शनि ग्रह: क्या यह वाकई में अन्य ग्रहों की लाभकारी विशेषताओं को रोक सकता है?

शनि ग्रह

ज्योतिष शास्त्र में, शनि ग्रह को एक ऐसा ग्रह माना गया है; जिसकी स्थिति किसी भी जातक की कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ ही यह वैराग्य, बुद्धि, वैज्ञानिक ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, दृढ़ता, कड़ी मेहनत, अनुशासन और का बुजुर्गों का प्रतीक है। यदि किसी जातक की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक न हो तो उसे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।’मंगल भवन’ के इस लेख में आज हम शनि ग्रह का अन्य ग्रहों के साथ प्रभाव कैसा होगा इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगें-

पौराणिक मान्यता के अनुसार, शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। सूर्य देव के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि देव का स्वभाव विपरीत था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि जयंती 12 जून को मनाई जाती है। शनि, भगवान सूर्य व माता तथा छाया (स्वर्णा) के पुत्र है। इसके साथ ही शनि को एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी जाती है। 

किन्तु यह सत्य नहीं है, उनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह उनकी पत्नी के अभिशाप के कारण है। कुंडली में शनि के पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि किसी जातक की कुंडली में शनि उच्च स्थान का हो तो वह उसे रंक से राजा बना सकता है। शनि देव को तीनों लोकों का न्यायाधीश कहा जाता है। जो कि जातकों को अतः उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। इसके अलावा शनि देव पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी है।

  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,  यदि शनि देव किसी कुंडली में त्रिकोण या केंद्र जैसे महत्वपूर्ण भावों में विराजमान है या लग्न के स्वामी है या जातक का चंद्र, शनि की राशि में है; तो  यह निश्चित रूप से लाभकारी प्रभावों को कम कर सकता है, लेकिन इसका प्रभाव केवल मध्य तीस के दशक तक ही रहता है।यह जातक को उस भाव से संबंधित वस्तुओं के मूल्य का अनुभव करता है जिस भाव में वें विराजमान है। इसके साथ ही शनि ग्रह, अन्य ग्रह के प्रभाव को भी मध्य तीस के दशक तक बनाए रखते हैं। 
  • यदि शनि ग्रह कुंडली में उच्च स्थान का है, तो जातक अत्यधिक निराश होगा क्योंकि शनि के अधिक प्रभाव के कारण, उसे लगता है कि वह बहुत मेहनती और प्रतिभाशाली है, फिर भी उनकी प्रतिभा को दुनिया पहचान नहीं पाती है, ऐसे जातक को अपने जीवन में प्रत्येक वस्तु पाने में परेशानी व देरी का सामना करना पड़ेगा। इतना ही नहीं इन जातकों को नौकरी के लिए भी बहुत प्रयास करने होंगे। ऐसे जातकों को उनकी क्षमता से अधिक संघर्ष करना होगा। 
  • लेकिन यदि कोई जातक कड़ी मेहनत करता है, बुजुर्गों और गरीबों की सेवा करता है, तो उसके सभी प्रयासों को 36वें वर्ष के बाद शनि देव की कृपा दृष्टि प्राप्त होगी। और उसे अपार सफलता मिलेगी। इसी के साथ अन्य सभी ग्रह भी तभी पूर्ण प्रभाव देंगे जब कुंडली में कोई भी अच्छे योग सक्रिय होने के लिए स्वतंत्र होगा।
  • इसके अलावा ज्योतिष ज्ञान यह कहता है कि यदि शनि ग्रह नीच का है और किसी महत्वपूर्ण भाव में विराजमान है तब भी जातक तीस के दशक के मध्य में शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्त हो जाएंगें। शनि ग्रह किसी भी ग्रहों के प्रभाव को प्रभावित नहीं करेंगे, बशर्ते कि जातक गरीबों और बुजुर्गों की सेवा व सम्मान  करें व कड़ी मेहनत करें।
  • कुंडली में एक अच्छा शनि, अन्य ग्रहों के शुभ प्रभाव को कुछ उम्र तक विलंबित कर सकता है, लेकिन यह जातक को कम उम्र में भी हमेशा अपार ज्ञान प्रदान करेंगें और अच्छी स्थिति में होने पर अन्य ग्रहों के हानिकारक प्रभावों से भी सुरक्षित करेंगे।

शनि यदि किसी जातक की कुंडली में महत्वपूर्ण स्थिति में है तो ऐसे जातक अपने कर्म पर अधिक ध्यान देते हैं। शनि हमें ज्ञान, अंतर्ज्ञान, वैज्ञानिक स्वभाव, कड़ी मेहनत करने की सहनशक्ति, व्यापार की गहरी समझ, अपार धन और समाज में पहचान, सरकारी नौकरियों और राजनीति में अच्छी स्थिति और साथ ही दूरदर्शिता और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वें कौन से भाव में विराजमान है। शनि की कृपा प्राप्त  करने वाले जातक दीर्घायु होते है। यदि शनि की कृपा दृष्टि हो तो अन्य ग्रह उसे नहीं मार सकते।

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि व सूर्य ग्रह की इस युति को अच्छा नहीं माना गया है। इससे पिता व पुत्र में मतभेद होना, पिता के सुख में कमी होती है। ऐसे जातकों के किसी भी कार्य के संपन्न होने में देरी होती है। राजनीति के क्षेत्र में यह युति सफलता दे सकती है। 

शनि ग्रह और चंद्र ग्रह की इस युति को इसे विष योग कहा गया है। यह जातक को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही परिणाम प्रदान करती है। यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्र ग्रह कमजोर अवस्था में हो और उस पर शनि का प्रभाव हो तो जातक का मन बेहद कमजोर होगा और वह हर बात पर भयभीत होगा। लेकिन शुक्ल दशमी तिथि से पूर्णिमा के बीच का चंद्र हो और शनि भी बलवान स्थिति में हो तो जातक उच्च कोटि का साहसी और साधक बनता है। 

ज्योतिष के अनुसार, शनि व मंगल का साथ होना जातक के लिए विनाशकारी परिणाम देने वाला होता है। देगी। ये दोनों ही ग्रह परस्पर शत्रु ग्रह होते हैं, ऐसे में इस युति वाले जातक काफी गुस्सैल और असफल होते हैं। इसके साथ ही यह कर्ज में डूबने की भी निशानी है। इन जातकों में मशीन की समझ अच्छी होती है। अतः तकनीकी कार्यों में जातक सफल हो सकता है। 

इन दोनों की ग्रहों की युति जातक को एक अच्छा अच्छा प्रोफेसर, ज्योतिषी या वैज्ञानिक बनाती है। शनि के गुण जब बुध देव ग्रहण करते है तो ऐसे जातक गूढ़ तरीक़े से अध्ययन करता है और अपनी बात को दूसरों क समक्ष बहुत अच्छे से समझा पाता है।

अगर किसी की कुंडली में शनि के साथ गुरु ग्रह की युति हो तो इन दोनों ग्रहों के प्रभाव से जातक काफी अच्छा सलाहकार होता है। ऐसे जातक को राजनीति में भी अच्छा पद प्राप्त होने की सम्भावना रहती है। साथ ही ये जातक उच्च कोटि का साधक और मंत्रों का ज्ञाता होता है। 

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, वैसे दोनों ये दोनों ग्रह परस्पर मित्र ग्रह है लेकिन इस युति के कारण शनि ग्रह शुक्र की ऊर्जा के प्रभाव को कम कर देता है। फलस्वरूप ऐसे जातक की रुचि यौन सुख में कम होती है। साथ ही इन जातकों में स्त्री सुख की इच्छा नहीं होती और ना ही वें भौतिक सुख का आनंद लेने में रुचि लेता है। शनि के प्रभाव के कारण यहां शुक्र स्त्री सुख में कमी करने वाला होगा।

शनि ग्रह

ज्योतिष में शनि व राहु ग्रह की यह युति अच्छी नहीं मानी जाती है लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि दोनों शुभ ग्रह फल देते हैं। वास्तव में राहु ग्रह, शनि के समान ही फल प्रदान करता है इसलिए अगर इस युति में शनि बलवान हो तो जातक उच्च पद की प्राप्ति करते हैं और अगर शनि नीच या पीड़ित है तो जातक जीवन भर असफल ही होगा। 

गणना के अनुसार, इस युति में जातक को गंभीर रोग होने की सम्भावना होती है। कैंसर या कोई लाइलाज बीमारी का यह संकेत देती है। इसके अलावा किसी भूत प्रेत की बाधा से भी ऐसे जातक पीड़ित हो सकते  है। शनि के साथ केतु अगर अशुभ हो तो अकाल मृत्यु भी हो जाती है।


Q. शनि बलवान कब होता है?

An. यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि मजबूत स्थिति में है, तो यह स्थिरता, मजबूत करियर, दीर्घायु, बुद्धि, ज्ञान और अच्छी समझ जैसे अनुकूल परिणाम लाता है।

Q. क्या शनि ग्रह के साथ कोई ग्रह विराजमान हो तो यह उस ग्रह के प्रभाव कम कर हो जाते है?

An. नहीं, शनि ग्रह सभी ग्रहों के प्रभाव को कम नहीं करते हैं।

Q.  शनि ग्रह के साथ मंगल ग्रह के होने क्या प्रभाव होगा?

An. ज्योतिष के अनुसार, शनि व मंगल का साथ होना जातक के लिए विनाशकारी परिणाम देने वाला होता है। देगी। ये दोनों ही ग्रह परस्पर शत्रु ग्रह होते हैं, ऐसे में इस युति वाले जातक काफी गुस्सैल और असफल होते हैं।

Q. क्या, शनि अन्य ग्रह के प्रभाव को विपरीत प्रभाव में बदल देते हैं?

An. नहीं शनि किसी भी ग्रह के प्रभाव को विपरीत प्रभाव में नहीं बदलते हैं।

Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *