राशि और नक्षत्र
खगोलशास्त्र में तारा मंडलों के समूह को राशि चक्र की संज्ञा दी जाती है। जिसे बारह भागों में बाँटा गया है! इन भागों को हम सभी राशि के रूप में जानते हैं। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक राशि को एक चिह्न के साथ जोड़ा गया है। जो इस प्रकार हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन।
अब हम बात करते हैं, नक्षत्रों की तो, हिन्दू संस्कृति में नाम का पहला अक्षर जन्म के समय राशि या नक्षत्र के अनुसार किया जाता है। इसलिए, अक्सर कुछ लोगों के नाम सीधे राशि से सम्बन्धित होते हैं। ऐसे ही यदि किसी जातक का जन्म नाम, राशि और नक्षत्र से नहीं लिया गया है, तो वे अपने नाम के आधार पर राशि और नक्षत्र की जानकारी पता कर सकते हैं। तो, आइए हम आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में नाम के आधार पर राशि और नक्षत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, और आशा करते हैं लेख में दी गई जानकारी आप सभी के लिए उपयुक्त हो-
ज्योतिष में- चन्द्र राशि
ज्योतिष शास्त्र में, चन्द्र राशि को ही मुख्य राशि माना जाता है। यानी किसी बच्चे के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है, वही राशि चन्द्र राशि या जन्म राशि कहलाती है। ज्योतिष में सूर्य राशि से अधिक चन्द्र राशि को महत्व दिया गया है। अतः ज्योतिषाचार्य भी, राशिफल की गणना करते समय चन्द्र राशि को ही आधार मानते हैं।
अब आगे बात करते हैं- आप में से कई लोगों ने दूसरों से सुना होगा कि, उनके सितारे काम नहीं कर रहें या ग्रह-नक्षत्र अच्छे नहीं चल रहे हैं….वे ऐसा क्यों बोलते हैं, आइए जानते हैं- इसका अर्थ है की, उस जातक के जीवन में समस्या या संघर्ष चल रहा है! यानी ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में जातक के जीवन में चल रही समस्याओं का कारण कुंडली में ग्रह और नक्षत्र ही होते हैं। जी हां, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, तारे और ग्रहों की चाल का असर अप्रत्यक्ष रूप से जातक की जीवन शैली, व्यवहार और व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। क्या होते हैं ये नक्षत्र? आकाश मंडल में स्थित कुछ मुख्य तारों के समूह को ‘नक्षत्र (Nakshatra)’ की संज्ञा दी जाती है। जिसमें एक नक्षत्र का मान 13.20 अंश का होता है।
ज्योतिष में- नक्षत्रों का महत्व
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सितारों को नक्षत्र कहा जाता है। जिसका संस्कृत में, शाब्दिक अर्थ ‘नक्ष’ यानी आकाश और ‘क्षत्र’ यानी क्षेत्र से है। इसके साथ ही, राशि चक्र में कुल 12 राशियां होती हैं और 27 नक्षत्र होते हैं। यानी ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक राशि में 3 नक्षत्र आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह धारणा है कि, इन 27 नक्षत्रों के नाम दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के नाम पर रखे गए हैं जिनका विवाह राजा दक्ष ने चंद्रदेव के साथ कराया। इसलिए चंद्रमा इन 27 नक्षत्रों में गोचर करते हैं, और तब ही चन्द्रमा लगभग 27.3 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर पाता है।
ज्योतिष शास्त्र में, हमारे ‘मंगल भवन’ के आचार्यों का ने बताया कि, बच्चे के जन्म के समय उसका नाम अक्षर और उसकी राशि तय की जाती है। इसके साथ ही, प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वामी भी होता है, जो जातक के जीवन को प्रभावित करता है। नक्षत्रों को मुख्य रूप से देवगण, नर गण और राक्षस गण तीन भाग होते हैं। हिंदू धर्म में कोई शुभ कार्य या विवाह आदि तय करते समय शुभ तिथि के साथ शुभ नक्षत्र भी देखा जाता है। साथ ही, यह नक्षत्र जातक के शारीरिक अंगों को परिभाषित करने के साथ-साथ भविष्य में होने वाली बीमारियों के बारे में बताते हैं। इन 27 नक्षत्रों को तीन भागों में बांटा गया है- शुभ नक्षत्र, मध्यम नक्षत्र और अशुभ नक्षत्र।
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हमारे ‘मंगल भवन’ ज्योतिष आचार्यों ने यहां कुछ चरण बताए हैं जिसके आधार पर आप नाम के पहले अक्षर से अपनी राशि और नक्षत्र का पता कर सकते हैं! जो इस प्रकार हैं-
- मेष राशि
- अश्विनी नक्षत्र- चू, चे, चो, ला
- भरणी नक्षत्र- ला, ली, लू, ले, लो
- कृतिका नक्षत्र- आ
- वृषभ राशि
- कृतिका नक्षत्र- ई, ऊ, ए
- रोहिणी नक्षत्र- ओ, वा, वी, वू
- मृगशिरा नक्षत्र- वे, वो
- मिथुन राशि
- मृगशिरा नक्षत्र- का, की
- आर्द्रा नक्षत्र- कू, घ, ङ, छ
- पुनर्वसु नक्षत्र- के, को, हा,
- कर्क राशि
- पुनर्वसु नक्षत्र- ही
- पुष्य नक्षत्र- हू, हे, हो, डा
- अश्लेषा नक्षत्र- डी, डू, डे, डो
5. सिंह राशि
- मघा नक्षत्र- मा, मी, मू, मे
- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र- मो, टा, टी, टू
- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र – टे
6. कन्या राशि
- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र- टो,पा,पी
- हस्त नक्षत्र- पू, ष, ण, ठ
- चित्रा नक्षत्र- पे,पो,
7. तुला राशि
- चित्रा नक्षत्र- रा,री
- स्वाति नक्षत्र- रू, रे, रो, ता
- विशाखा नक्षत्र- ती, तू, ते,
8. वृश्चिक राशि –
- विशाखा नक्षत्र:- तो
- अनुराधा नक्षत्र:- ना, नी, नू, ने
- ज्येष्ठा नक्षत्र:- नो, या, यी, यू
9. धनु राशि
- मूल नक्षत्र- ये, यो, भा, भी
- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र- भू, धा, फा, ढा
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र- भे,
10. मकर राशि
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र- भो, जा, जी
- श्रवण नक्षत्र- खी, खू, खे, खो
- धनिष्ठा नक्षत्र- गा, गी,
11. कुंभ राशि
- धनिष्ठा नक्षत्र- गू, गे
- शतभिषा नक्षत्र- गो, सा, सी, सू
- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र- से, सो, दा,
12. मीन राशि
- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र- दी
- उत्तराभाद्रपद नक्षत्र- दू, थ, झ, ण
- रेवती नक्षत्र- दे, दो, चा, ची
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ज्योतिष में- शुभ, मध्यम और अशुभ नक्षत्र क्या होते हैं?
ज्योतिष में, शुभ नक्षत्र वे नक्षत्र हैं, जिस नक्षत्र में, किए गए सभी कार्य सिद्ध और सफल होते हैं। शुभ नक्षत्रों में, 15 नक्षत्र- रोहिणी, अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा फाल्गुनी, धनिष्ठा, पुनर्वसु आते हैं। वहीं मध्यम नक्षत्र में ऐसे नक्षत्र आते हैं- जिनमें किए गए कार्य मध्यम फलदायी होते हैं। जिसमें किसी प्रकार की हानि नहीं होती है लेकिन मध्यम फल ही प्राप्त होता है। जैसे –पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा। अंत में अशुभ नक्षत्र होते हैं, जिसमें किए गए कार्यों का फल अशुभ मिलता है। इन नक्षत्रों में, किए गए कार्यों में, बाधाएं आती हैं। इन नक्षत्रों में- भरणी, कृत्तिका, मघा और आश्लेषा नक्षत्र आते है।
- पंचक
हम सभी ने, पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में सुना है। ज्योतिष में, इन नक्षत्रों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है और यदि किसी बच्चे का जन्म इस नक्षत्र में हो जाए तो, जन्म के 27 दिन बाद मूल शांति की पूजा करना अनिवार्य माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पंचक नक्षत्र तब होता है; जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में गोचर करता है। उस समय घनिष्टा से रेवती नक्षत्र के बीच में जितने भी नक्षत्र होते हैं; उन्हें पंचक कहा जाता है। मान्यता है कि पंचक के दौरान जोखिम भरे कार्य नहीं किए जाते हैं! इसके अलावा, इस नक्षत्र के दौरान घर की छत डालने का कार्य भी नहीं करना चाहिए और दक्षिण दिशा की तरफ यात्रा करना भी अशुभ माना जाता है।
- गंडमूल नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, गंडमूल नक्षत्र को सबसे अशुभ माना जाता है। जिसमें, अश्विनी,आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती नक्षत्र आते हैं। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक अपने सम्पूर्ण जीवन में, कष्टों और संघर्षों का सामना करते हैं। ज्योतिष के मुताबिक, यदि इन 6 नक्षत्रों में किसी नक्षत्र में भी कोई बच्चे ने जन्म लिया है तो, उसके परिवार को 27 दिन के बाद घर पर मूल शांति का पाठ अनिवार्य रूप से करवाना पड़ता है!साथ ही, 27 दिन तक पिता बच्चे का मुख भी नहीं देखते हैं; क्योंकि, यह अशुभ माना जाता है।
‘मंगल भवन’ के इस लेख में हमने जाना, कि नाम के अनुसार, राशि और नक्षत्र की जानकारी कैसे मिल सकती है, कौन से नक्षत्र शुभ होते हैं और कौन से अशुभ- आशा करते हैं लेख आप सभी को पसंद आए अंत में लेख पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें!
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FAQS\ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-
Q. नक्षत्र क्या होते हैं?
An. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सितारों को नक्षत्र कहा जाता है। जिसका संस्कृत में, शाब्दिक अर्थ ‘नक्ष’ यानी आकाश और ‘क्षत्र’ यानी क्षेत्र से है। इसके साथ ही, राशि चक्र में कुल 12 राशियां होती हैं और 27 नक्षत्र होते हैं। यानी ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक राशि में 2 या 3 नक्षत्र आते हैं।
Q. अशुभ नक्षत्र कौन-कौन से हैं?
An. अशुभ नक्षत्र वे होते हैं, जिसमें किए गए कार्यों का फल अशुभ मिलता है। इन नक्षत्रों में, किए गए कार्यों में, बाधाएं आती हैं। इन नक्षत्रों में- भरणी, कृत्तिका, मघा और आश्लेषा नक्षत्र आते है।
Q. पंचक नक्षत्र क्या होता है?
An. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पंचक नक्षत्र तब होता है; जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में गोचर करता है। उस समय घनिष्टा से रेवती नक्षत्र के बीच में जितने भी नक्षत्र होते हैं; उन्हें पंचक कहा जाता है। मान्यता है कि पंचक के दौरान जोखिम भरे कार्य नहीं किए जाते हैं! इसके अलावा, इस नक्षत्र के दौरान घर की छत डालने का कार्य भी नहीं करना चाहिए और दक्षिण दिशा की तरफ यात्रा करना भी अशुभ माना जाता है।
Q. मकर राशि के लिए कौन से नाम अक्षर बताए गए हैं?
An. मकर राशि
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र- भो, जा, जी
- श्रवण नक्षत्र- खी, खू, खे, खो
- धनिष्ठा नक्षत्र- गा, गी