Diwali Puja 2024| दीपावली में लक्ष्मी पूजन का महत्व | क्यों किया किया जाता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन

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प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन दीपावली का पावन पर्व मनाया जाता है। दिवाली के इस पवित्र दिन पर माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश जी का पूजन किया जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं दिवाली के शुभ अवसर पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है? कौन है; रिद्धि-सिद्धि और दीवाली के दिन घर में शुभ-लाभ क्यों लिखते हैं? तो आइये आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम दीवाली के शुभ प्रसंग के दिन माता लक्ष्मी के पूजन का महत्व जानेंगे-

इस साल 2024 में दिवाली का पर्व 29 अक्टूबर, मंगलवार के दिन धनतेरस से प्रारंभ होगा 3 नवंबर, 2024 रविवार भाई दूज के दिन तक मनाया जाएगा!  इस दिन लोग माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी के साथ भगवान कुबेर देवता की पूजा अर्चना करते हैं!  इस साल दिवाली का पर्व 1 नवंबर 2024, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा! कहीं-कहीं कुछ लोग इसे 31 अक्टूबर को भी मनाएंगे! 

दिवाली पूजन के लिए विशेष सामग्री ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, देवताओं का पूजन पूरे विधि-विधान और विशेष विधि (पंचोपचार और षडोपचार) के माध्यम से करने पर पूजा का सम्पूर्ण फल मिलता है- आइए जाने दिवाली के लिए पूजा सामग्री- 

मां लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा, रोली, कुमकुम, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, नारियल, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी के दीए, रुई, कलावा, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूं, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, पंचामृत, दूध, मेवे, बताशे, जनेऊ, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, बैठने का आसन, हवन कुंड, हवन सामग्री, आम के पत्ते और भोग के प्रसाद! 

धार्मिक शास्त्र के अनुसार, धन की देवी माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का बहुत महत्व है! इसका मुख्य कारण यह है कि, माता लक्ष्मी श्री, यानी धन-संपदा की देवी कहलाती हैं, वहीं भगवान श्री गणेश बुद्धि-विवेक और सभी कार्यों को निर्विघ्नं करने वाले देवता हैं। इसका अर्थ यह हुआ की, बिना बुद्धि-विवेक के धन-संपदा को प्राप्त करना बहुत कठिन है! माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से जातकों को धन-समृद्धि और संपदा की प्राप्ति होती है। 

मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा गतिमान रहता है, ठीक उसी प्रकार माता लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। यानी देवी लक्ष्मी (धन-संपदा) को बनाए रखने और संभालने के लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता होती है। कोई भी मनुष्य दुर्बुद्धि के बल पर लक्ष्मी को अधिक समय तक स्थाई नहीं रख सकता अतः, बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना संभव नहीं है!  इसलिए,  दिवाली के पूजन में माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश जी की पूजा भी अनिवार्य रूप से की जाती है। ताकि लक्ष्मी के साथ बुद्धि और विवेक भी प्राप्त हो। अक्सर यह देखा जाता है कि, जब लक्ष्मी मिलती है तब मनुष्य उसकी चकाचौंध में अपना विवेक खो बैठता है और बुद्धि से काम नहीं लेता है। अतः माता लक्ष्मी जी के साथ हमेशा भगवान गणेश जी से सद्बुद्धि की कामना के साथ उनका पूजन जरूर करें! आइये अब देवी लक्ष्मी के पूजन के महत्व के बारे में जानें

पौराणिक महत्व- माता लक्ष्मी और भगवान गणेश पूजन 

शास्त्रों और महापुराणों में यह गणना बताई गई है कि, मंगल के दाता और विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले देवता श्री गणेश, श्री यानी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। इसे ही, एक कथा बताई गई है कि, एक बार माता लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि, भले ही संसार आपकी पूजा-पाठ करता है और आपको पाने और प्रसन्न करने की लालसा में रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं; तब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा ऐसा क्यों, जो मैं अभी तक अपूर्ण हूं? तब भगवान विष्णु ने इसका उत्तर देते हुए कहा जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती; तब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाती। इसलिए, आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। इस बात ने माता को बहुत दुखी किया। 

तब, माता लक्ष्मी का निःसन्तान होने पर उन्हें दुखी होता देख देवी पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। और तभी से भगवान गणेश को माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहा जाता है। इस प्रकार माता लक्ष्मी का भगवान गणेश को  दत्तक पुत्र के रूप में प्राप्त कर बहुत खुश हुईं और माता लक्ष्मी ने भगवान गणेश जी को यह वरदान दिया कि; जो भी उनकी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, उनके पास लक्ष्मी कभी भी स्थाई रूप से नहीं आएगी। इस कारण दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ माता उनके दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा भी की जाती है।

हमारे ‘मंगल भवन’ के वरिष्ट आचार्यों के अनुसार, भगवान श्री गणेश जी की पूजा सभी देवताओं में सबसे पहले करने का विधान बताया गया है। क्योंकि, भगवान श्री गणेश की पूजा इस भाव से सर्वप्रथम की जाती है कि, सभी कार्य बिना की विघ्न या बाधा के निर्मित हो जाएँ, इसी के साथ, वहां उनके साथ उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि के साथ उनके पुत्र शुभ और लाभ की पूजा की जाती है वहां कभी कोई कार्य में बाधा नहीं आती और पूजन कर्ता के गृह में विघ्न टल जाता है। रिद्धि और सिद्धि प्रभु ब्रह्म देवकी पुत्रियां हैं। माता हमेशा अपने पुत्र के दाएं तरफ विराजती है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति सदैव पूजन के समय माता लक्ष्मी के बायीं ओर की रखना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन में कुबेर देवता का स्थान और महत्व 

विभिन्न शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माता लक्ष्मी ने धन-संपदा के भंडार की देखरेख और सुरक्षा के लिए भगवान  कुबेर देवता को जिम्मेदारी दी थी! यानी किसको कितना धन देना है और कब देना है,यह सभी भगवान कुबेर के जिम्मे था। अतः दिवाली के दिन पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के साथ-साथ कुबेर देवता का पूजन करना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।

धार्मिक शास्त्रों में, दीपावली के पर्व को समृद्धि, आनंद और प्रकाश फैलाने वाला त्योहार है, कई स्थानों पर दीपावली महज देवता, महापुरुषों के चित्रों वाले पटाखे फोड़ना, सिनेमा देखना, बाहर जाकर मित्रों के साथ के व्यसन पदार्थों का सेवन करना, आंखों को कष्ट देने वाली और घातक दीपमाला और दिए की जगमगाहट करने मात्र रह गया है! इन सभी को देखते हुए के दीपावली का संपूर्ण स्वरूप आज के इस युग में बहुत परिवर्तित हो गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन सभी कार्यों को करने से नकारात्मकता बढ़ती है।

क्योंकि, जिस धन की देवी माता लक्ष्मी की घर में पूजा करते हैं उसी के फोटो वाले पटाखे फोड़ कर हम उनका उपहास करते हैं। जो बिल्कुल भी उचित नहीं हैं! क्या इसे कार्य करने से देवता आपसे प्रसन्न होंगे ? नहीं, अपितु इससे घर में की गई पूजा का भी आपको कोई शुभ परिणाम  नहीं मिलेगा और देवताओं का अनादर होगा। अतः ‘मंगल भवन’ आप सभी को  स्वदेशी और पारंपरिक तरीके से दिवाली का पर्व मनाने का अनुरोध करते हैं; जिससे सकारात्मकता और देवताओं का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो सके। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार, लक्ष्मी पूजन कार्तिक अमावस्या को शाम के समय शुभ मुहूर्त में किया जाता है! शास्त्र के अनुसार दीवाली के दिन माता लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, यदि देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद बनाए रखना है तो धार्मिक आचरण करना बहुत जरूरी है। अधर्म का साथ देने वाले और बुरे कार्यों को करने वाले जातक के पास लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती है, क्योंकि लक्ष्मी चंचल है ! ऐसे में, जहां निरंतर भगवान के अनुसंधान व मार्ग पर चलने का कार्य किया जाता है; वहां उनका स्थाई वास रहता है। ऐसे स्थान पर वे लक्ष्मी देवी सदा विराजमान रहती है। जैसे, देवी लक्ष्मी का पूजन कार्तिक अमावस्या को सायंकाल में करते हैं और रात्रि बारह बजे अलक्ष्मी निस्सारण किया जाता है। शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी पूजन करने वाले जातकों को लक्ष्मी तत्व का लाभ मिलता है और उनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही, धर्माचरण करना बहुत ही आवश्यक है।

                                                                    “तमसो मा ज्योतिर्गमय” 

इस श्लोक का अर्थ है ‘हे प्रभु! आप मुझे असत्य से सत्य की ओर यानी अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर चलें’ मेरी आपसे यह प्रार्थना है। संसार में सभी मनुष्य अंधकार से निकल कर प्रकाश की ओर जाना चाहते हैं, यानी नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर जाना। और जीवन में सकारात्मकता को बढाना और प्रकाश की ओर निरंतर आगे चलने का त्योहार ही दीपावली को कहा जाता है।

सत्य और अच्छाई की जीत 

इसके साथ ही, प्रभु श्री रामचंद्र जी 14 वर्षों का वनवास पूर्ण करके जब वे अयोध्या में लौटे थे उस दिन को उनकी प्रजा ने ददीप जलाकर उनके आने का पर्व मनाया था; जिसे दीवाली का पर्व कहते हैं।  प्रभु श्री रामचंद्र जी के आगमन की ख़ुशी को उनकी प्रजा ने बड़े ही उत्साह और आनंद से मनाया। उनके स्वागत के लिए संपूर्ण अयोध्या नगरी और घर-घर में दीये जलाकर उनका स्वागत किया गया। प्रभु श्रीराम के सत्य स्वरूप होने से कारण उनकी विजय अर्थात सत्य की ही विजय थी। इस विजय के उत्सव के रूप में हम दीपावली को दीपोत्सव व प्रकाश उत्सव के रूप में मनाते हैं!रें।

Q. साल 2024 में दीपावली का पर्व कब मनाया जाएगा?

An. इस साल 2024 में दिवाली का पर्व 1 नवंबर 2024, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा! कहीं-कहीं कुछ लोग इसे 31 अक्टूबर को भी मनाएंगे! 

Q. दीवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा का क्या महत्व है?

An. धार्मिक शास्त्र के अनुसार, धन की देवी माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का बहुत महत्व है! इसका मुख्य कारण यह है कि, माता लक्ष्मी श्री, यानी धन-संपदा की देवी कहलाती हैं, वहीं भगवान श्री गणेश बुद्धि-विवेक और सभी कार्यों को निर्विघ्नं करने वाले देवता हैं। इसका अर्थ यह हुआ की, बिना बुद्धि-विवेक के धन-संपदा को प्राप्त करना बहुत कठिन है!

Q. दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी के साथ कुबेर देवता का पूजन क्यों किया जाता है?

An. विभिन्न शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माता लक्ष्मी ने धन-संपदा के भंडार की देखरेख और सुरक्षा के लिए भगवान  कुबेर देवता को जिम्मेदारी दी थी! यानी किसको कितना धन देना है और कब देना है,यह सभी भगवान कुबेर के जिम्मे था। अतः दिवाली के दिन पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के साथ-साथ कुबेर देवता का पूजन करना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।

Q. हम सभी दीवाली का पर्व क्यों मनाते हैं?

An.प्रभु श्री रामचंद्र जी 14 वर्षों का वनवास पूर्ण करके जब वे अयोध्या में लौटे थे उस दिन को उनकी प्रजा ने ददीप जलाकर उनके आने का पर्व मनाया था; जिसे दीवाली का पर्व कहते हैं।  प्रभु श्री रामचंद्र जी के आगमन की ख़ुशी को उनकी प्रजा ने बड़े ही उत्साह और आनंद से मनाया।

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