Mahakumbh 2025 | महाकुंभ 2025
‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ है, “घड़ा, सुराही”। जिसे हम शब्दों से समझे तो, पौराणिक कथाओं में इसे अमृत भी कहा जाता है। मेले का अर्थ है किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना, सभा में या फिर विशेष रूप से सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। यानी हिन्दू ग्रंथों में महाकुंभ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला”!
प्राचीन ग्रंथों में वर्णन किया गया है कि, महाकुंभ के समय अमृत की बूंदें प्रयागराज के संगम, उज्जैन के शिप्रा, हरिद्वार के गंगा और नासिक के गोदावरी नदी में गिरी थी! यही कारण है कि हर 12 साल में इन नदियों के किनारे कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है! इसके साथ ही, ज्योतिष गणना में, महाकुंभ के समय ग्रहों की स्थिति का परिवृतं भी होता है! तो आइये आज के इस ‘मंगल भवन’ के लेख में हम ‘आपको ‘महाकुंभ 2025’ के बारे में तो जानकारी देंगे ही, साथ ही, इस दिन शाही स्नान के कई लाभ, ग्रहों की स्थिति और महाकुंभ का महत्व भी विस्तार से बताएंगे!…
महाकुंभ पर्व 2025
प्रति 3 साल में कुंभ का आयोजन होता है! 6 साल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है और प्रति 12 साल में 1 बार महाकुंभ का पर्व आता है! यानी 2013 में, प्रयाग में महाकुंभ हुआ, साल 2019 में, प्रयाग में, और साल 2025 में, प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होगा! यानी साल 2025 में, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, में 29 जनवरी से सिद्धि योग में महाकुंभ का पर्व शुरू होगा! इस दिन ऐसा प्रतीत होता है; जैसे मानों हजारों पवित्र नदियाँ एक स्थान पर मिल रहीं हों! इसलिए इसे ‘महासंगम’ भी कहा जाता है! इस महासंगम में सभी भक्तजन स्नान कर पुण्य कमाते हैं! यह स्नान 29 जनवरी से लेकर 8 मार्च तक कर सकते हैं!
महाकुंभ में पवित्र स्नान की तिथियाँ
- 13 जनवरी 2025- पवित्र स्नान की शुरुआत 13 जनवरी पौष पूर्णिमा के शुभ दिन से होगी!
- 14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति के शुभ दिन पर पवित्र स्नान का आयोजन किया जाता है!
- 29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या पवित्र स्नान किया जाता है!
- 03 फरवरी 2025- शाही स्नान का लाभ ले सकते हैं!
- 04 फरवरी 2025- अचला सप्तमी के दिन पवित्र स्नान का लाभ ले सकते हैं!
- 12 फरवरी 2025- माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र स्नान किया जाएगा!
- 08 मार्च 2025 2025- महाशिवरात्रि के पवित्र दिन शाही स्नान किया जाएगा! इस दिन महाकुम्भ का अंतिम स्नान किया जाएगा!
महाकुंभ पर्व 2025- चार तीर्थ स्थानों का महत्व
ज्योतिष शास्त्र और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहों के चाल बदलने के कारण इन तीर्थ स्थानों पर महाकुंभ के पर्व का आयोजन किया जाता है-
उज्जैन- उज्जैन में होने वाले कुंभ पर्व को ‘सिंहस्थ’ कहा जाता है! जो कि, गुरु बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य ग्रह के मेष राशि में होने पर महाकुंभ का पर्व उज्जैन में आयोजित किया जाता है!
हरिद्वार- जब सूर्य ग्रह मेष राशि और गुरु बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ के पर्व का आयोजन होता है!
प्रयागराज- जब गुरु बृहस्पति वृषभ राशि और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब प्र्यह्राज में कुंभ के पर्व का आयोजन होता है!
नासिक- जब सूर्य और गुरु बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में होते हैं तब, तब नासिक में कुंभ के मेले का आयोजन होता है!
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महाकुंभ 2025- पौराणिक महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हरिद्वार से लेकर नासिक में लगने वाले इस महाकुंभ के दिन, ग्रह अपनी चाल बदलते हैं-
हिन्दू धर्म में, कुम्भ मेला एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है! जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में एकत्र होते हैं और नदी में पवित्र स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर 12 साल तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्ध कुम्भ का भी आयोजन होता है। साल 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। फिर साल 2019 में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन हुआ था। साल 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ होगा!
खगोलीय शास्त्र के अनुसार, ‘महाकुम्भ मेला’ मकर संक्रांति के दिन भी होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और बृहस्पति ग्रह मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के दिन से होने वाले इस योग को “कुंभ स्नान योग” कहते हैं! ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह दिन विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि इस दिन पृथ्वी से स्वर्ग लोक के द्वार खुलते हैं! यानी इस इस दिन महाकुंभ का स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति बहुत ही सहजता से हो जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन के जितना पवित्र माना जाता है।
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महाकुंभ 2025- ज्योतिषीय महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हमारे ज्योतिष आचार्यों ने बताया कि, कुम्भ का महत्व बृहस्पति ग्रह के कुंभ राशि में गोचर और सूर्य के मेष राशि में गोचर के साथ सम्बन्धित है। साथ ही, हरिद्वार से बहती पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित ‘पौड़ी’ नाम केर स्थान पर गंगा जल इस समय औषधि से कम नहीं होता है! जिससे महाकुंभ के दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु लाखों श्रद्धालु इस पवित्र स्नान के लिए यहाँ आते हैं।
महाकुम्भ और प्रचलित कथाएँ
पौराणिक मान्यताओं में, महाकुंभ के पर्व को लेकर बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं! जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा यह है कि, देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार जब महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण इंद्र देव के साथ अन्य देवता भी कमजोर हो गए और दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया। तब सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। तब भगवान विष्णु ने दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर सम्पूर्ण देवता और दैत्य मिलकर संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। अमृत कुम्भ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र जयंत अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया।
उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और बहुत परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। इसके बाद अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध चला। इस परस्पर मार- काट युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग,हरिद्वार,उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चन्द्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से और शनिदेव ने इंद्र देव के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर यथा अधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।
अमृत प्राप्ति के लिए देव और दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। अतः कुम्भ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों वहाँ नहीं पहुँच सकते हैं। जिस समय में चन्द्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चन्द्र-सूर्यादि ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है! यानी, अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ महाकुंभ पर्व होता है।
महाकुंभ पर्व- पवित्र स्नान से होते हैं कई लाभ
महाकुंभ के स्नान करने से बहुत लाभ होते हैं आइये जानें, क्या हैं वह लाभ
महाकुंभ के पर्व में, ज्ञान, भक्ति, और सेवा का आदान-प्रदान होता है! जिससे मन को शांति मिलती है!
महाकुंभ में चार तीर्थों में से किसी भी तीर्थ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है!
महाकुंभ में स्नान करने से जीवन में शुभता और सकारात्मकता आती है!
महाकुंभ में स्नान करने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है!
महाकुंभ में स्नान करने से महा पुण्य फलों की प्राप्ति होती है!
महाकुंभ में स्नान करने से भवसागर व जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है!
महाकुंभ पर्व- कुछ और खास और मूलभूत तथ्य
ज्योतिष शास्त्र में, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ के पर्व को लेकर कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताया गया है! क्या हैं वे तथ्य आइए जानें…
- महाकुंभ का मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है!
- महाकुंभ पर्व और स्नान देश के चार पवित्र स्थलों पर ही होता है! ये स्थल हैं- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन!
- महाकुंभ पर्व की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथाओं से संबंधित है!
- ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ सम्बन्धित है!
FAQS\ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. साल 2025 में महाकुंभ का पर्व कब से शुरू होगा?
An. साल 2025 में, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, में 29 जनवरी 2025 में सिद्धि योग में महाकुंभ का पर्व शुरू होगा!
Q. हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन कब किया जाता है?
An. जब सूर्य ग्रह मेष राशि और गुरु बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ के पर्व का आयोजन होता है!
Q. साल 2025 में उज्जैन में महाकुंभ का आयोजन कब से शुरू होगा?
An. उज्जैन में होने वाले कुंभ पर्व को ‘सिंहस्थ’ कहा जाता है! जो कि, गुरु बृहस्पति के सिंह राशि में और सूर्य ग्रह के मेष राशि में होने पर महाकुंभ का पर्व उज्जैन में आयोजित किया जाता है!
Q. महाकुंभ के पर्व का क्या महत्व है?
An. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हरिद्वार से लेकर नासिक में लगने वाले इस महाकुंभ के दिन, ग्रह अपनी चाल बदलते हैं-
हिन्दू धर्म में, कुम्भ मेला एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है! जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में एकत्र होते हैं और नदी में पवित्र स्नान करते हैं।
Q. महाकुंभ में स्नान करने से क्या लाभ होते हैं?
An. महाकुंभ में चार तीर्थों में से किसी भी तीर्थ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है!
महाकुंभ में स्नान करने से जीवन में शुभता और सकारात्मकता आती है!