कुंडली में संतान योग
प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में उसे एक अच्छी और संस्कारी संतान का सुख मिले! कुंडली में संतान योग एक ऐसा योग है जो ग्रहों और उनके गोचर के कारण बनता है। जिसमें कुछ जातकों को तो संतान का सुख समय से मिल जाता है लेकिन कुछ को पूरे जीवन संतान के सुख के लिए इंतजार करना पड़ता है और कुछ लोगों को संतान का सुख मिल तो जाता है लेकिन देर से मिलता है। इन सभी का एक मुख्य कारण कुंडली में बनने वाले संतान योग पर निर्भर करता है कि, जातक की कुंडली में संतान योग है या नहीं या संतान प्राप्ति में कोई परेशानी तो नहीं है! आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम संतान कब, कैसे और किस समय पर हो सकती है इस विषय पर चर्चा करेंगे।
कुंडली में संतान योग का कारक
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली में संतान की प्राप्ति के विशेष कारक होते हैं क्योंकि जातक के पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर ही जातक को, संतान का सुख या दुख मिलता है! इसके साथ ही, जन्मकुंडली के आधार पर भी ज्ञात किया जा सकता है, अतः कुंडली में संतान योग देखने के लिए माता और पिता दोनों की कुंडली को देखा जाता है! संतान के लिए माता-पिता की कुंडली के पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति विशेष रूप से देखी जाती है। यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में हो या पंचम भाव का स्वामी लग्न भाव में हो या फिर पंचम भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति का योग बनता है।
कुंडली में पंचम भाव की भूमिका\महत्व
ज्योतिष शास्त्र में, कुंडली में पंचम भाव जातक की रचनात्मकता, आत्म-अभिव्यक्ति और रोमांटिक संबंधों में अंतर्दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही पंचम यानी पांचवा भाव (घर) प्रेम संबंध, शौक, संतान पक्ष और सट्टा उद्यम जैसे क्षेत्रों को नियंत्रित करता है। कुंडली के पांचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य और कारक ग्रह गुरु है। अतः कुंडली का पांचवा भाव संतान और ज्ञान का भाव होता है। इस भाव के माध्यम से जातक के जीवन के चंचल, हर्ष और खुशियों के पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है! ज्योतिष शास्त्र में, कुंडली के पंचम भाव का विश्लेषण करते समय, ग्रहों की अनुकूल स्थिति और पहलुओं पर विचार किया जाता है, क्योंकि वे इसकी ऊर्जा को बहुत प्रभावित करते हैं। जैसे-कि
पंचम भाव में शुक्र की मजबूत, सामंजस्यपूर्ण और अनुकूल स्थिति जातक को कला के प्रति उसके स्वभाव में एक चुंबकीय आकर्षण और रोमांस की प्रवृत्ति का संकेत देती है। वहीं, दूसरी ओर, मंगल और शनि के बीच एक चुनौतीपूर्ण पहलू, प्रेम सम्बन्ध और रचनात्मक गतिविधियों के मामलों में समस्याओं का संकेत होती है।
इसके अलावा, ज्योतिष के मुताबिक, पंचम भाव प्रजनन क्षमता और संतान पक्ष से भी संबंधित होता है। यदि इस भाव में गुरु बृहस्पति ग्रह विराजमान हो तो, यह बच्चों की प्रबल इच्छा या रचनात्मकता की प्रचुरता का संकेत दे सकता है और इसके विपरीत, यदि शनि एस भाव में हो तो यह गर्भधारण में देरी या समस्याओं का संकेत दे सकता है। साथ ही, कुंडली का पांचवा भाव जातक के जीवन से जुड़ी अवकाश और शौक संबंधी मामलों और मनोरंजक गतिविधियों को भी दर्शाता है। इस भाव में सूर्य ग्रह की स्थिति जातक के आत्म-अभिव्यक्ति के लिए एक गहरी लगन और रचनात्मक प्रयासों में वृद्धि का संकेत होती है। वहीं, पांचवें भाव में चंद्रमा की स्थिति शौक के लिए भावनात्मक संबंध या मजबूत भावनाओं को पैदा करने वाली गतिविधियों की प्राथमिकता का संकेत दे सकती है।

कैसे होती है संतान सुख की प्राप्ति
कुंडली में कैसे होगी जातक को संतान सुख की प्राप्ति? आइए जानते हैं-
इसके अतिरिक्त कुंडली के पंचम भाव में राहु विराजमान हों और उनके साथ कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह हो या देव गुरु बृहस्पति नीच राशि में हों तो जातक को संतान का शोक मिलने की संभावना रहती है।
यदि कुंडली के पंचम भाव का स्वामी यानी पंचमेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो या नीच राशि, शत्रु ग्रह की राशि में स्थित हो, पंचम भाव या पंचम भाव का स्वामी पीड़ित अवस्था में हो तो संतान प्राप्ति होने की संभावना होने पर भी कष्ट पूर्वक संतान प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, यदि नवम भाव का स्वामी लग्न भाव में विराजमान हो लेकिन पंचम भाव का स्वामी नीच राशि में हो और पंचम भाव में केतु या बुध ग्रह विराजमान हो तो भी संतान पर्पटी में समस्या होती है ऐसे जातकों को मंत्र जाप और उचित चिकित्सा द्वारा संतान की प्राप्ति होती है।
साथ ही, यदि कुंडली के पंचम भाव में मिथुन राशि, कन्या राशि, मकर राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में शनि देव विराजमान हों और बृहस्पति की दृष्टि भी पड़ रही हो या वह इनमें विराजमान हों तो ऐसे जातक को दत्तक संतान प्राप्त होने के योग बनते हैं।
यदि कुंडली में लग्न भाव का स्वामी मंगल ग्रह के साथ संबंध या युति में हो और कुंडली के पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो तो यह जातक को प्रथम संतान से संबंधित कष्ट देता है।
संतान योग- अनुकूल ग्रह दशा
जैसा कि हमारे ज्योतिष आचार्यों ने बताया कि, कुंडली में कोई भी घटना होने के लिए ग्रह दशा का विशेष स्थान होता है। ठीक उसी प्रकार कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए भी अनुकूल ग्रह की दशा का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि कुंडली में ग्रहों का स्थान ही अनुकूल न हो तो, यह संतान प्राप्ति में देरी का कारण बनता है। कैसे? आइए जानते हैं-
कुंडली में संतान प्राप्ति कारक ग्रह बृहस्पति की दशा चल रही है या कुंडली के पंचम भाव के स्वामी की दशा चल रही है, या उन ग्रहों की दशा चल रही हो, जो पंचम भाव से संबंध बना रहे हों और वे ग्रह शुभ ग्रह हों तो जातक को संतान प्राप्ति के प्रबल योग बन जाते हैं। इसके विपरीत, यदि किसी ऐसे ग्रह की दशा चल रही है जो पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव दे रहा है या पंचम भाव से संबंधित नहीं है तो ऐसी स्थिति में जातक को संतान प्राप्ति के लिए देरी का सामना करना पड़ता है। यानी हम यह कह सकते हैं कि कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए ग्रह दशा का विशेष महत्व है क्योंकि अनुकूल ग्रह दशा समय पर मिलने से ही जातक को सही समय पर संतान की प्राप्ति हो सकती है और कुंडली में संतान योग फलित होता है।
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संतान योग- गोचर की अनुकूलता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में ग्रहों के गोचर भी संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि जिस प्रकार कुंडली में किसी भी घटना के होने का मुख्य कारण ग्रह होते हैं उसी प्रकार ग्रहों के गोचर का अनुकूल होना भी उतना ही आवश्यक है। जैसे-
- कुंडली में पंचम भाव के स्वामी की दशा चल रही है और वह अनुकूल स्थिति में है तो इससे संतान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं इस समय जातक के जीवन में संतान प्राप्ति के शुभ समाचार आने का अनुकूल समय हो सकता है; लेकिन यदि उसी समय पर अशुभ गोचर की स्थिति बन जाए यह इस शुभ समाचार को परेशानियों में बदल सकता है। यानी, यदि कोई स्त्री अनुकूल दशा में गर्भवती हो गई है और गोचर अनुकूल नहीं है और अशुभ ग्रह से प्रभावित हैं तो गर्भपात का सामना भी करना पड़ सकता है।
- इसके विपरीत, यदि कुंडली में अनुकूल दशा में अनुकूल गोचर की स्थिति हो तो जातक को बहुत ही आसानी से और बिना अधिक कष्ट के एक अच्छी संतान प्राप्त हो जाती है।
- यदि कुंडली में पंचम भाव के ऊपर पंचम मेष का गोचर हो रहा है तो यह जातक के लिए संतान सुख की प्राप्ति का एक अनुकूल समय होता है।
- यदि देव गुरु बृहस्पति अपने गोचर काल में पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाव या लग्न भाव में प्रवेश करें तो इस स्थिति में भी जातक को संतान होने के शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, जब गोचर के दौरान लग्न भाव का स्वामी, पंचम भाव का स्वामी और सप्तम भाव का स्वामी एक साथ ही युति बना रहे हों या एक ही राशि में गोचर करें तो भी संतान सुख प्राप्त होने के प्रबल योग बनते हैं।
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कुंडली में संतान योग के लिए- ज्योतिषीय उपाय
यदि किसी जातक की कुंडली में संतान योग कमजोर है या संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है तो यहाँ हमारे ‘मंगल भवन’ के ‘ज्योतिष आचार्यों’ द्वारा कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं, जिससे संतान प्राप्ति में आ रही समस्याओं को दूर करने में आपको सहायता मिलेगी! ये उपाय इस प्रकार हैं
यदि कुंडली में, मंगल ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो तो, मंगल ग्रह की शांति करना चाहिए और मंगल के बीज मंत्र का जप करें। साथ ही, मंगलवार के दिन लाल फूल, गुड़, शक्कर, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, सिंदूर, लाल चंदन या मसूर की दाल का दान करें।
कुंडली के पंचम भाव के स्वामी सूर्य ग्रह को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। जिससे संतान संबंधित समस्याओं को दूर किया जा सकता है!
कुंडली में पांचवे भाव के कारक ग्रह बृहस्पति की स्थिति को देखकर गुरु से संबंधित उपाय करने चाहिए ताकि देव गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त हो सके और संतान प्राप्ति का शुभ समाचार प्राप्त हो।
इसके अलावा, संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति को अपने शयनकक्ष में बाल कृष्ण की तस्वीर या चित्र लगाने चाहिए, जिससे ताकि ज्यादा से ज्यादा समय आपका ध्यान उन पर रहे और प्रतिदिन उन्हें मक्खन मिश्री का भोग लगाकर स्वयं भी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए। साथ ही, संतान गोपाल मंत्र का निश्चित संख्या में जप करने से संतान प्राप्ति की समस्याओं में लाभ मिलता है।
संतान गोपाल मंत्र ”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः” का संपूर्ण अनुष्ठान करना भी संतान सम्बन्धी समस्याओं के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
पूर्णिमा व्रत रखने से भी ईश्वर कृपा प्राप्त होती है और संतान प्राप्ति की संभावना बनती है।
संतान के मुख्य कारक ग्रह यानी देव गुरु बृहस्पति की स्थिति कुंडली में अच्छी होने से भी संतान सुख की प्राप्ति होती है है अतः गुरु की मजबूत स्थिति और कृपा प्राप्त करने के लिए उनसे संबंधित रत्न धारण करना या उनका मंत्र जाप करना भी संतान प्राप्ति में सहायक होता है; और यदि कुंडली में बृहस्पति अशुभ हैं तो ऐसी स्थिति में गुरु का पूजन शुभ फलदायी है।
संतान प्राप्ति के लिए गुरुवार के दिन किसी मंदिर, विद्यालय या बगीचे में केले के वृक्ष को लगाना चाहिए और नियमित रूप से पूजन करना चाहिए।
पीपल वृक्ष को लगाने से वंश वृद्धि होती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो जातक पीपल के वृक्ष को लगाता है और उसका पोषण करता है, उसके वंश का कभी नाश नहीं होता है।
इसके अलावा, यदि कुंडली में पितृदोष है और यह संतान पक्ष से संबंधित बाधा दे रहा है तो, पितृदोष की शांति और पितृ तर्पण करना आवश्यक होता है! साथ ही, आप गायत्री मंत्र का जाप या प्रतिदिन अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ भी कर सकते हैं।
संतान की कामना करने वाले जातकों के लिए प्रदोष व्रत करना भी लाभदायक होता है। संतान प्राप्ति के उद्देश्य से आप कम से कम 11 प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव का गाय के दूध से रुद्राभिषेक कर सकते हैं।
यदि कुंडली में बुध ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक है तो, जातक को बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप या विष्णु पुराण या विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। साथ ही, बुधवार के दिन कपूर, कांसे का बर्तन, साबुत मूंग, खांड, हरे रंग के वस्त्र और फल का दान करना भी शुभ होता है! संध्या समय तुलसी के पौधे के नीचे दीपक जलाना चाहिए।
यदि कुंडली में, चंद्र ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधक बन रहे हैं तो, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने चाहिए और गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। चंद्रमा के पीड़ित होने से मन और माता का पक्ष प्रभावित होता है। इसको दूर करने के लिए चंद्रमा के बीज मंत्र का जाप करें और चंद्रमा की शांति करना चाहिए। सोमवार का व्रत रखें और सोमवार के दिन सफेद वस्त्र, दूध, दही, चांदी, आदि का दान करें।
FAQS\ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. संतान योग के लिए कुंडली में कौन सा भाव महत्वपूर्ण है?
An. संतान के लिए माता-पिता की कुंडली के पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति विशेष रूप से देखी जाती है। यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में हो या पंचम भाव का स्वामी लग्न भाव में हो या फिर पंचम भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति का योग बनता है।
Q. कुंडली में, संतान योग कैसे बनता है?
An. यदि कुंडली के पंचम भाव का स्वामी यानी पंचमेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो या नीच राशि, शत्रु ग्रह की राशि में स्थित हो, पंचम भाव या पंचम भाव का स्वामी पीड़ित अवस्था में हो तो संतान प्राप्ति होने की संभावना होने पर भी कष्ट पूर्वक संतान प्राप्ति होती है।
Q. संतान के लिए ग्रह दशा कैसे महत्वपूर्ण है?
An. कुंडली में संतान प्राप्ति कारक ग्रह बृहस्पति की दशा चल रही है या कुंडली के पंचम भाव के स्वामी की दशा चल रही है, या उन ग्रहों की दशा चल रही हो, जो पंचम भाव से संबंध बना रहे हों और वे ग्रह शुभ ग्रह हों तो जातक को संतान प्राप्ति के प्रबल योग बन जाते हैं। इसके विपरीत, यदि किसी ऐसे ग्रह की दशा चल रही है जो पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव दे रहा है या पंचम भाव से संबंधित नहीं है तो ऐसी स्थिति में जातक को संतान प्राप्ति के लिए देरी का सामना करना पड़ता है।
Q. क्या, संतान के लिए पंचम भाव महत्वपूर्ण है?
An. कुंडली में पंचम भाव जातक की रचनात्मकता, आत्म-अभिव्यक्ति और रोमांटिक संबंधों में अंतर्दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही पंचम यानी पांचवा भाव (घर) प्रेम संबंध, शौक, संतान पक्ष और सट्टा उद्यम जैसे क्षेत्रों को नियंत्रित करता है। कुंडली के पांचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य और कारक ग्रह गुरु है। अतः कुंडली का पांचवा भाव संतान और ज्ञान का भाव होता है।