Chhath Puja 2024- जानें छठ पूजा महापर्व की सटीक तारीख व शुभ मुहूर्त, व्रत की महिमा व महत्व

chhat-puja-2024

सनातन धर्म में छठ पूजा और महापर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व को सभी बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। यह व्रत मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी माता की पूजा-अर्चना का पर्व है, जो कि, माताओं द्वारा संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए विधि पूर्वक किया जाता है। साथ ही, इस व्रत के दौरान स्वच्छता, पवित्रता और कुछ विशेष नियमों का ध्यान रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत संतान की प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी माना जाता है! तो आइए आज हम सभी ‘मंगल भवन’ के इस लेख में ‘छठ पूजा (Chhath Puja 2024)’ के शुभ मुहूर्त, सही तारीख, मुख्य प्रसाद और भगवान सूर्य देव की आराधना के साथ महापर्व के महत्व के बारे में जानेंगे! इसके साथ छठ पूजा के व्रत में गाया जाने वाला लोकप्रिय गीत भी जानें

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर संध्याकाल के समय अर्घ्य दिया जाता है। इस वर्ष 2024 में हिंदी पंचांग और हमारे वरिष्ठ आचार्यों के मतानुसार, छठ पूजा का पर्व 5 नवंबर यानी नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ होगा! जो कि, 8 नवंबर को सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य देकर समाप्त किया जाएगा! इस व्रत को बिहार में सबसे अधिक महत्व दिया जाता है जो कि, 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है!  छठ पूजा के समय में छठी मैया की पूजा की जाती है और सूर्यदेव को अर्घ्य देने का विधान है! इसके साथ ही, छठ पर्व बिहार के लोगों का सबसे अधिक लोकप्रिय पर्व है! जिसमें प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर और ठेकुआ का विशेष महत्व है! यहां हमने छठ के व्रत की शुभ तिथियां बताई हैं जो,  जो इस प्रकार है…

1. छठ पूजा पर्व का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- (नहाय खाय)

पहले दिन, व्रत करने वाले को नदी या तालाब में स्नान करना होता है और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
2. छठ पूजा पर्व का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- (खरना)

दूसरे दिन, व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखते हैं। संध्या की पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर और फल खाए जाते हैं।
3. छठ पूजा पर्व का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-(संध्या अर्घ्य)

तीसरे दिन, व्रत करने वाले सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
4. छठ पूजा पर्व का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- (उषा अर्घ्य)

चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रत करने वाले अपने व्रत का पारण करते हैं और प्रसाद के रूप में, ठेकुआ का प्रसाद वितरण करते हैं।

पौराणिक मान्यताओं में, छठी मैया के बारे में एक कथा प्रचलित है कि, जो की ब्रह्माजी की मानस पुत्री मानी जाती हैं और सूर्यदेव की बहन है। साथ ही, छठी माता को संतान की रक्षा करने वाली देवी कहा जाता है जो संतान का सुख देने माता भी है, साथ ही, धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, सूर्यदेव को अन्न, संपन्नता और ऊर्जा प्रदान करने वाले देवता है। इसलिए, जब रवि और खरीफ की फसल आ जाती है तो, सूर्य देवता का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक माह में मनाया जाता है।

छठ पर्व मुख्य रूप से षष्ठी तिथि को किया जाता है। लेकिन इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात,कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाती हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व को समापन किया जाता है।

छठ पूजा का महापर्व सभी व्रतों में सबसे कठिन व्रत माना जाता है! क्योंकि इस दौरान व्रत रखने वाले को कठोर नियमों का भी पालन करना पड़ता है। साथ ही, यह व्रत करने से परिवार और संतान को सुख-समृद्धि, दीर्घायु और रोग मुक्त जीवन की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसके साथ ही, इस त्योहार के दौरान सूर्य देव की आराधना और छठी मैया की पूजा की जाती है जिससे, ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है और जो जीवन में सकारात्मकता लाता है।

छठ की पूजा में ठेकुआ और गुड़ की खीर के प्रसाद का विशेष महत्व होता है! साथ ही, छठ पूजा का प्रसाद विशेष नियम के अनुसार तैयार किया जाता है! छठ पूजा से लौटकर आने वाले जातक प्रसाद में ठेकुआ का प्रसाद सभी में बांटते हैं! इसका अर्थ यह है कि, छठ पूजा के शुभ अवसर पर ठेकुए का जिक्र न हो ऐसा तो मुमकिन है ही नहीं! साथ ही, छठ के दिन ठेकुआ का पकवान हर कोई बडे चाव से पसंद करता है!  जिसका इंतजार हर किसी को होता है; फिर भले ही वह छठ का व्रत करें या न करें, प्रसाद तो खा ही लेते है! वास्तव में, ठेकुआ छठ पूजा का मुख्य प्रसाद है! जिसे आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है! साथ ही, छठ पूजा के दिन प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का भी प्रयोग किया जाता है। इन सभी प्रसाद को शुद्ध सामग्री से बनाकर सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं।

छठ की पूजा में, कुछ विशेष नियमों का पालन करने का विधान बताया गया है- जो इस प्रकार है…

  1. छठ पूजा के व्रत के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले किसी भी चीज का सेवन नहीं किया जाता है। इसके साथ ही, व्रत करने वाले को व्रती को जमीन पर सोना चाहिए।
  2. इस व्रत को करने वाले को व्रती को स्वच्छ और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए और किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन और व्यसन पदार्थों का (मांस-मदिरा) का सेवन नहीं करना चाहिए।
  3. छठ की पूजा में प्रयुक्त सामग्री को झूठे और गंदे हाथ से स्पर्श नहीं करना चाहिए।
  4. इस दिन व्रत के दौरान किसी के साथ छल-कपट, निंदा या वाद-विवाद न करें।
  5. छठ की पूजा में बांस के सूप का उपयोग करना शुभ है इसलिए बांस के सूप का ही इस्तेमाल करना चाहिए, और सूर्य देव की पूजा के समय बांस के सूप में ही पूजन सामग्री को रखकर देवता को अर्पित करें।
  6. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा का एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, विशेष रूप से सनातन धर्म में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 
  7. इसके अलावा, छठ पर्व और छठ मैया की मान्यता के अनुसार, छठ पर्व मुख्य रूप से कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाते हैं; लेकिन चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि का छठ पर्व जिसे ‘चैती छठ’ कहा जाता है!  यह भी बहुत प्रचलित और महत्वपूर्ण मन जाता है। इस प्रकार दो छठ पूजा के व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते है। दोनों ही छठ पर्व भगवान सूर्य को और छठी माता को समर्पित है। इसलिए, छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य देव को अर्घ्य है और छठ मैया की पूजा कथा का विशेष महत्व होता है।

“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये…”

कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये

बहंगी लचकत जाये, हमार सुगवा धनुष भइलन

 सुगवा धनुष भइलन, अस मनवा काहे डोले

 कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये।”

“उग हो सूरज देव, भइले अरघ के बेर…”

उग हो सूरज देव, भइले अरघ के बेर

 बहंगी के पिटारा, सजल डोलिया

 उग हो सूरज देव, भइले अरघ के बेर।

“केलवा के पात पर उगेले सुरुज देव…”

केलवा के पात पर उगेले सुरुज देव

 मोरा मनवा में आनंद भईल

 उगेलन सूरज देव।

“पटना के घाट पर, भोर के बेला…”

पटना के घाट पर, भोर के बेला

 उग हो सूरज देव, छठी मैया की महिमा।

“हे छठी मैया, हम बानी तोहार पुजारी…

हे छठी मैया, हम बानी तोहार पुजारी

अर्घ के दिनवा हम तोहके देब

हे छठी मैया, हम बानी तोहार पुजारी।”

‘ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ’

ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:’

‘ॐ सूर्याय नमः’

‘ॐ आदित्याय नमः’

‘ॐ नमो भास्कराय नमः’

‘ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा’

Q. साल 2024 में, छठ पूजा का पर्व कब मनाया जाएगा?

An. इस वर्ष 2024 में हिंदी पंचांग और हमारे वरिष्ठ आचार्यों के मतानुसार, छठ पूजा का पर्व 5 नवंबर यानी नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ होगा! जो कि, 8 नवंबर को सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य देकर समाप्त किया जाएगा! इस व्रत को बिहार में सबसे अधिक महत्व दिया जाता है जो कि, 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है!

Q. छठ पूजा के दिन कौन से देवताओं की आराधना करते हैं?

An. छठ पूजा के समय में छठी मैया की पूजा की जाती है और सूर्यदेव को अर्घ्य देने का विधान है! इसके साथ ही, छठ पर्व बिहार के लोगों का सबसे अधिक लोकप्रिय पर्व है!

Q. छठ पूजा का विशेष प्रसाद क्या है?

An. छठ की पूजा में ठेकुआ और गुड़ की खीर के प्रसाद का विशेष महत्व होता है! साथ ही, छठ पूजा का प्रसाद विशेष नियम के अनुसार तैयार किया जाता है! छठ पूजा से लौटकर आने वाले जातक प्रसाद में ठेकुआ का प्रसाद सभी में बांटते हैं! 

Q. छठ का पर्व कितने दिन का होता है?

An. इस वर्ष 2024 में हिंदी पंचांग और हमारे वरिष्ठ आचार्यों के मतानुसार, छठ पूजा का पर्व 5 नवंबर यानी नहाय-खाय के साथ प्रारम्भ होगा! जो कि, 8 नवंबर को सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य देकर समाप्त किया जाएगा! इस व्रत को बिहार में सबसे अधिक महत्व दिया जाता है जो कि, 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है!


Related Post

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *