कुंडली के बारह भावों में शनि व बृहस्पति की युति का प्रभाव

शनि व बृहस्पति की युति

कुंडली के बारह भावों में शनि व बृहस्पति की युति- वैदिक ज्योतिष के अनुसार, किसी जातक की कुंडली में, यदि शनि व बृहस्पति यानी गुरु की युति हो तो; ऐसे जातक सभी के लोकप्रिय होते हैं। शनि व गुरु की युति- अगर किसी कुंडली में हो या ये दोनों एक दूसरे को देख रहे हों तो ऐसे जातक बहुत अच्छे सलाहकार होते है।  इसके अलावा, शनि-गुरु युति- अगर किसी जातक की कुंडली में बन रही हो तो ऐसे जातक को राजनीति के क्षेत्र में भी अच्छा पद प्राप्त होने की सम्भावना रहती है। साथ ही ऐसा जातक उच्च कोटि का साधक और विभिन्न मंत्रों का ज्ञाता भी हो सकता है। 

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ज्योतिष शास्त्र में, शनि और बृहस्पति को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। शनि देव को पापी और क्रूर ग्रह कहा गया है। जिसके अशुभ प्रभाव से जातक का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है, लेकिन इसके साथ शनि देव से जातक सदैव अशुभ फल ही नहीं पाते हैं। बल्कि यदि शनि देव की कृपा हो तो जातक शुभ फल भी प्राप्त करते हैं। शनि की कृपा से जातक की किस्मत बदल जाती है। शनि के शुभ प्रभाव से रंक भी राजा बन सकते हैं। वहीं दूसरी ओर ज्योतिष में, बृहस्पति यानी गुरु को ज्ञान, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थान, धन, दान, पुण्य, वृद्धि आदि का कारक ग्रह माना जाता है। जो कि विशाखा, पुनर्वसु और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी कहलाते हैं। कुंडली में गुरु के शुभ प्रभाव से जातक का जीवन सुखमय व समृद्धि से भर जाता है। 

‘मंगल भवन’ के इस लेख में, आज हम आपको कुंडली के सभी बारह भावों में, शनि और बृहस्पति की युति से होने वाले प्रभावों के बारे में, विस्तार से बताने जा रहें है- 

ज्योतिष में, देखा जाए तो गुरु यानी बृहस्पति को ज्ञान प्राप्ति का मार्ग कहा जाता है। इसके साथ ही शनि देव को कर्म के फल दाता कहा गया है । इसलिए यदि ज्ञान व कर्म अच्छे भाव व अच्छी राशि मे साथ है तो अच्छा फल मिलता है । पर यदि नीच राशि जैसे- मकर राशि में यह युति है तो गुरु, शनि यम है व गुरु जीव का प्रतिरूप होते हैं; तो दोनों का एक साथ रहना इस परिस्थिति में ठीक नहीं माना जाता है। इसके अलावा कुंडली के बारह भावों में शनि व गुरु की युति का प्रभाव कुछ इस प्रकार होगा- 

 वैदिक ज्योतिष में, कुंडली के पहले भाव में शनि और बृहस्पति की युति जातक के लिए वित्तीय समस्याओं का कारण बन सकती है। इस दौरान जातक संत या साधु बन सकता है। साथ ही ऐसे जातक का कर्ज भी अधिक हो सकता है या लेने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए कुंडली के पहले भाव में शनि और बृहस्पति की युति अशुभ मानी जाती है। 

कुंडली के दूसरे भाव में शनि और बृहस्पति की युति से प्रभावित जातक विद्वान बन सकता है। इस दौरान जातक की निर्णय शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे जातक को ज्ञान तो बहुत होता है; परन्तु वें कोई निर्णय नहीं ले पाते। ऐसे जातक को अपने भाग्य का साथ अधिक नहीं मिलता है। साथ ही खर्चे अधिक हो सकते हैं। करियर के  शुरुआत में बड़े परिवर्तन आ सकते हैं। 

कुंडली के तीसरे भाव में शनि और बृहस्पति की युति के प्रभाव के कारण जातक को धन संबंधी परेशानी होती है। इस युति के कारण जातक के व्यवसाय का अच्छा विस्तार हो सकता है। इसके साथ ही ऐसे जातक दिमागी तौर पर शक्तिशाली होते है। नौकरी करने वाले जातक बार-बार नौकरी बदल सकते हैं। शनि व गुरु के शुभ योगों से जातक आरामदायक जीवन व्यतीत करते हैं। अतः तीसरे भाव में शनि और बृहस्पति की युति जातक के लिए अच्छे परिणाम प्रदान करने वाली होती है। 

कुंडली के चौथे भाव में शनि और बृहस्पति की युति जातक को बहुत मान-सम्मान व प्रसिद्धि दिला सकती है। इस अवधि में यदि कोई जातक नया व्यवसाय शुरू करें तो वह सफलता प्राप्त करता है। इसके साथ ही प्रभावित जातक यात्रा भी अधिक कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पुनर्मिलन, विवाह आदि कुछ पारिवारिक घटनाएं आपको प्रभावित कर सकती हैं। 

कुंडली के पांचवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति से प्रभावित जातक को भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है। इस दौरान सरकार मामलों में मतभेद या टकराव की स्थिति हो सकती है और कोर्ट-कचहरी मुकदमेबाजी हो सकती है। इसके अलावा व्यावहारिक जीवन में रोमांच बढ़ता है। इन जातकों का प्रेम जीवन अच्छा होता है। 

कुंडली के छठे भाव में शनि और बृहस्पति की युति से प्रभावित जातक को अपनी पत्नी से पूर्ण सुख मिलता है। इसके साथ ही कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। दूसरों की अच्छाई या किया गया कोई कार्य आप पर भारी पड़ सकता है। करियर के क्षेत्र में इन जातकों के लिए यह युति अधिक शुभ नहीं मानी जाती है। 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, कुंडली के सातवें भाव में शनि और गुरु की युति से प्रभावित जातक के जीवन में कई शुभ कार्य हो सकते हैं। इस युति के अच्छे प्रभाव से जातक का खर्चों के साथ-साथ धन की आवक भी बढ़ती है। व्यवसाय में कोई नई प्रतिबद्धता शामिल हो सकती है और सफलता मिलेगी। जिन जातकों का विवाह नहीं हुआ है उनके विवाह के अच्छे योग है। 

आठवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति के कारण जातक की आर्थिक स्थिति मजबूत रहेगी। दीर्घायु हो सकता है। इस दौरान व्यक्ति प्रभावशाली और शक्तिशाली बन सकता है। पति-पत्नी के बीच की नींव मजबूत होने से व्यक्ति सुखी इंसान बनता है। 

कुंडली के नौवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति के कारण जातक, अच्छी समृद्धि और धन-संपदा प्राप्त कर सकते है। इस दौरान जातक को भाग्य का अच्छा साथ मिल सकता है और वह भाग्यशाली बनता है। विद्यार्थियों को जीवन में सफलता मिल सकती है। ऐसे जातक की रुचि आध्यात्मिकता की ओर अधिक होगी।

कुंडली के दसवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति से प्रभावित जातक भाग्यशाली होते है। इन जातकों को करियर में बहुत सफलता मिल सकती है और व्यापार में भी बहुत वृद्धि व लाभ होगा। इसके साथ ही शनि व गुरु के अच्छे प्रभाव से जातकों को समाज में प्रसिद्धि मिल सकती है। ऐसे जातक मान-सम्मान के साथ-साथ धन-संपदा भी प्राप्त करते हैं। 

कुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति से प्रभावित जातक अपने करियर में बहुत से परिवर्तन को महसूस करेंगे। इसके साथ ही करियर में सफलता मिलने से जातक का समाज में भी दायरा अधिक बढ़ सकता है। इस युति के अच्छे प्रभाव से आपको अपनी प्रतिभा और आविष्कारों के कारण समाज में अच्छा मान-सम्मान और प्रसिद्धि प्राप्त होगी। 

शनि व बृहस्पति की युति

जन्म कुंडली के बारहवें भाव में शनि और बृहस्पति की युति जातक के धन संबंधी मामलों में वृद्धि करेगी। जातक किसी धार्मिक स्थान पर दान पुण्य जैसे शुभ कार्य कर सकते है। व्यापार में भी वृद्धि व लाभ प्राप्त होगा। इस दौरान जातक किसी को आर्थिक सहायता दे सकते हैं साथ ही जातकों के धन लाभ में वृद्धि भी होगी। 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, शनि और बृहस्पति की युति होने से महासंयोग बनता है क्योंकि ये दोनों ग्रह अत्यंत प्रभावशाली और धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं। इसलिए इस युति का प्रभाव जातक के जीवन में शुभ-अशुभ दोनों प्रकार से परिणाम देता है। 


Q. गुरु शनि की युति से क्या होता है?

An. गुरु शनि युति के सकारात्मक प्रभाव: व्यक्ति को भाग्य का भरपूर साथ मिलता है। वह अपने जीवन में उच्च पद, प्रतिष्ठा और धन-संपत्ति प्राप्त करता है।

Q. क्या बृहस्पति और शनि की युति अच्छी है?

An. लगभग हर 20 साल में घटित होता है जब बृहस्पति अपनी कक्षा में शनि से आगे निकल जाता है। नग्न आंखों वाले ग्रहों के बीच अब तक के सबसे दुर्लभ संयोजन के कारण उन्हें “महासंयोग” नाम दिया गया है।

Q. क्या शनि बृहस्पति का मित्र है?

An. हां, गुरु के राहु और शनि मित्र होते हैं।

Q. शनि और बृहस्पति कैसे संबंधित है?

An. बृहस्पति और शनि ज्योतिष में पारस्परिक ग्रहों का सबसे पूरक संयोजन बनाते हैं । बृहस्पति ग्रह की ऊर्जा ज्ञान, व्यापक, आशावादी और प्रेरणादायक है, जबकि शनि की ऊर्जा कर्म के अनुसार, स्थिर, यथार्थवादी और समाहित है।

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