कुंडली के बारह भाव में बृहस्पति-केतु की युति- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बृहस्पति और केतु की युति आध्यात्मिक रुचि को दर्शाती है। केतु को एक गुप्त ग्रह कहा जाता है जो गुप्त विद्याओं की ओर रुचि को दर्शाता है। वही बृहस्पति ज्ञान का ग्रह है। बृहस्पति और केतु का संयोजन यह इंगित करता है कि जातक आध्यात्मिकता में उच्च शिक्षा और ज्ञान के साथ-साथ दैनिक जीवन के व्यावहारिक मामलों में कितना सक्रिय होगा। इसके साथ ही इस युति के संयोजन से धर्म के बारे में मौजूदा धारणाओं सहित भौतिकवादी सुविधाओं को कम करने की प्रकृति के बारे में ज्ञान मिलता है। इन सभी विशेषताओं के साथ, किसी भी जातक की कुंडली में बृहस्पति व केतु की युति को ग्रहों के शुभ व अशुभ प्रभाव के आधार पर भी हम परिभाषित कर सकते हैं।
ज्योतिष में: बृहस्पति ग्रह
ज्योतिष शास्त्र में, बृहस्पति ग्रह विस्तार, बुद्धि और ज्ञान का कारक ग्रह माना जाता है जो हम अपने दैनिक जीवन के में प्राप्त करते हैं। यह विकास, बहुतायत, समृद्धि, उपचार, सौभाग्य, उच्च शिक्षा, कानून, लंबी यात्रा और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह जीवन के प्रति हमारे व्यक्तिगत दृष्टिकोण व दर्शन का प्रतिनिधित्व भी करता है। जिससे हम सफलता हासिल करने और आगे बढ़ने का विकल्प चुनते हैं यह हमारे जीवन में आत्मविश्वास पैदा करता है।
केतु ग्रह
ज्योतिष में केतु चंद्रमा का दक्षिणी नोक है जिसे एक मायावी ग्रह कहा जाता है। इसलिए केतु के प्रभाव में आने वाले किसी भी जातक के लिए कोई घटना के बारे में तर्कसंगत रूप से सोचना कठिन हो जाता है। यह हमेशा जातक को भौतिकवादी दुनिया से अलग कर देता है और व्यक्ति को अपनी गतिविधियों और विचार प्रक्रिया के प्रति आत्म-आलोचनात्मक बना देता है।
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ज्योतिष में: बृहस्पति (गुरु)-केतु की युति का महत्व
कुंडली में, बृहस्पति और केतु की युति को ज्ञान व आध्यात्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है। इस युति को ज्ञान प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। इसके साथ ही बृहस्पति व केतु युति के प्रभाव में जातक ज्ञानी हो सकता है। ऐसे जातक किसी भी तरह के असाधारण गतिविधियों में विशेषज्ञ हो सकता है। ऐसे जातक की रुचि आध्यात्मिकता में अधिक होती है। साथ ही ये जातक दानी स्वभाव के होते हैं। ऐसे जातक भौतिकवादी दुनिया के प्रति अपनी कोई दिलचस्पी नहीं होने का दिखावा कर सकता है। ऐसे जातक अपने सहायता करने वाले स्वभाव के कारण धन का संचय नहीं कर पाते हैं।
कुंडली के विभिन्न भावों में बृहस्पति-केतु की युति
पहले भाव में बृहस्पति- केतु की युति
कुंडली के पहले भाव में बृहस्पति गुरु और केतु की युति से प्रभावित जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है। युति के प्रभाव में धार्मिक स्वभाव का होगा व धार्मिकता को अधिक महत्व देगा। ऐसे जातक को शुभ प्रभाव में समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है। कुल-मिलाकर पहले भाव में गुरु व केतु का संयोजन शुभ परिणाम देने वाला होता है।
दूसरे भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति और केतु की युति से जातक को उसके भाग्य का साथ मिलता है। युति के अशुभ प्रभाव, में जातक धूम्रपान और शराब पीने जैसी बुरी आदतों को अपना सकता है। जिससे कि जातक की आर्थिक स्थिति में बुरा प्रभाव हो सकता है। परिवार में मानसिक तनाव की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस युति में जातक को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
तीसरे भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के तीसरे भाव में गुरु और केतु की युति से जातक साहसी और पराक्रमी होता है। यदि बृहस्पति स्थिति हो तो जातक लेखन संबंधी कार्यों में बहुत सफलता हासिल करते हैं, लेकिन राहु के बलि होने पर जातक गलत कार्यों के लिए बदनाम होता है। ऐसे जातक समाज में मान-सम्मान प्राप्त नहीं कर पाते।
चौथे भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के चौथे भाव में बृहस्पति गुरु और केतु की युति से प्रभावित जातक बुद्धिमान होता है। इस अवधि में जातक को उसके परिवार का सहयोग नहीं मिल पाता है। माता पक्ष से कुछ समस्या का सामना करना पड़ सकता है।संतान संबंधी मामलों को लेकर कोई परेशानी नहीं होगी।
पांचवें भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के पांचवे भाव में गुरु और केतु की युति के कारण जातक की संतान को कष्ट मिलेगा या संतान गलत रास्ते पर जा सकती है। इस दौरान शिक्षा में रुकावटें आएंगी। जातक का मन असंतुलित रहेगा। बृहस्पति और केतु की युति किसी जातक के अस्तित्व को मौलिक रूप से प्रभावित कर सकती है। जब ये दो खगोलीय पिंड मिलते हैं, तो आध्यात्मिक देखभाल में वृद्धि, उच्च डेटा की यात्रा और उदारता की ओर झुकाव की संभावना उत्पन्न करते हैं।, क्योंकि केतु का प्रभाव सामान्य गतिविधियों से दूरी की भावना पैदा कर सकता है।
छठे भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के छठे भाव में गुरु और केतु की युति के कारण जातक को शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में जातक को कमर से संबंधित परेशानियां रहेंगी। इसके साथ ही जातक को शत्रुओं से कष्ट हो सकता है। युति के शुभ प्रभाव में जातक को लाभकारी परिणाम मिल सकते हैं।
सातवें भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के सातवें भाव में बृहस्पति और केतु की युति जातक के वैवाहिक जीवन में कुछ समस्याएं लाने वाली हो सकती हैं। जीवनसाथी का स्वभाव दुष्ट प्रवृत्ति का हो सकता है। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक न होने से गरीबी का जीवन व्यतीत करेंगे। युति का प्रभाव, संगति में गहन समझ और तत्परता ला सकता है। लेकिन रिश्तों में मतभेद की स्थिति रहेगी।
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आठवें भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के आठवें भाव में बृहस्पति गुरु और केतु की युति के कारण जातक को ससुराल पक्ष से तनावग्रस्त स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस दौरान आकस्मिक दुर्घटना, चोट, ऑपरेशन आदि की संभावना भी हो सकती है, अचानक परेशानियां आ सकती हैं। ग्रहों के अशुभ प्रभाव में जातक को बहुत कष्टमय जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है।
नौवें भाव में बृहस्पति- केतु की युति
कुंडली के नौवें भाव में बृहस्पति और केतु की युति के कारण जातक धार्मिक कार्यों में अधिक रूचि नहीं दिखाता है। साथ ही इनके पिता से वैचारिक संबंध भी अच्छे नहीं होते हैं। इस योग को पिता पक्ष के लिए कष्टकारी माना जाता है। पारिवारिक जीवन में तनाव हो सकता है। छोटे-मोटे झगड़े आपसी मनमुटाव का कारण बन सकते हैं।
दसवें भाव में बृहस्पति- केतु की युति
कुंडली के दसवें भाव में बृहस्पति गुरु और केतु की युति के कारण जातक में नैतिक साहस की कमी होगी। नौकरी में सफलता व उचित मान-सम्मान मिलने में भी समस्या आती हैं। करियर के लिए इस युति को शुभ नहीं माना जाता है। व्यवसाय संबधी कार्यों में भी हानि का सामना करना पड़ सकता है।
ग्यारहवें भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के ग्यारहवें भाव में गुरु और केतु की युति से प्रभावित जातक गलत तरीके से भी धन की प्राप्ति करने के विचार में रहते हैं। कुसंगति या दुष्ट मित्रों की संगति में रहने से जातक गलत रास्ते पर भी चल सकता है। इस भाव में बृहस्पति और केतु की युति एक जटिल रहस्यमय पहलू के समान है। जिसमें बृहस्पति विस्तार, अंतर्दृष्टि और भाग्य को संबोधित करता है, और केतु आध्यात्मिकता और अलगाव को दर्शाता है। जब ये दोनों लाभ के स्थान पर मिलते हैं, तो यह एक असाधारण आंतरिक संघर्ष का कारण बन सकता है।
बारहवें भाव में बृहस्पति-केतु की युति
कुंडली के बारहवें भाव में बृहस्पति और केतु की युति से प्रभावित जातक आध्यात्मिक आकांक्षाएं रखने वाला होता है। इस दौरान जातक को नींद में कमी हो सकती है। ऐसे जातक बहुत धनवान और सारी भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद लेने वाला होगा। बृहस्पति, केतु के साथ युति होने पर यह जातक की कर्म की पिछली उपस्थिति पर मौलिक प्रभाव डाल सकती है। इसके साथ ही यह अलगाव की अनुभूति भी उत्पन्न कर सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न–FAQ
Q. क्या बृहस्पति और केतु मित्र ग्रह हैं?
An. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु ग्रह बुध, शुक्र और शनि का मित्र ग्रह है। बृहस्पति तटस्थ है । सूर्य, चंद्रमा और मंगल केतु के शत्रु हैं।
Q. बृहस्पति व केतु की युति का क्या प्रभाव होता है?
An.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बृहस्पति और केतु की युति आध्यात्मिक रुचि को दर्शाती है। केतु को एक गुप्त ग्रह कहा जाता है; जो गुप्त विद्याओं की ओर रुचि को दर्शाता है, वही बृहस्पति ज्ञान का ग्रह है। बृहस्पति और केतु का संयोजन यह इंगित करता है कि जातक आध्यात्मिकता में उच्च शिक्षा और ज्ञान के साथ-साथ दैनिक जीवन के व्यावहारिक मामलों में कितना सक्रिय होगा।
Q. क्या, बृहस्पति व केतु का संयोजन एक शुभ संयोजन है?
An. हां, किसी भी ग्रहों का बलि या कमजोर अवस्था के आधार पर उसके प्रभाव को परिभाषित किया जा सकता है, इसके अलावा कुंडली में भावों के अनुरूप भी ग्रहों के संयोजन के शुभ व अशुभ प्रभाव मिलते हैं।
Q. बृहस्पति व केतु के संयोग से क्या लाभ होता है?
An. कुंडली में, बृहस्पति और केतु की युति को ज्ञान व आध्यात्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है।