Saturn in 8th house | क्या, कुंडली में आठवें भाव में शनि ग्रह माने जाते हैं अशुभ

शनि ग्रह

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जन्म कुंडली का आठवां या अष्टम भाव मृत्यु का भाव कहलाता है। इसलिए इस भाव में शनि के स्थान को लेकर अक्सर लोग भयभीत ही रहते हैं। क्योंकि शनि ग्रह को भी एक क्रूर ग्रह की उपाधि प्राप्त है जो जातक को अशुभ फल देते हैं अतः आठवें भाव में शनि ग्रह के स्थान का होना स्वाभाविक भय का कारण होता है।

‘मंगल भवन’ के इस लेख में हम कुंडली के आठवें या अष्टम भाव में शनि ग्रह के ऐसे सभी प्रभावों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, जिससे जातक के जीवन पर शुभ या अशुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।  

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ज्योतिष के अनुसार : कुंडली के आठवें भाव में शनि का महत्व 

सामान्य तौर पर ज्योतिष में,  जन्म कुंडली में आठवें  भाव को शुभ नहीं माना गया है। इसे ‘ त्रिक’ भाव भी कहा जाता है। इस भाव से जातक की आयु व मृत्यु के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसी के साथ शनि ग्रह इस भाव का तथा मृत्यु का कारक ग्रह भी होता है। शनि यदि कुंडली के आठवें भाव में स्थित हो तो इसकी सीधी दृष्टि दसवें, दुसरे व पांचवें भाव पर रहती हैं। इस कारण यह व्यवसाय और उसके कार्य क्षेत्र, धन, शिक्षा, संतान पक्ष व मृत्यु आदि के फल पर शनि का प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा इस स्थान पर शनि व अन्य ग्रहों की युति, दृष्टि व स्वामित्व के प्रभाव के कारण भी जातक शुभ-अशुभ फल के भागी होते है।

तार्किक रूप से यह भी कहा जा सकता है कि पापयुक्त शनि ग्रह जब कुंडली के आठवें भाव में शुभ फल देने के भाव में हो तो जातक की अशुभता का नाश होगा व जातक दीर्घायु को प्राप्त करेगा। अतः इस स्थान में शनि को आयुष्य कारक भी माना गया है।

ज्योतिष में: शनि ग्रह का महत्व 

ज्योतिष शास्त्र में, शनि ग्रह को कर्मफल दाता व नपुंसक ग्रह की संज्ञा दी गई है। जो की शुभ होने पर अत्यंत सुखदायी व अशुभ होने पर क्रूर तथा दुखदायी ग्रह माना गया माना गया है। सप्ताह का शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित है। ज्योतिष में उत्तराभाद्रपद, पुष्य व अनुराधा शनि के तीन नक्षत्र है। ये तुला राशि में उच्च और मेष राशि में नीच स्थान पर होते हैं। ग्रहों में शुक्र ग्रह और बुध ग्रह इनके मित्र ग्रह हैं।

कुंडली के आठवें भाव में शनि: पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

कुंडली के आठवें या अष्टम भाव में शनि ग्रह विराजमान हो तो ऐसे जातक मित्रों व  परिवार से बैर या शत्रुता का भाव रखते है। ऐसे व्यक्ति को उसके परिवार में सदस्यों से भी विशेष रूप से प्यार नहीं मिलता। साथ ये जातकनिम्न स्त्री के साथ सम्बन्ध बना सकते हैं जिससे कि परिवार के सदस्यों को भी अपमानित होना पड़ता है। कहा जाता है की इन जातकों को विवाह के बाद आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ता है। इन जातकों को संतान पक्ष से पुत्रों की संख्या कम होती है।

आठवें भाव में शनि ग्रह : स्वास्थ्य पर प्रभाव 

ज्योतिष के अनुसार, यदि कुंडली के आठवें भाव में शनि ग्रह स्थित हो तो ऐसे में जातक को पाचन तंत्र और पेट से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। इसके अतिरिक्त जातक व्यक्ति को जोड़ो का दर्द, दाँतों व नाखूनों से सम्बंधित समस्याएं भी आ सकती है। इसके साथ मृत्यु व दीर्घकालिक रोग से ग्रसित होने की संभावना रहती है। इसके अलावा, यदि शनि ग्रह आठवें भाव में अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो तो अचानक मृत्यु देता है। ऐसे जातक को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास भी हो जाता है।

आठवें भाव में शनि ग्रह व केतु ग्रह की युति: करियर पर प्रभाव 

अब चूंकि ज्योतिष गणना कुंडली के आठवें भाव में शनि ग्रह की भूमिका को वर्णित कर रही है, इसलिए इससे जातक के पेशे व करियर पर भी प्रभाव पड़ता है। क्योंकि व्यापार व नौकरी, पेशे से संबंधित कुंडली के दसवें व तीसरे भाव के पहलू है। इस कारण शनि ग्रह का कुंडली के आठवें भाव में अचानक परिवर्तन के कारण इसका सीधा प्रभाव जातक के पेशे को भी प्रभावित करता है। इस कारण जातक को जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ता है।

 जब तक कि कुंडली में केतु ग्रह, राशि चक्र या अन्य ग्रहों के शुभ व अशुभ प्रभावों को निर्धारित करता है, तब तक मान के आधार पर यह जातक के लिए बहुत अनुकूल नहीं होता है। यदि जातक कुछ व्यवसाय जैसे-जो कोयला जैसी भूमिगत वस्तुओं से संबंधित है, पेट्रोलियम, कीमती पत्थर, हीरा या अवैध व्यवसाय भी हो तो यदि ग्रह जातक के लिए अनुकूल हैं तो जातक को अच्छा लाभ होगा अन्यथा इसके विपरीत जातक को बहुत हानि का सामना करना पड़ सकता है।

इसके साथ ही ऐसे जातक का करियर, रिसर्च फील्ड में भी अच्छा हो सकता है, अंडरग्राउंड वस्तुओं का सौदा हो सकता है, पेट्रोल पंप, कोल डिपो, या तांत्रिक पूजा-पाठ आदि के क्षेत्र भी जातक के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकते हैं।  ज्योतिष के अनुसार, शनि या केतु की दशा या अंतर्दशा के दौरान, जातक के पेशेवर काम भी बहुत प्रभावित हो सकते हैं। वास्तव में, आठवें भाव में शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव में स्थानांतरण के दौरान जातक का शारीरिक स्वास्थ्य भी नौकरी या उसके व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है।

आठवें भाव में शनि ग्रह : राशि और नक्षत्र का प्रभाव 

कुंडली के आठवें भाव में शनि ग्रह की स्थिति, जातक को गुप्त मनोगत विज्ञान, टैरो कार्ड रीडिंग, ज्योतिष व आध्यात्मिकता, तंत्र-मंत्र की दुनिया में प्रदर्शन करने की असाधारण व अनूठी क्षमता प्रदान करता है, जिसका अर्थ यह है कि प्रभावित जातक के पास ऐसी शक्तियां व उपचार क्षमताएं हो सकती हैं जो बहुत ही  कम लोगों के पास होती हैं। ये जातक गहन ज्योतिष, योग शिक्षक, मरहम लगाने वाले, टैरो रीडर, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक, जादूगर, चित्रकार या दार्शनिक बन सकते हैं।

आठवें भाव में शनि के शुभ प्रभाव वाले जातक को लंबी आयु की भी प्राप्ति होती हैं, लेकिन उनका बुढ़ापा दर्द या किसी पुरानी बीमारी से भरा हो सकता है और यह जातक की मृत्यु तक उसका साथ नहीं छोड़ता है।अष्टम यानी आठवें भाव में शनि ग्रह जातक के पारिवारिक जीवन में अराजकता, उथल-पुथल और अशांति जैसी समस्याओं को पैदा कर सकता है। इसके अलावा अशुभ प्रभाव के कारण, यह जीवनसाथी से अलगाव की स्थिति भी पैदा कर सकता है, और माँ के साथ संबंध को भी प्रभावित करता है। इसी के साथ आठवें भाव में शनि ग्रह, कम उम्र में दुर्घटना का कारण भी होता है। अतः ज्योतिष की सलाह में  एडवेंचर और वाटर स्पोर्ट्स से दूर रहने का सुझाव दिया जाता है। 

आठवें भाव में शनि: स्त्री का स्वभाव 

आठवें भाव में किसी भी महिलाओं के लिए शनि ग्रह की स्थिति, मंगल्या भाव के रूप में भी मानी जाती है क्योंकि यह परिवार के बाद के जीवन को या विवाह को दर्शाता है क्योंकि अधिकांश संस्कृतियों में विवाह के बाद दुल्हन(वधु), दूल्हे(वर) के परिवार में जाती है। कई बार इस प्रकार की भी स्थिति होती है जिसमें लड़की केवल लड़के के साथ रह रही है और परिवार के बाकी लोगों से दूर होती है, इससे यह संभावना है कि लड़की के अंत से शादी के बाद परिवार से किसी प्रकार के अलगाव की सम्भावना नहीं होगी। 

चूंकि कुंडली का आठवां भाव जीवन के निजी भागों को भी दर्शाता है और शनि, केतु कुछ असंतोष जनक प्रक्रिया को दर्शाता है इसलिए अधिक संभावना है कि, जातक उसी से संबंधित मुद्दों से प्रभावित हो सकते हैं और यह विवाहित जीवन को भी प्रभावित कर सकता है।

कुंडली के आठवें भाव में शनि ग्रह : उच्च और नीच का भाव

आठवें भाव में शनि, तुला राशि में : उच्च का 

वैदिक ज्योतिष में, तुला राशि के आठवें भाव में यदि ग्रह उच्च स्थान पर विराजमान हो तो, ऐसे जातक 40 वर्ष तक अपने ससुराल वालों के साथ संबंध अच्छे और ठोस बनाए रखने में सफल होते हैं। ऐसे लोग कम उम्र में दुर्घटनाओं, अराजकता, और अपने पारिवारिक झगड़ों व गड़बड़ी के शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा भाई-बहनों के साथ इन जातकों के अच्छे नहीं रहेंगे, या हो सकता है कि आप अपने साथी के शुष्क रवैये के कारण कम उम्र में ही अपने जीवन के रोमांटिक पहलुओं उचित आनंद न उठा सकें, जिसके परिणामस्वरूप इन जातकों का अपने साथी से तलाक या अलगाव की स्थिति भी हो सकती है। इसके अलावा इन जातकों के साथी द्वारा इन्हें धोखा भी मिल सकता है। इसके अलावा ऐसे जातक अवैध कार्यों में लिप्त लोगों से प्रभावित हो सकते हैं जिससे उन्हें अच्छे परिणाम न मिलें।

शनि ग्रह

मेष राशि के आठवें भाव में शनि : नीच का 

कुंडली में मेष राशि में आठवें भाव में शनि ग्रह के नीच स्थान पर होने से जातक को करियर संबंधी मामलों में निराशा का सामना करना पड़ सकता है। जिससे कि जातक का करियर उतार-चढ़ाव से गुजरेगा। मेष राशि के आठवें भाव में शनि ग्रह वाले जातक अपने करियर पथ से निराश हो सकते हैं क्योंकि इन लोगों को एक सटीक दिनचर्या की तलाश होती है, जबकि अनिश्चितता का यह भाव उतार-चढ़ाव पसंद करता है।

आठवें भाव में शनि ग्रह: स्वभाव पर प्रभाव 

ज्योतिष के अनुसार, यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में आठवें भाव में शनि ग्रह का स्थान है तो ऐसे जातक स्वभाव से साहसी, गुणी, विद्वान और वाचाल होता है। इस भाव में शनि के शुभ स्थिति में होने पर जातक को निडर और उदार प्रकृति प्राप्त होती है। हालांकि ऐसे जातक का स्वभाव कुछ हद तक रहस्यमयी भी हो सकता है और वह ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, टोटके, गुप्त विद्याओं का जानकार या रुचि रखने वाला हो सकता है। 

इसके विपरीत यदि, शनि ग्रह खराब अवस्था में हो तो जातक हमेशा दूसरों की बुराई और निंदा करने में लिप्त रहता है। इस कारण उसे अक्सर अपमान का सामना भी करना पड़ सकता है। ऐसे लोगों का दिल बहुत छोटा होता है और वें कई बार ओछी हरकत भी कर देते हैं। जिन जातकों के आठवें भाव में शनि ग्रह का स्थान होता है वे अपने कार्य धीमी गति से करते हैं। जिस कारण उन्हें आलसी की संज्ञा भी जाती है। कभी-कभी ऐसे जातक जल्दी ही आवेश पूर्ण व्यवहार के शिकार हो जाते हैं।

आठवें भाव में शनि ग्रह : सकारात्मक प्रभाव

  1. आठवें भाव में शनि ग्रह से प्रभावित जातक, धैर्यवान, मितव्ययी और कभी-कभी थोड़े कंजूस प्रवृत्ति के होते हैं लेकिन ऐसे लोग अपने जीवन में बाद में परोपकारी और परिश्रमी स्वभाव को अपना लेते हैं। 
  2. ऐसे जातक स्व-निर्मित और अनुशासित स्वभाव के होते हैं, जो अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों को पूरा करने में और महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने हेतु अपनी कुछ समय की खुशी का त्याग कर सकते हैं। 
  3. ऐसे लोग अपनी बेहतर वित्तीय स्थिति को प्राप्त करने के लिए व अच्छा जीवन जीने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए अपने सामाजिक जीवन व आनंद और मौज-मस्ती को भी त्याग देते हैं।
  4. आठवें भाव में अशुभ शनि जातक के वैवाहिक सुख के साथ-साथ विरासत, ऋण और यौन संतुष्टि से संबंधित मामलों में भी देरी, समस्याएं और अप्रत्याशित परिवर्तन की स्थिति पैदा कर सकता है।
  5.  हालांकि, आठवें भाव में लाभकारी शनि ग्रह, जातक को अपने वैवाहिक जीवन और कभी-कभी गुप्त मामलों का आनंद प्रदान करता है।

आठवें भाव में शनि ग्रह : नकारात्मक प्रभाव

  1. कुंडली के आठवें भाव में शनि ग्रह की स्थिति से जातकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव होता है। ऐसे जातक को कोई पुरानी बीमारी से समस्या हो सकती है और मृत्यु तक चल सकती है। 
  2. इसके साथ ही शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव के कारण व जिम्मेदारियों के बोझ के कारण ये लोग कम उम्र में ही बूढ़ा महसूस करने लगते हैं। 
  3. हालांकि इन जातकों को उनके वैवाहिक जीवन साथी, ससुराल पक्ष और परिवार से आर्थिक सहयोग भी मिलेगा। 
  4. इसके अलावा, वक्री शनि के कारण, गर्भावस्था के दौरान कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है और संतान के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव होता है।
  5. हालांकि, इन जातकों का उनका दार्शनिक स्वभाव उन्हें बुढ़ापे में अपार आनंद की अनुभूति दे सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आठवें भाव में शनि ग्रह वाले जातक बाधाओं का सामना करने के बावजूद लंबे समय अंतराल के बाद लाभ प्राप्त करेंगे।

क्या आप भी अपनी जन्म कुंडली में ग्रहों के अशुभ परिणाम से परेशान हैं तो, आज ही अपनी समस्या का निवारण पाएं हमारे ज्योतिषाचार्यों से ।

आठवें भाव में शनि ग्रह : उपाय

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी ग्रह की अशुभता को पूरी तरीके से नष्ट तो नहीं किया जा सकता है, परन्तु कुछ आसान से उपाय करने के से बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है।आइए जानें कुछ इस प्रकार के उपायों के बारे में-

  • यदि जन्म कुंडली में आठवें भाव में शनि ग्रह की स्थिति हो तो ऐसे जातक को भगवान हनुमान, शिव जी और दुर्गा मां की उपासना से लाभ हो सकता है।
  • इन जातक को व्यसनों, नशा, शराब, मांसाहार आदि से दूर रहना चाहिए।
  • इसके साथ जातक को काले कुत्ते को नियमित रूप से घी लगी रोटी खिलाएं।
  • शनिवार के दिन किसी भिखारी या जरूरतमंदों को भरपेट भोजन करवाएं।
  • गले में चांदी की चेन धारण करें।

Must Read: कुंडली के अन्य भाव में शनि ग्रह के प्रभाव

जानें, कुंडली के प्रथम भाव में शनि ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिकाकुंडली के दूसरे भाव में शनि ग्रह बढ़ाएंगे समस्याएं या होगा लाभ
कुंडली के तीसरे भाव में शनि ग्रह के प्रभावकुंडली के चौथे भाव में शनि ग्रह होते हैं दयालु
पांचवे भाव में शनि ग्रह की भूमिका, प्रभाव व आसान उपायछठे भाव में शनि ग्रह की स्थिति होगी करियर हेतु श्रेष्ठ
कुंडली के सातवें भाव में शनि ग्रह प्रभावित करेंगे वैवाहिक जीवन
कुंडली के नौवें भाव में शनि ग्रहदसवें भाव में शनि ग्रह, करियर में देगा सफलता
ग्यारहवें भाव में शनि ग्रह होते हैं, आर्थिक स्थिति के लिए शुभबारहवें भाव में शनि ग्रह करेंगे परिवार व व्यापार में सुख व लाभ की वृद्धि

आठवें भाव में शनि ग्रह से सम्बंधित- सामान्यप्रश्न- FAQ


Q- अष्टम भाव में शनि हो तो क्या होता है?

An- यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में आठवें भाव में शनि है तो जातक साहसी, गुणी, विद्वान और वाचाल होता है। शनि शुभ स्थिति में हो तो जातक को निडर और उदार प्रकृति का बनता है।

Q- क्या आठवें भाव में शनि अच्छा है?

An- आठवें भाव में शनि जीवन में बहुत रोमांच लाता है। इसके अलावा, यह विकास और परिवर्तन का प्रतीक है अच्छा या बुरा।

Q- कुंडली में आठवें घर किसका होता है?

An- वैदिक ज्योतिष में आठवें भाव को आयु भाव कहा जाता है। यह रहस्य, स्वामित्व, जुनून और महत्वाकांक्षा जैसी विशेषताओं के साथ वृश्चिक राशि से संबंधित है।

Q- अष्टम भाव का स्वामी कौन होता है?

An- आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है और कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्र हैं।

Q- ज्योतिष में कौन सा भाव मृत्यु के लिए है?

An- जन्म के समय शनि के कब्जे वाले भाव से गिना जाने वाला आठवां भाव मृत्यु-भाव या मृत्यु का घरहोता  है।

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