जाने, ऐसे संतों के बारे में जिन्होंने की ज्ञान धर्म और अध्यात्म की स्थापना! शंकराचार्य और रामानुजन जन्मोत्सव की सही तिथियां

Shankaracharya_RamanujanAchharya

शंकराचार्य जयंती और रामानुजन जयंती

शंकराचार्य जयंती आदि शंकराचार्य के जन्म के अवसर के रूप में मनाई जाती है! जिन्हें अद्वैत वेदांत के महान दार्शनिक और संत की उपाधि दी जाती है! ये एक ऐसे महान संत थे जिन्होंने, भारतवर्ष में वैदिक ज्ञान का प्रचार किया और चार मठों की स्थापना की थी। इसलिए उनके सम्मान के लिए इस दिन ज्ञान, भक्ति और भारतीय संस्कृति की गरिमा का स्मरण बड़े ही मनोहर तरीके से जयंती के रूप में किया जाता है!

वहीं हम एक और महान संत के बारे में भी चर्चा करेंगे, जिन्हें रामानुजन आचार्य की उपाधि दी गई है! यानी आदि शंकराचार्य के साथ रामानुजन भी हिन्दू धर्म की द्स्थापना में, एक बहुत ही बड़े सहायक थे। इन गुरुओं ने कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सिद्धांत दिये, जिनका अनुसरण वर्तमान में आज भी उनके संबंधित संप्रदाय के जातकों द्वारा द्वारा बड़े ही लोकप्रीय रूप से किया जाता है! इन महान गुरुओं को हिंदुत्व के आधुनिक इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण सांय और गुरु का दर्जा प्राप्त है! तो आइए आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम शंकराचार्य और रामानुज गुरु के बारे और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे, हमारे साथ लेख में बने रहिए!

शंकराचार्य जयंती 2025

हम सभी जानते हैं, हमारे भारत की संस्कृति, पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है! ऐसा इसलिए, क्योंकि देवों से लेकर अनगिनत महान संतों और आचार्यों की जन्मस्थान भारत देश ही रहा है। इन्हीं महान संतों में दो एक प्रमुख नाम आते हैं ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य का’ और रामानुज आचार्य का । तो सबसे पहले हम शंकराचार्य जयंती और रामानुजन जयंती की सही तिथियों के बारे में जान लेते हैं-

शंकराचार्य जयंती 2025- कब है?

हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है! आदि शंकराचार्य जी एक बहुत ही महान भारतीय गुरु तथा दार्शनिक थे! उनके जन्मदिन को ही आदि शंकराचार्य की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इनका जन्म 788 ई.पू. केरल स्थित कलाड़ी नामक स्थान पर हुआ था। वर्ष 820 ई.पू. में मात्र 32 वर्ष की आयु में ही वह अंतर्धान हो गये। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांत को प्रमाणित कर उनकी स्थापना की और उस समय हिन्दू संस्कृति को एक बार फिर से जागरूक किया! यानी जिस समय हिन्दू संस्कृति अपने पूर्ण पतन की ओर जाने वाली थी तब शंकराचार्य जी ने वेदांत और मैथ की स्थापना की थी!

साल 2025 में, शंकराचार्य जयंती  2 मई 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी! जिसमें कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ इस प्रकार है- 

  • पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – 01, मई 2025 11 बजकर 23 मिनट AM से 
  • पञ्चमी तिथि समाप्त – 02, मई 2025 को 09 बजकर 14 मिनट AM तक

रामानुजन जयंती 2025

वहीं हम एक और महान संत के बारे में बात करें तो, रामानुजन आचार्य भी एक महान संत की श्रेणी में आते हैं! इनका दर्शन शास्त्र में अपनी एक अलग ही भूमिका है! रामानुजाचार्य जी ने अपनी ज्ञान एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार देश भर किया था! वैष्णव संत होने के साथ-साथ भक्ति की परंपरा और संचार में भी इनकी बहुत ही प्रभावी भूमिका रही! साल 2025 में, रामानुजाचार्य जयंती 02 मई 2025 को शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी!

आगे लेख में हम जानेंगे, शंकराचार्य और रामानुज के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में-

Year 2025, Rahu transit | Remember this important date, is there any effect of transit in your zodiac sign?

आदि शंकराचार्य गुरु- कौन थे?

पौराणिक मान्यता है कि, आदि शंकराचार्य भगवान शिव थे। क्योंकि, उन्होंने मात्र 2 वर्ष की आयु में समस्त वेद, उपनिषद, रामायण और महाभारत को कंठस्थ याद कर लिया था! इसके बाद 7 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास ले लिया था! शंकराचार्य जी का जन्म, केरल राज्य के कालड़ी गांव में एक ब्राह्मण दंपत्ति शिवगुरु नाम पुद्रि और विशिष्‍टा देवी के घर हुआ था! उनके जन्म से ही, उनके माता-पिता को ज्ञात हो गया था की, वे दूसरों से भिन्न गुणों से युक्त हैं! उनके बचपन में ही, उनके पिता का देहांत हो गया था! इसके बाद उन्होंने अपना कार्य उत्तर भारत में संपन्न किया! शंकराचार्य ने सन्यास ग्रहण करने के बाद भी अपनी मां की मृत्यु के पश्चात् उनकी अंत्येष्टि क्रिया की।

शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए थे चार मठ और अद्वैत वेदांत

गुरु शंकराचार्य को भारत के एक महान गुरु और दार्शनिक होने की उपाधि प्राप्त है!  क्योंकि, उनके द्वारा ही, अद्वैत वेदांत के दर्शन का विस्तार किया। यानी, उन्होंने उपनिषदों, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों, धर्म ग्रंथों सहित हिंदू धर्म के उत्थान के लिए भारतवर्ष के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना भी की! जो आज भी हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और  प्रामाणिक संस्थान माना जाता है। इनके नाम, ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ, वेदान्त ज्ञानमठ अथवा श्रृंगेरी पीठ, शारदा मठ, द्वारका, गोवर्धन मठ जगन्नाथ धाम के रूप से प्रसिद्ध हैं!

आदि गुरु शंकराचार्य और उनकी माता का अटूट प्रेम

कहा जाता है की, शंकराचार्य को प्राथमिक शिक्षा उनकी मां से मिली थी थी! और इतना ही नहीं, बल्कि जगद्गुरु बनने की राह भी उनको उनकी मां ने ही दिखाई ! मात्र बारह वर्ष की आयु में वे शास्त्रों का पूर्ण रूप से ज्ञान हो गया था! सोलह वर्ष की उम्र में वे ब्रह्मसूत्र भाष्य सहित सौ से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे, साथ ही इतनी कम आयु में ही उनके कई शिष्य बन चुके थे, जिन्हें वो शिक्षा देने का कार्य करते थे! इसी कारण से उन्हें आदि गुरु शंकराचार्य का नाम दिया गया!

इसके अलावा, यह भी खा जाता है कि, शंकराचार्य का अपनी माता के प्रति इतना गहरा प्रेम और लगाव था कि उनके इस प्रेम को देखकर एक नदी ने भी अपने प्रवाह की दिशा बदल दी थी। क्योंकि, वैराग्य धारण करते समय गुरु शंकराचार्य ने अपनी माता को वचन दिया था कि वो उनके अंतिम समय में उनके साथ ही रहेंगे और उन्होंने ऐसा किया भी! जब उनकी मां का अंतिम समय आया, तो उन्हे इस बात का आभास हो गया, और वे अपने गांव गए। शंकराचार्य को देखने के बाद ही उनकी मां ने अपने प्राण त्यागे।

जब शंकराचार्य अपनी माता को दिए गए वचन अनुसार, उनका अंतिम संस्कार करने लगे, तो संन्यासी होने के कारण सब ने उनका विरोध किया! लेकिन, लोगों के विरोध करने के बाद भी बिना किसी के सहयोग के शंकराचार्य ने अपने हाथो अपनी माता का अंतिम संस्कार किया! यानी, शंकराचार्य ने अपने घर के सामने ही माता की चिता सजा कर उनका अंतिम संस्कार किया। ईएसआई वृतांत के बाद से ही केरल के कालड़ी में घर के सामने मृत परिजन की चिता जलाने की परंपरा का आरंभ हुआ!

रामानुजाचार्य का जन्म जन्म और जीवन का मुख्य वृतांत 

प्राचीन समय के अनुसार, रामानुजाचार्य का समय 1017-1137 ई. तक का माना जाता है! इनका जन्म दक्षिण भारत के तिरुकुदूर क्षेत्र में हुआ था! शंकराचार्य के समान ही, रामानुजाचार्य जी का नाम भी शिक्षा और ग्रंथों के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है! श्री रामानुजाचार्य कांचीपुरम में रहते थे और यमुनाचार्य जी श्री रंगम के मठाधीश प्रसिद्ध शिष्य थे! कहा जाता है कि जब श्री यामुनाचार्य जी को अपनी मृत्यु का आभास हुआ तो उन्होंने अपने शिष्यों द्वारा श्री रामानुजाचार्य को पहले अपने पास बुलाया! किंतु रामानुजाचार्य के यमुना जी से मिलने के पहले ही यामुनाचार्य जी की मृत्यु हो गई थी!

रामानुज जी ने जब यामुनाचार्य जी के पार्थिव शरीर को देखा तो उन्होंने देखा कि, उनके हाथ की तीन उंगलियां मुड़ी हुई है!

जब सभी लोगों को इस बात का पता चला तो, उन्होंने इस रहस्य को जानने की कोशिश की! रामानुजाचार्य जी ने इस रहस्य का भेद बताते हुए कहा कि – श्री यामुनाचार्य कहना चाहते हैं कि “मै अज्ञात जनों को जो भोग विलास में हैं जीवन के सही अर्थ को नहीं समझ पाए हैं, उन लोगों को नारायण के चरण कमलों में लगाकर बिना किसी भेदभाव के उनकी रक्षा करता रहूंगा! उनके इतना कहते ही यामुनाचार्य जी की एक अंगुली खुल कर सीधी हो जाती है!

दूसरे वचन में रामानुज ने कहा कि, “मैं लोगों की रक्षा और उनके ज्ञान को बेहतर करने के लिए परम तत्वज्ञान से युक्त श्री भाष्य की रचना करुंगा! इस कथन के साथ ही यामुनाचार्य जी की दूसरी उंगली भी खुलकर सीधी हो जाती है और अपने अंतिम तीसरे कथन में रामानुजाचार्य जी ने कहा कि, पराशर मुनि जिस प्रकार लोगों के कल्याण हेतु और उनकी उन्नति का मार्ग बताते हुए विष्णु पुराण की रचना करते हैं! उनके ऋण को चुकाते हुए मैं यामुनाचार्य किसी योग्य शिष्य को उनका नाम दूंगा! रामानुज आचार्य जी के यह कहते ही यामुनाचार्य की तीसरी उंगली भी खुल कर सीधी हो जाती है! सभी शिष्य और वहां उपस्थित सभी लोगों द्वारा इस बात को समझ कर बिना किसी संदेह और विवाद के सभी ने अपनी सहमति के साथ श्री रामानुजन को ही अगले आलवन्दार का आसन प्रदान किया!

रामानुजाचार्य और उनका विशिष्टाद्वैतवाद

विशिष्टाद्वैत का अर्थ विशिष्ट अद्वैत के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है! कहा जाता है कि, आचार्य रामानुज का “विशिष्टाद्वैत दर्शन” का सिद्धांत पुरानी मान्यताओं को दर्शाता था! क्योंकि, यह सिद्धांत, प्राचीन काल से चले आ रहे दर्शन के अलग-अलग मतों में से एक था! इसके अलावा, यह रामानुजाचार्य द्वारा चलाए गए प्रभावशाली विचारों में से एक रहा!

इतना ही नहीं, इस सिद्धांत के द्वारा ही, बताया गया कि सृष्टि और जीवात्मा दोनों ब्रह्म से भिन्न हैं! लेकिन वह उसी ब्रह्म से ही उद्भूत उत्पन्न हैं, यानी, यह संबंध बहुत घनिष्ट है! इस संबंध को समझने के लिए हम आपको सरल भाषा में यह बता सकते हैं, जैसे शरीर में प्राण का होना और सूर्य के साथ किरणों का होना, यानी, ब्रह्म एक होने पर भी अनेक है! रामानुजन जी ने कई वेदों का चिंतन किया और उसके अनुसार, उपनिषदों और वेदांत सूत्रों के ब्रह्म से एकात्मता को अपनी पद्धति का आधार बनाया! ईश्वर के रूप में ब्रह्म में जीव पूरी पूर्णता के साथ संबंधित है, इन्हीं बातों पर रामानुज ने अपना विचार और विस्तार दोनों ही प्रकट किए!

आचार्य रामानुज और शंकराचार्य के मत का अंतर क्या था?

आचार्य रामानुज के सिद्धांत, जो उन्होंने सभी को दिए, शंकराचार्य द्वारा दिए गए माया वाद के सिद्धांत का विरोध किया है! क्योंकि, शंकराचार्य ने सृष्टि जिसे हम सभी जगत या संसार कहते हैं उसको माया का स्वरूप कहा है, और इसे मिथ्या यानी भ्रम का स्थान बताया है! और रामानुज इस से अलग अपने कथन में कहते हैं कि, यह संसार ब्रह्म ने ही बनाया है और यह मिथ्या अर्थात भ्रम माया कैसे हो सकता है! इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, दोनों ही गुरुओं का मत थोडा भिन्न था लेकिन दोनों ने ही ज्ञान और धर्म का संचार किया है!

FAQS\अक्सर पूछे जाने प्रश्न

Q. साल 2025 में, शंकराचार्य जयंती कब मनाई जाएगी!

An. हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है! इस वर्ष शंकराचार्य जयंती 2 मई 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी!

Q. गुरु शंकराचार्य जी कौन थे और क्यों प्रसिद्ध हुए?

An. पौराणिक मान्यता है कि, आदि शंकराचार्य भगवान शिव थे। क्योंकि, उन्होंने मात्र 2 वर्ष की आयु में समस्त वेद, उपनिषद, रामायण और महाभारत को कंठस्थ याद कर लिया था! शंकराचार्य ने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांत को प्रमाणित कर उनकी स्थापना की और उस समय हिन्दू संस्कृति को एक बार फिर से जागरूक किया! यानी जिस समय हिन्दू संस्कृति अपने पूर्ण पतन की ओर जाने वाली थी तब शंकराचार्य जी ने वेदांत और मैथ की स्थापना की थी!

Q. साल 2025 में, रामानुजन जयंती कब आने वाली है?

An. साल 2025 में, रामानुजाचार्य जयंती 02 मई 2025 को शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी!

Q. आचार्य रामानुजन कौन थे?

An. रामानुजन आचार्य भी एक महान संत की श्रेणी में आते हैं! इनका दर्शन शास्त्र में अपनी एक अलग ही भूमिका है! रामानुजाचार्य जी ने अपनी ज्ञान एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार देश भर किया था! वैष्णव संत होने के साथ-साथ भक्ति की परंपरा और संचार में भी इनकी बहुत ही प्रभावी भूमिका रही!

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