Saturn in 1st House | जानें, कुंडली के प्रथम भाव में शनि ग्रह की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में

शनि ग्रह

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कुंडली के प्रथम भाव में शनि ग्रह (Saturn in 1st house)     

वैदिक ज्योतिष में गणना करने पर ज्ञात किया गया है कि, कुंडली के प्रथम यानी पहले भाव में शनि ग्रह की स्थिति का सबसे अधिक प्रभाव जातक के सही और गलत निर्णय लेने की क्षमता पर पड़ता है। ऐसे जातक अन्य लोगो की तुलना में, जीवन में आने वाली स्थितियों और घटनाक्रमों को बड़ी ही स्पष्टता से देख सकते हैं। इसके सत्रह ये जातक सोचने और कार्य करने में भी बहुत तेज हो सकते हैं।

ज्योतिष में प्रथम (पहला) भाव  

ज्योतिष शास्त्र में पहला भाव ‘स्वयं’ का घर होता है। इस भाव कि राशि मेष राशि है और इसके शासक ग्रह मंगल ग्रह से मेल रखते है। शास्त्रों में इस भाव को कोणीय भाव माना जाता है, इसलिए इस भाव का जन्म कुंडली में अधिक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। प्रथम भाव यानी ‘लग्न’ भाव से जातक की पहचान के सभी पहलुओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।  

कुंडली के सभी भाव भावों की कुछ न कुछ विशेषता होती उसी प्रकार, कुंडली का प्रथम भाव जातक की  स्वयं की छवि पर केंद्रित है और हमारा स्वयं को देखने का क्या नजरिया है और लोग हमारे बारे में पहली राय क्या देते हैं, इसी पर आधारित है। इसी के साथ प्रथम भाव,  हमारी शैली और नई परिस्थितियों के प्रति हमारे दृष्टिकोण का भी प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष में, जन्म कुण्डली में इस भाव को धारण करने वाली राशि,  लग्न या उदीयमान राशि कहलाती है।

ज्योतिष में शनि ग्रह की भूमिका 

शास्त्रों के अनुसार सभी ग्रहों में महत्वपूर्ण व न्याय के देवता माने जाने वाले ग्रह शनि, सीमा, संयम, अनुशासन, कड़ी मेहनत, अहंकार विकास, अधिकार और कार्यों के परिणामों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका प्रभाव जातक के संसाधनों के संरक्षण, पीछे हटने और सावधानी की इच्छा को बढ़ावा देने पर होता है। वैसे तो ज्योतिष में शनि ग्रह को एक अशुभ ग्रह की संज्ञा दी जाती है; जिसका अर्थ है कि शनि जहां भी उपस्थित होंगे, अक्सर व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव ही देंगे। परन्तु ऐसा बिल्कुल नहीं है, शनि ग्रह जातक को अपने कामों के अनुरूप ही शुभ या अशुभ फल देते हैं-  

इसके साथ ही शनि ग्रह यह एक अत्यधिक गंभीर आचरण और जीवन जीने की शैली के कुछ आनंद और प्रकट करने की प्रवृत्ति को भी दर्शाता है। शास्त्रों में शनि ग्रह को कर्म से भी संबंधित बताया गया जुड़ा है, विशेष रूप से ऐसे नकारात्मक कर्म जो, जातक तब काटता है जब उसके द्वारा मूर्खतापूर्ण निर्णय लिए गए  हों। इसके अलावा, शनि ग्रह अधिकार और पदानुक्रमित संरचनाओं के लिए सम्मान भी देता है। इसके साथ ही शनि ग्रह अलगाव और आत्मनिर्भरता से सम्बन्ध रखते है।

प्रथम भाव में शनि ग्रह के प्रमुख लक्षण

  • स्वयं के प्रति गंभीरता 
  • परिपक्व स्वभाव, निर्णय लेने में कुशलता 
  • सतर्कता और व्यवस्थित रूप
  • धैर्य, अहंकार और अधिकार

ज्योतिष शास्त्र में प्रथम भाव के शनि ग्रह के विशेष पहलू 

स्वभाव 

यदि किसी जातक के प्रथम भाव स्थान में शनि ग्रह का प्रभाव है तो यह स्थिति, जातक में कई राजसी गुण का निर्माण करने वाली होती है। इसके साथ ही यह जातक के स्वभाव में नियमितता को भी लाती है। ऐसे जातक अपने अपने प्रयासों के माध्यम से उच्च पद को प्राप्त करने में सफल होते हैं। ऐसे जातक की य़ोजनाएं दूरगामी होती हैं और ये लोग प्रायः किसी भी कार्य अथवा व्यवसाय में प्रथम पथ प्रदर्शक की भूमिका रखते हैं। ‘लग्न’ भाव में शनि की स्थिति के कारण जातक का रंग सांवला या गहरा हो सकता है। ऐसे जातक प्रायः नौकरी करने में रुचि लेते है और उच्चाधिकारियों की सहायता से सफलता प्राप्त करते है। इन जातकों का प्रायः नौकरी के बाद का समय सर्वोत्तम तथा वृद्धावस्था सुखी व्यतीत होती है।

पूर्ण दृष्टि 

  1. कुंडली के ‘लग्न’ यानी प्रथम भाव में स्थित शनि ग्रह की सप्तम पूर्ण दृष्टि, सप्तम भाव पर पड़ती है जिसके परिणाम से जातक के पत्नी से वैचारिक मतभेद होने की सम्भावना होती है। शनि की यह दृष्टि शास्त्रों में शुभ नहीं मानी जाती, जिसके प्रभाव से जातक के पत्नी से अनबन या मनमुटाव की स्थिति बनी रहती हैं। 
  2. इसी प्रकार शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि,  तृतीय स्थान पर होने से, जातक के छोटे भाई-बहन नहीं होते हैं। साथ ही जातक भयभीत या सहमा हुआ रहता है। 
  3. शनि की दशम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को कार्यक्षेत्र में रुकावट व कठिनाइयां होती है। जातक को कड़ी मेहनत के बाद सफलता मिलती है।

मित्र/शत्रु राशि

  1. कुंडली में शनि की मित्र, उच्च या स्वराशि में शनि ग्रह के प्रभाव से, जातक को उच्च पद की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक किसी संस्थाओं में उच्चाधिकारी के पद पर असिन हो सकते हैं। ये जातक पराक्रमी व बहादुर होते है।
  2. शनि की शत्रु व नीच राशि में, शनि ग्रह के प्रभाव से जातक झूठ बोलने वाला और स्वार्थी स्वभाव का होता है। ऐसे जातक किसी की भी सहायता नहीं करते। इसके साथ ही इन जातकों  की मानसिकता भी अच्छी नहीं होती है। वें झगड़ालू और आर्थिक स्थिति से कमजोर होता है। 
  3. इसके अलावा, शत्रु व नीच राशि में शनि ग्रह, व्यवसाय में कष्ट, पुत्र संतान और धन की कमी को भी दर्शाता है। या फिर ये दोनों एक साथ प्राप्त नहीं होते हैं। 
  4. इसी के साथ, शनि की नीच व शत्रु राशि में शनि की कमजोर स्थिति जातक को आलसी व अनुशासन हीन बनाती है।    

भाव विशेष

इस भाव में शनि ग्रह से प्रभावित जातक,  स्वयं तो कठोर परिश्रमी होता है परन्तु प्रायः वें दूसरों के काम में गलतियां निकालने वाला होता है। इसके साथ ही ऐसा जातक थोड़ा हठी(जिद्दी) स्वभाव का होता है। लग्नस्थ का शनि जातक में जिद्दी होने के गुण को लाता है। 

कुंडली के प्रथम भाव में शनि ग्रह का प्रभाव 

वैदिक ज्योतिष की गणना में, शनि ग्रह को कठिन कार्य देने वाला ग्रह माना जाता है। जो कि, लाभ और दंड के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि, यदि जातक अच्छे कर्म करेंगे, तो शनि उसे उदारता के साथ से शुभ परिणाम देते हैं। वहीं इसके विपरीत, यदि जातक अधर्म, या कुकर्म में लिप्त होगा, तो शनि उसे उचित दंड भी देते हैं। अतः शनि ग्रह को ‘कर्मफल’ दाता भी कहते हैं। इसके साथ ही शनि एक न्यायप्रिय ग्रह है, उन्हें न्याय पालक की संज्ञा दी जाती है। 

यदि किसी जातक की कुंडली के प्रथम यानी लग्न भाव में शनि ग्रह विराजमान हैं तो, उन जातकों पर शनि ग्रह से संबंधित नियमों के तहत अच्छे या बुरे प्रभाव होने की संभावना होती है। अगर ऐसे जातक कड़ी मेहनत और ईमानदारी से कर्म करते हैं, तो उन्हें इससे भयभीत होने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए हम कह सकते हैं कि शनि ग्रह वास्तव में, सही रास्ते पर चलने और गलत चीजों से दूर रहने का भय पैदा करता है। ज्योतिष में यह एक विशाल बल के रूप में, धार्मिकता को अग्रसर कर बढ़ावा देने का कार्य करता है।

प्रथम भाव में शनि ग्रह से प्रभावित क्षेत्र

  • रिश्ते तथा व्यापार/व्यवसाय
  • सामाजिकता 
  • करियर
  • कार्यकुशलता व दूसरों के प्रति व्यवहार 

प्रथम भाव में शनि ग्रह के अनुकूल प्रभाव 

ज्योतिष में, शनि ग्रह का यह गुण होता है कि यह, जातक को कड़ी मेहनत करने के लिए बाध्य करते हैं। इसके साथ ही शनि ग्रह विशेष रूप से अनुशासन प्रिय को प्राथमिकता देते हैं, और उनका यह दृष्टिकोण बहुत सख्त होता है। परन्तु इससे जातक को नुकसान या हानि नहीं होती। दरअसल, शनि ग्रह, यह चाहता है कि जातक अच्छे कर्म करें व अच्छाई के मार्ग पर चलें। शनि ग्रह केवल बाहरी रूप से कठोर होते हैं। परन्तु वास्तव में वें, हमारे शिक्षक या पिता के समान हमारा मार्गदर्शन करते हैं। 

कुंडली के प्रथम भाव में शनि ग्रह की स्थिति को ज्य्तिश में सबसे स्थिति मानी गई है, जिसका प्रमुख प्रभाव जातक के सही और गलत निर्णय लेने की क्षमता पर पड़ता है। ऐसे जातकों की जीवन में आने वाली स्थितियों और घटनाक्रमों को स्पष्ट रूप से देखने की अद्भुत तथा तीव्र क्षमता होती हैं। इसके अलावा, यदि शनि ग्रह का स्थान आपकी कुंडली के पहले भाव में है, तो उन कारणों के बारे में आपको सचेत रहना चाहिए; जो तनाव की स्थिति बना सकती हैं, और उन स्थितियों को सुलझाने हेतु आपको रचनात्मक तरीके की खोज करनी चाहिए। शनि ग्रह के प्रभावों के प्रति सही दृष्टिकोण जातक के जीवन में बेहतर परिवर्तन ला सकता है।

शनि ग्रह

इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि जातक अपने लाभ के लिए शनि ग्रह को पिता के रूप में भी देख सकते हैं। यदि जातक शनि के स्वभाव को न भूलें और सदाचारी बने रहें, तो आप बहुत अच्छे प्रभाव प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही जातक अपनी श्रेष्ठ प्रवृत्ति का उपयोग कर “कुछ भी करने से पहले अच्छे से सोच-विचार करना जरूरी होता है नहीं तो, शनि ग्रह से जातक को कुछ बुरे प्रभाव भी मिल सकते हैं अतः कुछ भी करने ले पूर्व सौ बार सोच-विचार कर ही कार्य को आगे बढ़ाएं। ऐसा करने से, जातक के कार्य करने की क्षमता भी अधिक विकसित व प्रभावशाली होती है। इसलिए, शनि ग्रह का स्वभाव व विशेषताएं जातक के लिए अनुसरण के मार्ग का एक उदाहरण हो सकता है। इसी के साथ कुंडली के पहले भाव में शनि ग्रह न केवल जातक के जीवन संबंधी निर्णय करता है, बल्कि उन्हें सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त करने के तरीके भी बताता है।

प्रथम भाव में शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव

जन्म कुंडली के पहले भाव में शनि ग्रह से प्रभावित जातकों को अपनी स्वतंत्रता के बारे में अधिक प्रचार नहीं करना चाहिए। हालांकि, वे ऐसे जातक अपनी मजबूत भावना को बनाए रखने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं। और साथ में कभी-कभी यह भी संभावना हो जाती है कि कुछ स्थितियों में ये जातक भ्रमित भी महसूस कर सकते हैं। इन जातकों के मन में अनेक शंकाओं का वास रहता है और वास्तव में मुश्किलें भी आ सकती हैं। यदि ऐसे जातक अपने जीवन या लक्ष्यों के प्रति स्पष्ट नहीं हैं, तो यह एक चिंताजनक विषय हो सकता है। ज्योतिष की सलाह में, बेहतर होगा कि जातकों को अन्य लोगों या अपने करीबी मित्रों से सलाह लेनी चाहिए। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, प्रथम भाव में शनि ग्रह की स्थिति जातक को, उसके करीबी लोगों के माध्यम से, जो सहायता प्राप्त होगी , वह उनकी सुरक्षा हेतु सामर्थ्य देने वाली होगी, जिसके द्वारा जातक अपनी आगे की कार्रवाई का सबसे अच्छा रास्ता प्रदान कर सकती हैं।

यदि आपके जीवन में कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान आपको मिल नहीं रहा हो तो, आप हमारे ज्योतिष विद्या में निपूर्ण आचार्यों से परामर्श कर सकते हैं। 

प्रथम भाव में शनि ग्रह के प्रभाव की शांति हेतु उपाय

ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए कुछ आसान किन्तु कारगार उपाय बताए गए हैं जो इन प्रकार है-

  1. हनुमान भगवान के प्रतिरूप, बंदरों की सेवा करें।
  2. केले के पेड़ में दूध अर्पित करें।
  3. भगवान भैरव की विधिवत पूजा व उपासना करें। 
  4. शनि ग्रह से सम्बंधित वस्तुएं तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूते-चप्पल  आदि का दान करें। 
  5. कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाने व तेल में अपनी छाया दान कर सकते हैं 
  6. अपने नाख़ून व दांत साफ रखें। 
  7. अंधे, विकलांगों, सेवकों और सफाई कर्मियों से अच्छा व्यवहार करें। 

निष्कर्ष

कुल मिलाकर प्रथम भाव में, शनि ग्रह का प्रभाव यह सुनिश्चित करता है कि, शनि ग्रह अच्छे कर्म करने वाले और ईमानदार लोगों के साथ नम्रता का प्रदर्शन करते हैं और इसके विपरीत आलसी व अनुशासन हीन लोगो के साथ वें, अपने प्रभाव में सख्ती से पेश आते हैं। जो कि सभी के लिए उचित फल नहीं होता है। क्योंकि बहुत से ऐसे भी लोग होते हैं, जो आराम और सुख भरा जीवन चाहते हैं। हालांकि, शनि ग्रह सही तरीके और विधि के प्रवर्तक के रूप में होते है और परिणाम भी वें ऐसे ही प्रदान करते हैं। ये जातक का स्वयं का निर्णय होता है कि उसे इसका पालन कैसे करना हैं।

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प्रथम भाव में शनि ग्रह से सम्बंधित- सामान्यप्रश्न- FAQ


Q- क्या प्रथम भाव यानी लग्न में शनि ग्रह अच्छा होता है?

An- प्रथम भाव में शनि ग्रह से प्रभावित जातक, अपनी स्वतंत्रता को संजो सकते हैं । हालांकि, वे अपने आत्म की मजबूत भावना को बनाए रखने में समस्या से ग्रस्त रहते हैं। कुछ स्थितियों में ऐसे जातक भ्रमित महसूस कर सकते हैं। साथ ही आपका मन शंकाओं से भरा रहता है और संभव हो कि वास्तव में आपका काम कठिन हो।

Q- कौन सा ग्रह शनि को नियंत्रित कर सकता है?

An- दो अन्य ग्रह जिन्हें शनि के समान शक्तिशाली माना जाता है, अर्थात मंगल और राहु । राहु एक छाया ग्रह है और यदि यह शनि के संपर्क में हो तो राहु शनि की शक्ति को बढ़ा देता है।

Q- शनि ग्रह से कौन सा रोग होता है?

An- शनि ग्रह को कैंसर, पैरालिसिस, सर्दी-जुकाम, अस्थमा, चर्म रोग, फ्रैक्चर आदि बीमारियों का जिम्मेदार माना जाता है। शरीर के मुख्य अंगों जैसे हड्डियों, पैर, दांत, मांसपेशियों, बाल, जोड़ों, आंतों और नाखूनों पर शनि का प्रभाव सबसे अधिक होता है।

Q- कुंडली में उच्च का शनि कब होता है?

An- शनि का उच्च राशि में होने का मतलब है कि, जब शनि का स्थान जन्म कुंडली में मूल राशि से दूसरी राशि में हो और उच्च राशियां- कुंभ और मकर, जो शनि की मूल राशि मानी जाती हैं। इसके अलावा, शनि की शुभ स्थिति के लिए जातक की कुंडली में शनि ग्रह के संयुक्त योग से भी फायदा होता है।

Q- कुंडली में शनि ग्रह, शुभ या अशुभ है कैसे पता करें?

An- शनि वृषभ, मकर और कुंभ राशि के लिए लाभकारी है। तुला राशि के लिए शनि अत्यधिक लाभकारी होता है। शनि मेष, वृश्चिक और मीन राशि के लिए अशुभ होता है। वहीं यह कर्क, सिंह और धनु राशि के लिए अत्यधिक हानिकारक प्रभाव में होता है।

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