Pradosh Vrat | प्रदोष व्रत, भोलेनाथ को प्रिय, इस तिथि को ऐसे करें व्रत, पूर्ण होंगे सभी कार्य

Pradosh Vrat

प्रदोष व्रत, हिन्दू संस्कृति व धर्म ग्रंथों में प्रदोष व्रत त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ‘मंगल भवन’ के इस लेख में हम आपको बताएँगे आने वाले प्रदोष व्रत तिथि 2023 में। यह पवित्र व्रत माता पार्वती और भगवान शिव जी को समर्पित है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को करने से अच्छा स्वास्थ्य तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक वर्ष में कई बार आता है। प्रायः यह व्रत महीने में दो बार (कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष) आता है।

प्रदोष व्रत?

ज्योतिष के अनुसार, पंचांग में प्रदोष प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाते है। प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष कहा जाता है। ग्रंथों में  सूर्यास्त के 45 मिनट बाद से रात्रि के 45 मिनट के पहले का समय ‘प्रदोष काल’ कहलाता है। इस व्रत में मुख्य रूप से भोले नाथ की पूजा की जाती है। हिन्दू संस्कृति में व्रत व पूजा-पाठ अत्यधिक महत्वपूर्ण विधान बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से व्रत व विधि पूर्वक पूजन करने से जातक की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। 

हिन्दू धर्म में प्रति माह की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत होते हैं;  लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि- भगवान शिव प्रदोष काल के समय कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इस कारण सभी भक्तजन भोले नाथ को प्रसन्न करने हेतु  ‘प्रदोष व्रत’ करते हैं। इस व्रत शक्तिशाली प्रभाव सभी कष्ट और हर प्रकार के दोष मिट जाते हैं। कलयुग में सही जी की कृपा दृष्टि प्राप्त करने हेतु प्रदोष व्रत को करना बहुत शुभ व मंगलकारी माना जाता है। 

Pradosh Fast
प्रदोष व्रत का महत्व

‘मंगल भवन’ के ज्योतिष विद्या के गुरु श्री भास्कर जी ने यहां सप्ताह के सात दिन, किये जाने वाले प्रदोष व्रत व उनके विशेष महत्व के बारे में बताया है।  जो कुछ इस प्रकार है-

  • रविवार : रवि प्रदोष व्रत 

महत्व: रोगों से मुक्ति तथा दीर्घ आयु आरोग्य प्राप्ति हेतु 

  • सोमवार: सोम प्रदोष व्रत  

महत्व: मानसिक शान्ति, सुरक्षा, तथा मनोकामना सिद्धि हेतु 

  • मंगलवार : भौम प्रदोष व्रत  

महत्व-  ऋण से मुक्ति हेतु 

  • बुधवार : बुद्ध प्रदोष व्रत 

महत्व- सर्व मनोकामना पूर्ति हेतु 

  • गुरुवार: गुरु प्रदोष व्रत 

महत्व- शत्रु का विनाश, पितृ मोक्ष, भक्ति में वृद्धि हेतु 

  • शुक्रवार : शुक्र प्रदोष व्रत 

महत्व – अभीष्ट सिद्धि, चारों पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्राप्ति हेतु 

  • शनिवार: शनि प्रदोष व्रत 

महत्व – संतान प्राप्ति हेतु 

प्रदोष व्रत का महत्व

मान्यता है कि इस दिन पूर्ण श्रद्धा से भगवान शिव की आराधना करने से जातक के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, तथा वह मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों (गौ  दान) के दान जितना पुण्यदायी होता है। इस व्रत के महत्व के बारे में महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। कलयुग में अधर्म पनपने लगेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह को अपनाएँगे;  उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके माध्यम से सभी शिव जी की आ आराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेंगे। 

सर्वप्रथम इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था, फिर सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने बताया , जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था। प्रदोष व्रत अन्य दूसरे व्रतों से अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत में जातक को यथासंभव निर्जल रहकर व्रत रखना चाहिए। प्रातः जल्दी स्नान कर भगवान शिव जी का जल अर्पित कर,  बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित विधि पूर्वक पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। 

इस प्रकार करें पूजन 

ज्योतिष की गणना में संध्या का समय प्रदोष व्रत के पूजन हेतु श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप किया जाता है। आइए जानते हैं, प्रदोष व्रत के कुछ आसान से नियम व  विधि-

●  इस दिन सूर्योदय के पहले उठकर पवित्र हो स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

●  इसके बाद पंचामृत, बेलपत्र, पुष्प, चन्दन, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल, कपूर व नैवेद्य आदि से भगवान  जी शिव जी की पूजा करें।

●  इस व्रत में भोजन ग्रहण न करें;  पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करें।

●  पूजा स्थल को गंगा जल व गाय के गोबर से शुद्ध कर लें।

●  फिर मंडप तैयार कर पांच अलग-अलग रंगों की रंगोली बना लें।

●  पूजा की सारी तैयारी करने के बाद, उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके आसन पर बैठ जाएं।

●  भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल अर्पित करें।

पंचांग के अनुसार आप जिस भी तिथि का (कृष्णा पक्ष व शुक्ल पक्ष) प्रदोष व्रत रखना चाहते हैं, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस व्रत हेतु निर्धारित कथा पढ़ें या सुनें।

प्रदोष व्रत की उद्यापन विधि 

शास्त्रों में कहा गया है कि, जो जातक इस व्रत को 11 या फिर 26 प्रदोष व्रत पूरा कर लेते हैं; उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से अवश्य करना चाहिए। व्रत का उद्यापन इस प्रकार है-

●  इस व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।

●  उद्यापन विधि आरम्भ करने से एक दिन पूर्व विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की  की पूजा की जाती है; तथा उद्यापन से पूर्व रात्रि आप कीर्तन व जागरण करें।

●  अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप तैयार कर, उसे वस्त्रों और रंगोली से सुसज्जित करें।

●  ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन में आहुति दी जाती है।

●  हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती कर शांति पाठ करें।

●  अंत में समर्थ अनुसार दो या अधिक ब्राह्मणों को भोजन करवा कर इच्छा से दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

प्रदोष व्रत पौराणिक कथा

धर्म ग्रंथों में किसी भी व्रत को करने के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य होती है। प्रदोष व्रत के पीछे क्या कथा है आइए जानें –

स्कंद पुराण में दी गयी कथा- प्राचीन समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय घर आ जाती। रोज की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस घर लौट रही थी; तब उसने नदी किनारे एक सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ? वास्तव में वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गए व उनका राज्य भी दुश्मनों ने अपने अधीन कर लिया। पिता की मृत्यु के बाद शोक में धर्म गुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया था। बालक की हालत देख उस ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण करने लगी। 

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर मंदिर गई, जहां उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि शांडिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जो अपने अद्भुत पराक्रम व कुशाग्र बुद्धि लिए चर्चा में थे।

ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के माता-पिता के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी अत्यंत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में भी बताया। ऋषि के बताए गए विधान के अनुसार ब्राह्मणी व दोनों  बालकों ने व्रत किया; जिसके फल से वें अनजान थे। कुछ दिनों बाद दोनों बालकों को वन विहार करते समय वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।

राजकुमार धर्मगुप्त ने अपने संघर्ष से अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। फिर विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।

यह सभी ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उनकी सच्चे मन से की गई आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति प्रदान की। तब से हिदू धर्म में यह मान्यता है कि जो भी जातक प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा जी की उपासना करेगा व सच्चे मन प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा या पढ़ेगा; उसे कभी किसी भी परेशानी या दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

वर्ष 2023 में आने वाले प्रदोष व्रत 

माह जनवरी 

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत: बुधवार, 04 जनवरी 2023

कृष्ण पक्ष : गुरुवार, 19 जनवरी 2023

माह फरवरी – 

शुक्ल पक्ष: गुरुवार, 02 फरवरी 2023

कृष्ण पक्ष: शनिवार, 18 फरवरी 2023

माह मार्च

शुक्ल पक्ष: शनिवार, 04 मार्च 2023

कृष्ण पक्ष: प्रदोष व्रत (मधु कृष्ण त्रयोदशी), रविवार, 19 मार्च 2023

माह अप्रैल – 

शुक्ल पक्ष: सोमवार, 03 अप्रैल 2023

कृष्ण पक्ष: सोमवार, 17 अप्रैल 2023

माह मई – 

शुक्ल पक्ष, बुधवार, 03 मई 2023

कृष्ण पक्ष, बुधवार, 17 मई 2023

माह जून 

शुक्ल पक्ष: गुरुवार, 01 जून 2023

कृष्ण पक्ष: गुरुवार, 15 जून 2023

माह जुलाई 

शुक्ल पक्ष: शनिवार, 01 जुलाई 2023

कृष्ण पक्ष: शनिवार, 15 जुलाई 2023

माह अगस्त

कृष्ण पक्ष: रविवार, 13 अगस्त 2023

शुक्ल पक्ष: सोमवार, 28 अगस्त 2023

माह सितंबर

कृष्ण पक्ष: मंगलवार, 12 सितंबर 2023 

शुक्ल पक्ष: बुधवार, 27 सितंबर 2023

माह अक्टूबर

कृष्ण पक्ष: बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

शुक्ल पक्ष: गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

माह नवंबर 

कृष्ण पक्ष: शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

शुक्ल पक्ष: शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

माह दिसंबर

कृष्ण पक्ष: रविवार, 10 दिसंबर 2023

शुक्ल पक्ष: रविवार, 24 दिसंबर 2023

कुछ सवाल व उनके जवाब FAQ –

Q- प्रदोष व्रत में क्या नही करना चाहिए?

An- प्रदोष व्रत में तामसिक भोजन की बजाए सात्विक भोजन करना चाहिए।

Q- प्रदोष व्रत कितने तक करना चाहिए?

An- प्रदोष व्रत यथा शक्ति 11 बार कर सकते हैं।

Q- प्रदोष व्रत माह में कितने आते हैं?

An- प्रति माह प्रदोष व्रत 2 बार आते हैं।

Q- प्रदोष व्रत में किस देव की पूजा की जाती है?

An- प्रदोष व्रत में भगवान शिव जी की पूजा की जाती है।

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