Do you have Arishta yoga in Kundli ? कुंडली, में अरिष्ट योग का महत्व और प्रभाव

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वैदिक ज्योतिष में, अरिष्ट योग, को हम एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोजन के रूप में भी देख सकते हैं, जो जन्म कुंडली में सकारात्मक संकेतों को नकार सकते हैं। इसके साथ ही, यह संयोजन कुंडली में, अन्य महत्वपूर्ण कारकों द्वारा सुझाए गए धन संबंधी स्थिति और जातक की खुशियों में भी बाधा डालने के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। साथ ही, कुछ ऐसे भी अरिष्ट योग निर्मित हो जाते हैं जो, जातक के स्वास्थ्य संबंधित और अच्छी आयु के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। कुंडली में इस प्रकार के संयोजन, लग्न, चंद्र, कुंडली के आठवें भाव और उनके स्वामी का अशुभ ग्रहों के साथ मिलने से भी बनते हैं।

आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम कुंडली में ‘अरिष्ट योग’ के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे- आशा करते हैं इस लेख में दी गई जानकारी पाठकों हेतु उपयुक्त हो। अंत में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें- 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों का यह संयोजन जातक के लिए नकारात्मक परिणाम लाता है और इसे दोष भी कहा जाता है। यह दुख, पीड़ा और तनाव का प्रतीक है। यह तब बनता है जब चंद्रमा लग्न से 6वें, 8वें या 12वें भाव में स्थित हो और किसी अशुभ प्रभाव में हो, इससे जातक की दीर्घायु प्रभावित होती है। ऐसे जातकों की याददाश्त शक्ति कमजोर होती है और उन्हें चीजों को याद रखने में परेशानी होती है। साथ ही, इन जातकों को कुछ नकारात्मकता और मानसिक परेशानी बनी रहती है। चंद्रमा मन से जुड़ा ग्रह है, जो इस योग के प्रभाव से प्रभावित होता है। ‘बालारिष्ट’ या ‘अरिष्ट योग’ तब भी बनता है जब चंद्रमा, मंगल, शनि और सूर्य कुंडली में केंद्र भाव में स्थित हों। 

यदि कमजोर चंद्रमा लग्न में हो और चंद्रमा के दोनों ओर कोई पाप ग्रह विराजमान हो तो यह भी अरिष्ट योग का निर्माण करते हैं। यदि कुंडली में चंद्रमा, मंगल, शनि और सूर्य केंद्र भाव में स्थित हों तो अरिष्ट योग के कुछ और अन्य योग बनते हैं। यदि कुंडली में सूर्य, मंगल और शनि एक साथ पांचवें भाव में हों तो यह भी अरिष्ट योग बनाता है। एक और संयोजन तब होता है; जब सूर्य और चंद्रमा कर्क या सिंह राशि में राहु के साथ युति कर रहे होते हैं और साथ ही, लग्न पर मंगल और शनि की दृष्टि भी होती है।

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ज्योतिष में, किसी जातक की जन्म कुंडली के द्वारा उसमें बनने वाले ‘अरिष्ट  योग’ या उसके कारक को जाना जा सकता है। जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति, गोचर और दशा-अन्तर्दशा से अरिष्ट योगों के बारे में जाना जा सकता है। 

 इसी प्रकार जब लग्न का संबंध आठवें से होता है तब भी अरिष्ट योग बनता है! क्योंकि, कुंडली का आठवां भाव एक अशुभ भाव माना जाता है। जिसका संबंध यदि लग्न से हो तो, ऐसे जातक को मानसिक तथा शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।विधियों की ओर झुकाव बढ़ता हैं इन जातकों की रूचि जरूरतमंद लोगों की मदद करने में होती है।

कुंडली में आठवें भाव में अशुभ या पीड़ित ग्रहों के संयोजन से जातक को रोगों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, यह रोग विशेष रूप से दीर्घकालीन रोग होते हैं। 

कुछ अप्रत्यक्ष कारणों से होने वाले रोगों का मुख्य कारण भी कुंडली के छठे भाव में स्थित निर्बल ग्रहों को माना जाता है। इसके अलावा जन्म कुंडली में जो भाव या राशि पाप ग्रह से पीड़ित होते हैं या जिसका स्वामी त्रिक भाव मे हो तो यह उस राशि और संबंधित भाव को प्रभावित कर सकते हैं।

कुंडली में छठा भाव त्रिक भावों में से एक भाव है और त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं माना जाता है! जब लग्न का संबंध इस भाव से होता है तो अरिष्ट योग की संभावना बढ जाती है। जिसके कारण जातक को कई प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ सकता है! या कोई ना कोई बीमारी उसे घेरे रहती है।

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जन्म कुंडली में यदि चंद्रमा अशुभ भावों जसे- दुसरे, छठवें, आठवें, या बारहवें भाव में नीच राशि या शत्रु ग्रह से युति बना रहे हो तो, चंद्रमा के द्वारा जातक को धन, परिवार, माता आदि के संबंध में अशुभ फल मिलते हैं। इस स्थिति में जातक को बुध, शनि, राहु, केतु की महादशा/अंतर्दशा में मध्य अनिष्ट परिणामों से सामना करना पड़ता है! हमारे ज्योतिष आचार्यों ने यहां कुछ आसान से उपाय बताए हैं; जिससे अरिष्ट योग के प्रभाव को शांत किया जा सकता है-

पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चांदी या तांबे के बर्तन में शहद या कोई कोई मीठी वस्तु बनाकर चंद्रमा को अर्पित करने से उनकी तृप्ति होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। 

शुक्ल पक्ष प्रथम सोमवार से आरम्भ कर 16 या 54 सोमवार विधि पूर्वक शिव-पार्वती का पूजन व व्रत कर आखिरी सोमवार छोटी कन्याओं को भोजन कराने से अरिष्ट योग के बुरे प्रभाव में शांति मिलती है।

यदि कुंडली में चंद्रमा, कर्क या वृषभ राशि का हो तो भगवती गौरी का पूजन करना शुभ फलदायी होता है।

स्वास्थ्य और त्रिविध तापों की अरिष्ट शांति के लिए जातकों को सामर्थ्य के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र का जाप, हवन और अमोघ शिव कवच का पाठ करना लाभदायक होता है। 

यदि कुंडली में चंद्रमा केतु के साथ चंद्र और शनि की युति, हो तो विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजन व गणेश सहस्त्रनाम से उपासना करनी चाहिए। 

कुंडली में, यदि चंद्रमा बुध के साथ स्त्री राशि मे हो तो श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ शुभ फलदायी माना जाता है। 

कुंडली, चंद्र यदि संतान पक्ष से संबंधित अरिष्ट फल दे रहा हो तो, शिवजी की जातक शिव जी की आराधना मंत्र जप और हवन करना शुभ होता है। 

Q. ज्योतिष में ‘अरिष्ट योग’ का क्या महत्व है?

An. वैदिक ज्योतिष में, अरिष्ट योग, को हम एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोजन के रूप में भी देख सकते हैं, जो जन्म कुंडली में सकारात्मक संकेतों को नकार सकते हैं। इसके साथ ही, यह संयोजन कुंडली में, अन्य महत्वपूर्ण कारकों द्वारा सुझाए गए धन संबंधी स्थिति और जातक की खुशियों में भी बाधा डालने के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। 

Q. क्या, अरिष्ट योग जातक को शुभ फलदायी होता है?

An. हां, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहों का यह संयोजन जातक के लिए नकारात्मक परिणाम लाता है और इसे दोष भी कहा जाता है। यह दुख, पीड़ा और तनाव का प्रतीक है। यह तब बनता है जब चंद्रमा लग्न से 6वें, 8वें या 12वें भाव में स्थित हो और किसी अशुभ प्रभाव में हो, इससे जातक की दीर्घायु प्रभावित होती है।

Q. कुंडली में अरिष्ट योग कैसे बनता है?

An. यदि कमजोर चंद्रमा लग्न में हो और चंद्रमा के दोनों ओर कोई पाप ग्रह विराजमान हो तो यह भी अरिष्ट योग का निर्माण करते हैं। यदि कुंडली में चंद्रमा, मंगल, शनि और सूर्य केंद्र भाव में स्थित हों तो अरिष्ट योग के कुछ और अन्य योग बनते हैं। यदि कुंडली में सूर्य, मंगल और शनि एक साथ पांचवें भाव में हों तो यह भी अरिष्ट योग बनाता है।

Q. ज्योतिष में, अरिष्ट योग के लिए क्या उपाय बताए गए हैं?

An. हमारे ज्योतिष आचार्यों ने यहां कुछ आसान से उपाय बताए हैं; जिससे अरिष्ट योग के प्रभाव को शांत किया जा सकता है-

स्वास्थ्य और त्रिविध तापों की अरिष्ट शांति के लिए जातकों को सामर्थ्य के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र का जाप, हवन और अमोघ शिव कवच का पाठ करना लाभदायक होता है।

शुक्ल पक्ष प्रथम सोमवार से आरम्भ कर 16 या 54 सोमवार विधि पूर्वक शिव-पार्वती का पूजन व व्रत कर आखिरी सोमवार छोटी कन्याओं को भोजन कराने से अरिष्ट योग के बुरे प्रभाव में शांति मिलती है।

यदि कुंडली में चंद्रमा, कर्क या वृषभ राशि का हो तो भगवती गौरी का पूजन करना शुभ फलदायी होता है।

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