Fifth House of Horoscope |कुंडली में पंचम भाव के अद्भुत तथ्य, आत्म विश्लेषण के गुण के साथ विभिन्न राशियों में प्रभाव

fifth house of horoscope

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली का पांचवा भाव संतान और ज्ञान का भाव कहलाता है। इसके साथ ही, यह भाव बात को ग्रहण करने की मानसिक स्थिति को भी दर्शाता है!  यानी जातक किस प्रकार किसी विषय के बारे में जानने की रुचि रखते हैं। इसके अलावा पंचम भाव जातक के गुणात्मक गतिशीलता का भी प्रतिनिधित्व करता है। आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम कुंडली में पंचम भाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे- तो, आइए जानते हैं हमारे ज्योतिष आचार्यों की दृष्टि से कुंडली के पंचम भाव के बारे में- 

ज्योतिष आचार्यों के अनुसार, कुंडली में जातक के गुण और शासन करने, की बुद्धि, संतान, पुत्र, पेट, वैदिक ज्ञान, पारंपरिक कानून और पिछले जन्म में किये गये पुण्य कर्म कुंडली में पंचम भाव से ही ज्ञात किए जाते हैं- इतना ही नहीं, बुद्धिमता, लगाव, आत्मसम्मान, प्रसिद्ध, संचित कर्म और पद का बोध भी पंचम भाव से ही ज्ञात किया जाता है- 

ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से- पंचम भाव का महत्व 

ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से, समझे तो, कुंडली के इस भाव से, मंत्रों का उच्चारण या धार्मिक भजन, आध्यात्मिक गतिविधियां, बुद्धिमता और साहित्यिक रचनाएँ आदि क्षेत्र प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही, कुंडली का पंचम भाव प्रथम संतान की उत्पत्ति, खुशियां, समाज और सामाजिक झुकाव का प्रतिनिधित्व भी करता है। इसी कारण इस भाव को एक अद्भुत और रहस्यमयी भाव की संज्ञा भी दी जाती है

इसके अलावा , यह भाव स्वाद और प्रशंसा, कलात्मक गुण, नाट्य प्रस्तुतीकरण, मनोरंजन, हॉल और पार्टी,  रोमांस, प्यार, प्रेम प्रसंग, सिनेमा, मनोरंजन का स्थान, रंगमंच आदि को भी यानी कुंडली के इस भाव के अंतर्गत सभी प्रकार की भौतिक सुखों की वस्तुओं जैसे- खेल, ओपेरा, ड्रामा, संगीत, नृत्य और मनोरंजन इत्यादि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस भाव के बारे, में यह भी मत है कि, पंचम भाव कुंडली में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाव होता है! जो कि, उच्च नैतिक मूल्य, आर्ट, विवेक,  पुण्य कर्म और पाप के बीच भेदभाव, प्रार्थना, वैदिक मंत्र, धार्मिक प्रवृत्ति, गहरी सोच, गहन शिक्षा और ज्ञान, विरासत में मिला उच्च पद, साहित्यिक रचना, त्यौहार, संतुष्टि और पैतृक संपत्ति को दर्शाता है।

इसके साथ ही, जातक के द्वारा पूर्व जन्म में किये जाने वाले अच्छे पुण्य कर्मों का ज्ञान भी इस पंचम भाव के आधार पर ज्ञात किया जाता है। इस भाव में, यह भाव प्राणायाम, आध्यात्मिक कार्य, मंत्र-यंत्र, इष्ट देवता, शिष्य और धार्मिक कार्यक्रमों के लिए आमंत्रण के बारे जानकारी मिलती है। यह भाव मानसिक चेतना से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति को प्रकट करता है। काल पुरुष कुंडली में पंचम भाव पर सिंह राशि का नियंत्रण रहता है और इसका स्वामी सूर्य है।

लाल किताब के अनुसार पंचम भाव का महत्व

ज्योतिष में, लाल किताब के अनुसार, कुंडली का पंचम भाव संतान, पुत्र, ज्ञान, यंत्र-मंत्र-तंत्र, स्कूल और प्रारंभिक शिक्षा को दर्शाता है। इसके साथ ही, लाल किताब में, बृहस्पति को भूमि का स्वामी और सूर्य को भावों के स्वामी की संज्ञा दी जाती है। दसवें भाव में, स्वामी शनि ग्रह है। इसके अलावा, दशम भाव में स्थित ग्रह पंचम में बैठे हुए ग्रहों के प्रभाव पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ज्योतिष के अनुसार, पंचम भाव की नवम भाव पर दृष्टि होने से यह भाव सक्रिय रहता है। साथ ही, यदि एकादश भाव में कोई भी ग्रह की उपस्थिति न हो तो, कुंडली का पंचम भाव निष्क्रिय या तटस्थ रहता है। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की, कुंडली में पंचम भाव एक महत्वपूर्ण भाव है, जिससे जातक के भूत और भविष्य का निर्धारण किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यदि हम हमारे इस जन्म में अच्छे कर्म करते हैं तो; इसका फल हमें निश्चित रूप से अगले जन्म में मिलता है।

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कुंडली के बारह भावों में पंचम भाव का विशेष महत्व होता है! तो आइए जानते हैं पंचम भाव की कुछ विशेषताओं के बारे में जो इस प्रकार है- 

इसके साथ ही, पंचम भाव बुद्धिमता, संवेदनशीलता व स्थिरता, सांप्रदायिक सौहार्द, लोगों में सट्टेबाजी की प्रवृत्ति, निवेश, स्टॉक एक्सचेंज, बच्चे, आबादी, विश्वविद्यालय, लोगों के नैतिक मूल्य आदि बातों को भी दर्शाता है।

इस भाव में, मुख्य रूप से उच्च शिक्षा, फैलोशिप, पोस्ट ग्रेजुएशन, लेखन, पढ़ना, वाद-विवाद, रिसर्च, मानसिक खोज और कौशल के बारे में जानकारी मिलती है। 

इसके अलावा, यह भाव सट्टेबाजी में होने वाले लाभ, शेयर बाजार, जुआ, मैच फिक्सिंग और लॉटरी से संबंधित मामलों की भी जानकारी देता है।

पंचम भाव बुद्धिमता, पुत्र, धर्म, शासक या राजा को दर्शाता है। ज्योतिष के द्वारा कुंडली के, तीर्थ स्थान की यात्रा को दूसरे भाव, पंचम भाव (पांचवें भाव) सातवें भाव और ग्यारहवें भाव से देखा जाता है।

कुंडली में, पंचम भाव को हम प्रेम-प्रसंग से सम्बन्धित मामलों से भी जोड़ सकते हैं, यानी जातक अपने प्रेम सम्बन्ध में कितना सफल होगा यह भी जानकारी मिलती है। यानी इस भाव से दो लोगों के बीच शारीरिक संबंध और व्यक्तित्व के आकर्षण के बारे भी जान सकते हैं। 

पंचम भाव पेट की चर्बी और हृदय का भी प्रतिनिधित्व करता है! साथ ही, यह दायें गाल, हृदय का दायां भाग या दायें घुटने को भी दर्शाता है।

कुंडली के अन्य भावों(घर) से संबंध- पंचम भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली का पंचम भाव अन्य भावों के साथ अंतर्संबंध में हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि पंचम भाव संतान, कला, मीडिया, सृजनात्मकता, रंगमंच प्रस्तुति, सिनेमा, मनोरंजन साधन, रोमांस और अस्थाई आश्रय या निवास से जुड़ा रहता है। कुंडली में पंचम भाव का स्थान चतुर्थ भाव से द्वितीय स्थान पर होता है! और तृतीय भाव अहंकार, अपरिपक्व व्यवहार और सोचने-समझने की शक्ति और ज्ञान से संबंधित तथ्यों के बारे में बताता है! लेकिन वास्तव में, इसका निर्धारण कुंडली में पंचम भाव से किया जाता है।

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इसके अलावा, पंचम भाव उन तथ्यों को भी दर्शाता है, जो आपको जीवन में कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करता है। कुंडली का चतुर्थ भाव जातक की प्रारम्भिक शिक्षा का कारक होता है, जिससे जातक की प्राथमिक शिक्षा और रहने का निवास का ज्ञान मिलता है। बल्कि, पंचम भाव गणित, विज्ञान, कला आदि से संबंधित होता है। यानी हमें यह आसानी से ज्ञात हो सकता है कि, हम किस विषय में महारत प्राप्त करेंगे। इसके अलावा, यह भाव शेयर बाजार, सट्टे से लाभ, सिनेमा, अचानक होने वाला धन लाभ और हानि के बारे में भी जानकारी देता है।

जहां, पंचम भाव जातक के राजनीति, मंत्री, मातृ भूमि से लाभ की प्राप्ति, स्थाई-अस्थाई संपत्ति को दर्शाता है! तो जातक के पर धन की कितनी अच्छी व्यवस्था होगी यह कुंडली का चतुर्थ भाव दर्शाता है। लेकिन, जातक के पारिवारिक धन-संपदा की स्थिति को पंचम भाव के माध्यम से जाना जाता है। यदि, हम जातक के पारिवारिक पक्ष को समझे तो, पंचम भाव बुद्धिमता, अहंकार और बड़े भाई-बहनों की संवाद क्षमता से संबंध को दर्शाता है। साथ ही, माता का धन और उन्हें होने वाले लाभ, खर्च, जीवनसाथी और भाई-बहनों की इच्छा व उन्हें प्राप्त होने वाले लाभ का बोध भी पंचम भाव से होता है। 

अवश्य पढ़ें: कुंडली के बारह भावों में मंगल-केतु की युति, होगा ऊर्जा का संचार व आक्रामक स्वभाव

ज्योतिष शास्त्र की पुस्तकों में पंचम भाव कर्म या नौकरी का अंत और शुरुआत को दर्शाता है। इसका मतलब है कि आप नौकरी खो देंगे और आपको नई नौकरी मिलेगी या जॉब के लिए नए अवसर मिलेंगे। पंचम भाव बॉस की गुप्त संपत्तियां, इच्छाओं का अंत, बड़े भाई-बहनों के जीवनसाथी, दादी की सेहत, मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति की राह में आने वाली कठिनाइयों को दर्शाता है।

FAQ

Q. कुंडली का पंचम भाव क्यों महत्वपूर्ण है?

An. जन्म कुंडली का पांचवा भाव संतान और ज्ञान का भाव कहलाता है। इसके साथ ही, यह भाव बात को ग्रहण करने की मानसिक स्थिति को भी दर्शाता है!  यानी जातक किस प्रकार किसी विषय के बारे में जानने की रुचि रखते हैं। 

Q. क्या, कुंडली का पंचम भाव अशुभ स्थान होता है?

An. नहीं, कुंडली का पंचम भाव बहुत ही, महत्वपूर्ण भाव होता है! यह अशुभ स्थान नहीं होता है, इस भाव में, मुख्य रूप से उच्च शिक्षा, फैलोशिप, पोस्ट ग्रेजुएशन, लेखन, पढ़ना, वाद-विवाद, रिसर्च, मानसिक खोज और कौशल के बारे में जानकारी मिलती है। 

Q. पांचवे भाव का कुंडली के अन्य भावों से क्या संबंध होता है?

An. पंचम भाव बुद्धिमता, पुत्र, धर्म, शासक या राजा को दर्शाता है। ज्योतिष के द्वारा कुंडली के, तीर्थ स्थान की यात्रा को दूसरे भाव, पंचम भाव (पांचवें भाव) सातवें भाव और ग्यारहवें भाव से देखा जाता है।

Q. कुंडली का पांचवां भाव जातक की कौन सी गतिविधियों से संबंधित होता है?

An. ज्योतिष आचार्यों के अनुसार, कुंडली में जातक के गुण और शासन करने, की बुद्धि, संतान, पुत्र, पेट, वैदिक ज्ञान, पारंपरिक कानून और पिछले जन्म में किये गये पुण्य कर्म कुंडली में पंचम भाव से ही ज्ञात किए जाते हैं- इतना ही नहीं, बुद्धिमता, लगाव, आत्मसम्मान, प्रसिद्ध, संचित कर्म और पद का बोध भी पंचम भाव से ही ज्ञात किया जाता है।

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