Navratri 2024 | नवरात्रि का सातवां दिन, मां कालरात्रि की आराधना से होगा नकारात्मक शक्तियों का नाश

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चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां भगवती के सातवें रूप मां कालरात्रि देवी की पूजा का विधान है! धार्मिक शास्त्रों और पंचांग के अनुसार नवरात्री के सातवें दिन को महासप्तमी भी कहा जाता है! देवी पुराण के अनुसार, बताया गया है कि माता कालरात्रि की पूजा-उपासना करने से भूत-प्रेत और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और माता का शुभ आशीर्वाद और कृपा की प्राप्ति होती है! आज हम ‘मंगल भवन’ के इस लेख में  नवरात्रि के सातवें दिन और महा सप्तमी के दिन माता भगवती के कालरात्रि स्वरूप की पूजा और महत्व के बारे में जानेगे- 

नवरात्रि के सातवें  दिन  माता भगवती दुर्गा के सातवें रूप मां कालरात्रि देवी की पूजा और अर्चना की जाती है। शास्त्रों में, माता दुर्गा के इस अद्भुत रूप को शुभकारी, महायोगेश्वरी और महायोगिनी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माता कालरात्रि की विधिवत सेवा और उपासना करने से मां उस जातक की सभी बुरी शक्तियों और काल से रक्षा करती है; इतना नहीं माता दुर्गा के इस शक्तिशाली रूप का आह्वान करने वाले भक्तों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। 

मां भगवती के रूप उपासना करने से जातक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है! इसलिए तंत्र-मंत्र करने वाले जातक माता कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा और उपासना करते हैं। मां कालरात्रि के इस अद्भुत और विशाल रूप को निशा की रात भी कहा जाता है। आगे लेख में हम माता कालरात्रि देवी की पूजा विधि, मंत्र, प्रिय भोग और महत्व के बारें में पढ़ेंगे-

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जब भी संसार में पाप ने आतंक मचाया है; तब संसार की रक्षा के लिए देवताओं का आह्वान किया गया है! उसी प्रकार असुरों और दुष्टों का संहार करने वाली माता कालरात्रि की सच्चे मन से पूजा और अर्चना करने से जातक के सभी दुख दूर होते हैं और जीवन सुख-शांति का वास रहता है। शास्त्रों और पुराणों में माता कालरात्रि की उपासना के बारे में बताया गया है कि, माता की पूजा करने व उपवास करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और जातक को आरोग्य की प्राप्ति होती है। मां कालरात्रि अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर उन पर कृपा करती है; जिससे उनके भक्तों को बल व आयु के साथ-साथ बुरी शक्तियों से लड़ने की क्षमता मिलती है। माता कालरात्रि की विशेष पूजा रात्रि के समय की जाती है। रात्रि के समय उनकी पूजा करने और “‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः “ मंत्र का सवा लाख बार जप करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।अलावा, माता कात्यायनी देवी को शहद और मूंग दाल के हलवे का भोग लगाया जाता है।                                          

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धार्मिक पुराणों में, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के असुर के बारे में बताया गया है! उन्होंने लोगों के बीच बहुत ही, आतंक और हाहाकार मचा रखा था! उसके आतंक से परेशान  सभी देवता और ऋषि गण  भगवान भोलेनाथ के पास सहायता के लिए गए, और उनसे सृष्टि की रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भोलेनाथ की बात को स्वीकार कर माता पार्वती ने मां दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों का संहार किया; और जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत किया तो उसके रक्त के कणों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा बहुत क्रोधित हो गई। अपने क्रोध के कारण मां का रूप-रंग श्यामला (काला) हो गया। इसी श्यामला रूप को से मां देवी भगवती के सातवें स्वरूप को देवी कालरात्रि का नाम दिया गया। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज के साथ सभी दैत्यों और असुरों का संहार कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया और इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस कारण माता को शुभंकरी देवी भी कहा जाता है।

कैसा है- माता कालरात्रि का सातवां रूप  

मां दुर्गा का यह रूप महाविनाश शक्ति से युक्त दुष्टों और असुरों का संहार करने वाला है! जो कि मां पार्वती का ही रूप कहलाता है! यानी मां दुर्गा की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि देवी है। पुराणों में, माता का यह स्वरूप कालिका का अवतार है जो कि काले रंग का है और जिनके लम्बे और विशाल केश चारों दिशाओं में फैले हुए हैं। चार भुजाओं से युक्त माता जिसका वर्ण-वेश अर्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। माता कालरात्रि त्रिनेत्र (तीन नेत्र वाली) हैं और उनकी आंखों से अग्नि बरस रही है। मां का दाहिना हाथ वर मुद्रा में ऊपर की ओर व दाहिना हाथ अभय मुद्रा में नीचे की ओर है । साथ ही, एक तरफ बाएं वाले हाथ में लोहे का कांटा और दूसरी तरफ हाथ में खड़क तलवार सुशोभित है। माता की सवारी गर्दभ यानी गधा है, जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। शास्त्रों में माता के रूप को श्लोक के माध्यम से इस प्रकार वर्णित किया गया है-

श्लोक-

                                               “एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

                                                       लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

                                                                     वामा दोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा।

                                                                               वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।”

नवरात्री के सातवें दिन, यानी महा सप्तमी के दिन मां कालरात्रि देवी को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीजों का भोग लगाने से देवी मां का आशीर्वाद मिलता है और माता अपने भक्तों से प्रसन्न होकर कृपा करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसके साथ ही, माता का पूजन करते समय माता को 108 गुलदाउदी फूलों से बनी माला अर्पित करने का भी विधान है।

नवरात्री के सातवें दिन माता का पूजन बाकि दिनों के अनुसार ही विधिवत किया जाता है। इस दिन महासप्तमी की पूजा के लिए माता का पूजन प्रातः और रात्रि दोनों समय किया जाता है। माता की पूजा के लिए चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता के मूर्ति या चित्र को स्थापित कर प्रतिमा आसपास गंगाजल से छिड़काव कर स्थान को पवित्र करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर पूरे परिवार के साथ माता के नाम का आह्वान करें। इसके बाद माता को रोली, कुमकुम, अक्षत, गुड़हल का फूल आदि पूजा की सामग्री अर्पित करें। माता की अग्यारी करते हैं तो लौंग, बताशा, गुग्गल, हवन सामग्री अर्पित करें। मां कालरात्रि देवी को गुड़हल के पुष्प अर्पित किए जाते हैं और गुड़ का भोग लगाया जाता है। इसके बाद कपूर या दीपक से माता की आरती करें और पूजा में हुई गलतियों की क्षमा याचना करें। आरती के बाद दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ भी कर सकते हैं और मां दुर्गा के मंत्रों का भी जाप करें। जाप करने हेतु आप लाल चंदन की माला या रुद्राक्ष की माला से भी माता के मंत्रों का जप कर सकते हैं।

अवश्य पढ़े- नवरात्रि का पांचवा दिन ! माँ स्कंदमाता माता की उपासना से होगी संतान पूर्ति

   उपासना मंत्र 

  •     “ॐ कालरात्र्यै नम:।”
  • “ या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”

Q. नवरात्री के सातवें दिन माता के कौन से रूप की पूजा जाती है?

An. नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि देवी की पूजा का विधान है! धार्मिक शास्त्रों और पंचांग के अनुसार नवरात्री के सातवें दिन को महासप्तमी भी कहा जाता है! 

Q. नवरात्री के सातवें दिन मां कालरात्रि देवी की उपासना करने से क्या होता है?

An.देवी पुराण के अनुसार, बताया गया है कि माता कालरात्रि की पूजा-उपासना करने से भूत-प्रेत और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और माता का शुभ आशीर्वाद और कृपा की प्राप्ति होती है!

Q. देवी कालरात्रि माता को भोग में कौन सी वस्तु प्रिय है?

An. नवरात्री के सातवें दिन, यानी महा सप्तमी के दिन मां कालरात्रि देवी को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीजों का भोग लगाने से देवी मां का आशीर्वाद मिलता है और माता अपने भक्तों से प्रसन्न होकर कृपा करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

Q. देवी कालरात्रि के स्वरूप का क्या महत्व है?

An. जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत किया तो उसके रक्त के कणों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा बहुत क्रोधित हो गई। अपने क्रोध के कारण मां का रूप-रंग श्यामला (काला) हो गया। इसी श्यामला रूप को से मां देवी भगवती के सातवें स्वरूप को देवी कालरात्रि का नाम दिया गया।

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