी प्यार नहीं कर सकता। क्रोध के बाद, जब वे शांत होते हैं तो वे परिवार में सबसे प्रिय व  आकर्षक लगते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मंगल और केतु की युति, कर्क राशि के जातकों के लिए सबसे खराब मानी जाती है। क्योंकि इसमें, मंगल नीच का होता है जो कि जातक को उसके सही कार्य के बारे में कोई जानकारी नहीं होने देता। और जातक गलत दिशा में कार्यरत रहते हैं।

मंगल और केतु

इसके अलावा यदि अन्य राशियों के बारे में बात करें तो, इस युति का अच्छा प्रभाव वृश्चिक राशि में सर्वोत्तम है, क्योंकि मंगल और केतु इस पर सह-शासन करते हैं। और एक यह अच्छा संकेत है, जहां मंगल उच्च का होता है। मेष, सिंह, धनु और मीन राशि में मंगल बहुत अच्छी स्थिति में होते हैं और ऐसे जातकों का कार्य सम्मानजनक होता है। अत: इस स्थिति में केतु भी अच्छे परिणाम देता है। मिथुन, कन्या और कुंभ राशि में मंगल शत्रु राशि में होता है, इसलिए ऐसे जातक के पास कार्य करने का सही विचार या दिशा नहीं होती है और केतु हमेशा कार्य करने के लिए नेतृत्वहीन होता है। इसलिए, ये स्थितियां ऐसी स्थितियों को जन्म दे सकती हैं जहां जातक को अपने सही व गलत कार्यों का अंदाजा नहीं हो पाता है। वृषभ और तुला राशि में मंगल तटस्थ भाव में होता है। 

  • चूँकि, मंगल हमारे शरीर में रक्त का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए समय-समय पर रक्तदान करें। तेज गति से चलने से सिर से पैर तक शरीर के सभी हिस्सों में रक्त पहुंचता है। रक्त शुद्धि के लिए आयुर्वेद की चीजें बहुत मदद करती हैं।
  • स्वयं को संयमित व सकारात्मक रखें। क्योंकि, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी संयोजन ऊर्जा का उपयोग कैसे कर सकता है। और इस संयोजन शक्ति के कारण ही जातकों को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की परिस्थिति का सामना करने की क्षमता मिलती है।


Q.मंगल और केतु के एक साथ होने पर क्या होता है?

An.मंगल व केतु की यह युति कुछ राशियों के लिए शुभ नहीं होगी। ज्योतिष विद्या के अनुसार, कुंडली में केतु की स्थिति अशुभ होने पर जीवन में कई परेशानियां आती हैं। लेकिन केतु की शुभ स्थिति कुछ राशियों के लिए शुभकारी भी माना जाती है।

Q.कर्क लग्न वाले जातकों को किसकी पूजा करनी चाहिए?

An.कर्क राशि का स्वामी ग्रह चंद्रमा है और इन जातकों को इष्ट देव शिव जी की आराधना करना लाभकारी होता है। ऐसे में इन राशियों को महादेव की पूजा करनी चाहिए।

Q.क्या मंगल व केतु की युति जातक को बुरे परिणाम देती है?

An. हां, ज्योतिष में मंगल व केतु के साथ में युति कुछ राशि के जातकों को अच्छे परिणाम नहीं देती है।

Q. कर्क लग्न में मंगल व केतु का क्या प्रभाव होता है?

An.मंगल और केतु की युति,कर्क राशि के जातकों के लिए सबसे खराब मानी जाती है। क्योंकि इसमें, मंगल नीच का होता है जो कि जातक को उसके सही कार्य के बारे में कोई जानकारी नहीं होने देता।

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