भीष्म अष्टमी 2023, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माघ मास के शुक्लपक्ष में आने वाली अष्टमी को ‘भीष्म अष्टमी’ कहते हैं। कहा जाता है कि इस तिथि को व्रत करने का अध्यात्म में बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने सूर्य भगवान के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्याग दिए थे। भीष्म पितामह की स्मृति में यह व्रत किया जाता है। हिन्दू संस्कृति में इस दिन भीष्म पितामह हेतु निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करने का प्रावधान बताया गया है; चाहे फिर उसके माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत को करने से जातक को सुंदर और गुणवान संतान की प्राप्ति होती है। ज्योतिष में भीष्म अष्टमी को सबसे शुभ व भाग्यशाली दिनों में से एक माना जाता है; जो भीष्म पितामह की मृत्यु का प्रतीक है। यह एक ऐसा दिन था जिसे भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग के लिए स्वयं चुना था।
भीष्म पितामह, महाराज शांतनु तथा देवी गंगा के पुत्र थे। जिन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की अखंड प्रतिज्ञा ली थी। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सत्य और न्याय का पक्ष लेते हुए व्यतीत किया। इस कारण महाभारत में भीष्म पितामह अपना एक विशिष्ट स्थान व महत्व रखते है। इनका जन्म नाम देवव्रत था, परन्तु अपने पिता के लिये उन्होंने आजीवन विवाह न करने का प्रण लिया था, इसी कारण से उनका नाम भीष्म रखा गया।
पौराणिक मान्यता
महाभारत पुराण के अनुसार गंगा पुत्र देवव्रत (भीष्म) की माता देवी गंगा अपने पति को दिये वचन के अनुसार अपने पुत्र को अपने साथ ले गई थी। देवव्रत की प्रारम्भिक शिक्षा और लालन-पालन उनकी माता के साथ रहकर ही संपन्न की। इन्होंने महर्षि परशुराम से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की। दैत्यगुरु शुक्राचार्य जैसे महान गुरु से भी शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला था। भीष्म अपनी अनुपम युद्ध कला हेतु भी विशेष रूप से जन्मे जाते थे। अपनी सभी शिक्षाएं व कलाएं सीखने के बाद उन्हें उनकी माता ने उनके पिता हस्तिनापुर के महाराज शांतनु को सौंप दिया। कई वर्षों के बाद पिता का अपने पुत्र के साथ मिलन हुआ और महाराज शांतनु ने अपने पुत्र को राज्य (हस्तिनापुर) का युवराज घोषित कर दिया।
राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक महिला से प्रेम वश वें उससे विवाह करना चाहते थे। लेकिन सत्यवती के पिता की शर्त के अनुसार (राजा शांतनु और सत्यवती की संतानें ही भविष्य में हस्तिनापुर राज्य का शासन करेंगी) स्थिति को देखते हुए, देवव्रत(भीष्म) ने अपने पिता हेतु अपना राज्य छोड़ दिया और जीवन भर ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया। इसी संकल्प तथा बलिदान के कारण, देवव्रत ‘भीष्म’ नाम से पूजनीय हुए। और उनकी इस प्रतिज्ञा को ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ का नाम दिया गया।
भीष्म अष्टमी: शुभ मुहूर्त
ज्योतिष के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष में आने वाली अष्टमी को “भीष्म अष्टमी” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह की पुण्यतिथि का दिन माना जाता है। इस दिन पर भीष्म पितामह के लिए एकोदिष्ट श्राद्ध करने का प्रावधान है इस दिन पूजा के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
- भीष्म अष्टमी तिथि जनवरी 2023
28 जनवरी 2023 दिन शनिवार
- भीष्म अष्टमी पूजन मुहूर्त
28 जनवरी 2023 दिन शनिवार
प्रातः 11:40 से दोपहर 1:40 तक पूजन का मुहूर्त है।
- अष्टमी तिथि प्रारंभ
27 जनवरी 2023 दिन शुक्रवार
रात्रि 10:00 बजे अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी।
- अष्टमी तिथि समाप्त
28 जनवरी 2023 दिन शनिवार
रात्रि 10:35 पर अष्टमी तिथि समाप्त होगी।
भीष्म अष्टमी पर किए जाने वाले अनुष्ठान
विद्वान ज्योतिषियों की गणना के अनुसार भीष्म अष्टमी की पूर्व संध्या पर, एकोद्देश श्राद्ध करते हैं। हिंदू सभ्यता व पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों के पिता नहीं हैं वे ही केवल इस श्राद्ध को कर सकते हैं; परन्तु कुछ धर्मों में, इसका पालन नहीं किया जाता है और अनुष्ठान का पालन इस तथ्य के बावजूद किया जाता है कि उनके पिता जीवित या मृत हैं।
- इस विशेष दिन पर, विभिन्न पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करने का प्रावधान है। जिसे ‘भीष्म अष्टमी तर्पण’ से संदर्भित किया जाता है। यह अनुष्ठान भीष्म पितामह तथा के पूर्वजों के नाम पर उनकी आत्मा की शांति हेतु किया जाता है।
- पवित्र नदियों में स्नान करने अलावा एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है, इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन पूर्वजों को पवित्र नदी में तिल और उबले हुए चावल अर्पित किए जाते हैं।
- इस दिन सभी भीष्म पितामह को श्रद्धांजलि देने के लिए भीष्म अष्टमी का व्रत भी करते हैं; जहां वे संकल्प (व्रत) लेते हैं, अर्घ्यम् (पवित्र समारोह) करते हैं और भीष्म अष्टमी मन्त्रों का जप करते हैं।
भीष्म अष्टमी की पूजा तथा व्रत से लाभ
पौराणिक धारणाओं के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने जीवन में के विधाएँ व शिक्षाएं प्राप्त की थी।
इन विधाओं का पालन करने का जन सामान्य हेतु भी उन्होंने उपदेश दिए थे; इसी परंपरा के अंतर्गत भीष्म पितामह को समर्पित इस विशेष दिन पर भीष्म पितामह का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु व्रत व पूजन का विशेष प्रावधान व लाभ बताया गया है-
- यह माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के विशेष दिन पर पूजा करने तथा व्रत करने से जातक को ईमानदार और आज्ञाकारी संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- भीष्म अष्टमी के इस विशेष दिन पर पूर्व संध्या पर व्रत, तर्पण और पूजा के साथ विभिन्न अनुष्ठानों को करने से, जातक अपने अतीत और वर्तमान में किए पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकते तथा सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- इस विशेष दिन के व्रत व पूजन से जातक को पितृ दोष से भी निजात में सहायता मिलती है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो भी व्यक्ति उत्तरायण के इस शुभ दिन पर अपना देह का त्याग करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है, इसलिए उन्होंने कई दिनों तक बाणों की शैय्या पर प्रतीक्षा की और अंत में अपने शरीर को छोड़ दिया। उत्तरायण अब भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
कुछ सवाल व उनके जवाब – FAQ
Q- भीष्म पितामह की आयु कितनी थी?
An- भीष्म पितामह की आयु 170 वर्ष थी, जब उन्होंने देह त्याग दिया था।
Q- भीष्म पितामह किसका अवतार थे?
An- महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था।
Q- भीष्म पितामह को कौन सा श्राप दिया गया था?
An- भीष्म पितामह को ‘करकेंटा का ‘श्राप’ दिया गया था।
Q- भीष्म पितामह कितने दिन तीरों की शय्या पर थे?
An- 18 दिन चलने वाले युद्ध के दसवें दिन भीष्म पितामह पर तीरों की वर्ष की गई तब ही से वे तीरों की शय्या पर थे।
Q- भीष्म पितामह के धनुष का नाम क्या था?
An- भीष्म पितामह के धनुष का नाम ‘वायव्य’ था।