जन्म कुंडली में- दुर्धरा योग
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, किसी भी जातक की जन्म कुंडली में ‘दुर्धरा’ (दुरुधरा योग ) का बनना चंद्रमा की स्थिति के आधार पर निश्चित किया जाता है। जब कुंडली में सूर्य ग्रह के अलावा चन्द्र के दोनों ओर या दूसरे और बारहवें भाव में कोई ग्रह स्थित हों, तो यह ‘दुरुधरा योग’ का निर्माण करते हैं। साथ ही, यह योग चंद्रमा की स्थिति को अन्य ग्रहों के प्रभाव के साथ जोड़कर देखा जाता है। चंद्रमा जो सबसे अधिक गतिशील ग्रह है उस पर जब अन्य ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो वह किस प्रकार जातक को प्रभावित करता है; इसे समझ पाना कठिन नहीं होता है।
ज्योतिष में, चंद्रमा को एक चंचल ग्रह माना गया है! जो जातक के मन को प्रभावित करता है। जातक के मन का दुख और सुख चंद्रमा की कलाओं के आधार पर घटता बढ़ता है। जिस जातक की कुंडली में, यह योग होता है ऐसे जातक जन्म से ही सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। इन जातकों के पास धन-संपत्ति वाहन, नौकर-चाकर और सभी प्रकार के भौतिक सुख होते है। साथ ही, ऐसे जातक स्वभाव से उदार, दयालु स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य करने वाला और धर्मात्मा होता है। ज्योतिष में, दुर्धरा योग को एक शुभ योग माना जाता है। अतः इसके माध्यम से जातक को सुख, शांति और शुभता वाले फलों की ही प्राप्ति होती है। आगे हम लेख में, दुरुधरा योग में सूर्य ग्रह को छोड़ कर अन्य सभी ग्रहों के साथ प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे- जो की जातक को ग्रहों के गुणों के आधार पर ही प्रभावित करते हैं।
कैसे बनता है- दुर्धरा योग
- मंगल और बुध के साथ दुरुधरा योग
ज्योतिष के अनुसार, दुरुधरा योग जब कुण्डली में मंगल-बुध के संयोग से बनता है तो; यह स्थिति जातक को इन दोनों ग्रहों (मंगल-बुध) की युति स्वरूप ही परिणाम देती है; जो की अनुकूल संबंध नहीं माना जाता है। यह एक प्रकार के विरोधाभास की स्थिति को दर्शाता है। यदि कुंडली में इन दोनों ग्रहों के प्रभाव से ‘दुरुधरा योग’ बन रहा हो तो, ऐसा जातक प्रपंच करने वाला हो सकता है, वह छोटी-छोटी चीजों को भी ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। साथ ही, व्यर्थ झूठ और मिथ्या बोलते हैं। ऐसे जातक पूर्ण धनी तो होते हैं पर आर्थिक दृष्टि से उन्हें लाभ नहीं मिल पाता। ऐसे जातक चतुर-चालाक होते हैं और अपने काम को निकालने की योजनाएं बनाने में लगे रहते हैं।
- मंगल और बृहस्पति गुरु के साथ दुर्धरा योग
यदि कुंडली में, मंगल-गुरु से दुरुधरा योग बन रहा हो तो ऐसे जातक अपने कार्यों के कारण विख्यात रहता है। कुछ जातक क्रोधी और जिद्दी स्वभाव के होते हैं! जो अपनी बात को मनवाने की हर कोशिश करते है। यह स्थिति जातक को अपने संघर्ष के समय आगे बढ़ने में सहायक होती है। साथ ही, ये जातक अपनी मेहनत के बल पर सफलता प्राप्त करते है और उन्हें दूसरों का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है। हालांकि, ऐसे लोग घन के प्रति कुछ महत्वाकांक्षी होते हैं जिससे उनमें छल-कपट की भावना होना स्वाभाविक हो सकता है! और इसके लिए हर संभव प्रयास भी करते हैं।
उनकी सफलता को हासिल करने का जुनून ही उनके लिए शत्रुओं में बढ़ोतरी होने का कारण बनता है। इसके साथ ही ये धन संचय करने में उनकी विशेष रुचि होती है।
- मंगल और शुक्र ग्रह के साथ दुर्धरा योग
किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल-शुक्र से ‘दुरुधरा योग’ बन रहा हो तो ऐसे जातक का life partner बहुत सुन्दर होता है। इन ग्रहों के साथ इस योग में जातक को इच्छाओं में वृद्धि रहती है। इनका अधिक आकर्षण अपने से विपरीत लिंग के लिए होता है। साथ ही, ऐसे जातक अपने कार्य को अधिक श्रेष्ठ और कलात्मक बनाने के प्रयास में लगे रहते हैं। इन जातकों को विवादों में भी रूचि रहती है। हर लड़ाई-झगड़ों के विषयों में बहुत ही उत्साहित होकर सम्मिलित होते हैं।
- मंगल और शनि ग्रह के साथ दुर्धरा योग
मंगल और शनि के प्रभाव से बना ‘दुरुधरा योग’ जातक को आध्यात्मिक दृष्टिकोण देने वाला होता है। स्वभाव से अधिक व्यवहारिक होते है। व्यसनों तत्वों से लिप्त, क्रोध और अनेक शत्रुओं वाला होता है। साथ ही, ऐसे जातक कामी प्रवृत्ति के भी हो सकते हैं! समय पर कार्य न करना या कार्य के प्रति अनिच्छा इन जातकों की आदत होती है। धन का संचय करने में विशेष ध्यान देते है। गलत चीजों के प्रति जल्द ही आकर्षित हो जाते है। व्यसनों तत्वों से लिप्त, क्रोधी और अनेक शत्रुओं वाला होता है।
- बुध और गुरु के साथ दुर्धरा योग
बुध-गुरु ‘दुरुधरा योग’ जातक के लिए शुभता लाने का सूचक होता है। ऐसे जातकों के विचार परिवर्तन होते रहते हैं। साथ ही, वह धार्मिक स्वभाव का और कई शास्त्रों का ज्ञाता भी होता है। जिस प्रकार बुध और गुरु दोनों ही ग्रह बौद्धिक और ज्ञान के विकास से सम्बन्धित होते हैं वैसे ही, इन ग्रहों के प्रभाव से जातक में एक बेहतर वक्ता होने के गुण सहज ही विकसित हो जाते हैं। साथ ही, वें सभी वस्तुओं से सुखी -संपन्न, त्यागी और विख्यात होते हैं।
- बुध और शनि ग्रह के साथ दुर्धरा योग
बुध और शनि के साथ योग से प्रभावित जातक प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी और राजनीति में रुचि रखने वाला होता है। आध्यात्मिक ऊर्जा भी जातक को प्राप्त होती है। इन जातकों में दूसरों से अपने कार्य को निकलवाने की कला और अच्छी योग्यता होती है। साथ ही, ऐसे जातक चतुर और चालबाजियां करने वाले होते हैं! लाभ युक्त योजनाओं पर कार्य करने में उनकी विशेष रूचि होती है।
- बुध और शुक्र ग्रह के साथ दुरुधरा योग
बुध और शुक्र से बनने वाला यह योग जातक को, देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से श्रेष्ठ और पूज्य, और अक्सर जातक स्वजन विरोधी भी होता है। ऐसे जातक की रुचि कला और रचनात्मक चीजों के प्रति अधिक रहती है। इस योग के प्रभाव से जातक अपनी कुशल नीतियों और कार्यशैली से दूसरों को प्रभावित करने में आगे रहते हैं।
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- गुरु और शुक्र ग्रह के साथ दुरुधरा योग
गुरु और शुक्र के साथ यह दुरुधरा योग हो तो ऐसे जातक धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है। साथ ही, अपने देश में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त करते है। इसके साथ ही, ऐसे जातक के योग सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के भी हो सकते हैं। इस दोनों ग्रहों के प्रभाव से जातक अधिक महत्वाकांक्षी स्वभाव का होता है।
- गुरु और शनि के साथ दुरुधरा योग
इन ग्रहों के साथ प्रभाव में बनने वाले योग से जातक के भीतर अद्भुत ज्ञान का संचरण होता है! जिससे वह अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्गदर्शन करने की क्षमता वाले होते हैं। मानसिक रूप से अधिक सोच-विचार करने वाला हो सकता है। साथ ही, ऐसे जातक सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ, पुत्रवान, धनवान और सुन्दर होता है। सामाजिक रूप से भी ये जातक प्रतिभावान और प्रभावशाली होते हैं।
- शुक्र और शनि ग्रह के साथ दुरुधरा योग
कुंडली में शुक्र और शनि के साथ यह योग जातक के लिए उसके जीवन साथी का व्यसन होने की ओर इशारा करता है। साथ ही ऐसे जातक उच्च कुलीन और सभी कार्यो में निपुण होते हैं। अपने से विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षित, धनवान और सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। ग्रहों की यह स्थिति जातक को अंतर्विरोध स्वभाव का बनाती है। साथ ही, जातक बहुत ही शुभता और सौम्य भाव रखने वाला होता है।
ज्योतिष में- दुरुधरा योग का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में, दुर्धरा योग के प्रभाव बताए गए हैं! जो इस प्रकार हैं-
- इस योग के प्रभाव में, जातक को, अपने व्यवसाय और पेशेवर जीवन में समस्याओं से निपटने के लिए साहस और दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदान करता है।
- दुर्धरा योग के प्रभाव से जातक को स्वस्थ और लंबी आयु प्राप्त होती है।
- योग से प्रभावित जातक अपार धन-संपदा को प्राप्त करते हैं।
- इस योग के शुभ प्रभाव से जातक को, हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और अपने कार्यक्षेत्र में लाभ प्राप्त करेंगे।
- ऐसे जातक दिखने में सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व के होते हैं। ये लोग अपनी वाणी के बल पर सभी को सहज अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इन जातकों को समाज में बहुत ख्याति और प्रतिष्ठा मिलती है।
- करियर के क्षेत्र में, इन जातकों को अधिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता।
- योग के शुभ प्रभाव से माता पक्ष से इन जातकों को सुख मिलता है। साथ ही, अपने मायके पक्ष से पैतृक संपत्ति भी मिल सकती है।
- योग के प्रभाव से जातक को कम उम्र में ही बहुत सफलता, नाम, ख्याति और मान-सम्मान प्राप्त कर लेते हैं।
इसके अलावा, ज्योतिष के मुताबिक ‘दुर्धरा योग’ के प्रभाव को अधिक बलि करने के लिए जातक, भगवान शिव या चंद्र मंत्र का जाप कर सकते हैं। साथ ही, धार्मिक पुस्तकें और ग्रंथ का ज्ञान ले सकते हैं, पवित्र स्थानों और तीर्थों की यात्रा कर सकते हैं, और अपनी माँ के लिए सम्मान और आदर का भाव रख सकते हैं।
कुंडली में- दुरुधरा योग के नकारात्मक होने के संयोग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य, राहु और केतु ग्रह जैसे अशुभ ग्रहों के साथ दुर्धरा योग का निर्माण निषेध हो जाता है। इसके अलावा, दुरुधरा योग के शुभ फल तब भी नष्ट हो जाते हैं; जब योग बनाने ग्रह अशुभ अवस्था में हो,या अस्त-वक्री, नीच – शत्रु होकर बैठे हो! तो ऐसे में यह ग्रह चंद्रमा को बल प्रदान नहीं करेंगे और चन्द्रमा के पीड़ित होने पर भी यह योग नष्ट हो जाता है ।
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FAQS
Q. दुरुधरा योग के प्रभाव को मजबूत करने के लिए क्या करना चाहिए?
An. ज्योतिष के मुताबिक दुर्धरा योग के प्रभाव को बलि करने के लिए जातक, भगवान शिव या चंद्र मंत्र का जाप कर सकते हैं। साथ ही, धार्मिक पुस्तकें और ग्रंथ का ज्ञान ले सकते हैं, पवित्र स्थानों और तीर्थों की यात्रा कर सकते हैं, और
अपनी माँ के लिए सम्मान और आदर का भाव रख सकते हैं।
Q. कुंडली में दुर्धरा योग कैसे बनता है?
An. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, किसी भी जातक की जन्म कुंडली में ‘दुर्धरा’ (दुरुधरा योग ) का बनना चंद्रमा की स्थिति के आधार पर निश्चित किया जाता है। जब कुंडली में सूर्य ग्रह के अलावा चन्द्र के दोनों और या दूसरे और बारहवें भाव में कोई ग्रह स्थित हों, तो यह ‘दुरुधरा योग’ का निर्माण करते हैं।
Q. क्या, दुर्धरा योग अलग-अलग ग्रहों के साथ जातक को अलग-अलग प्रभाव देता है?
An. हां, दुरुधरा योग में सूर्य ग्रह को छोड़ कर अन्य सभी ग्रहों के साथ जातक को अलग-अलग प्रभाव देखने को मिलेंगे।
Q. क्या, दुर्धरा योग एक शुभ योग है?
An. हां, वैसे तो यह योग एक शुभ योग है, लेकिन ग्रहों के साथ उनके गुणों के आधार पर यह जातक को प्रभावित करता है।